जयपुर. राजस्थान सरकार की तरफ से संचालित वन धन योजना का विस्तार होगा. अब जनजातीय उपयोजना और सहरिया क्षेत्र के अलावा मांडा और बिखरी जनजाति क्षेत्रों में भी लागू किया जाएगा. जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने की जानकारी देते हुए कहा कि जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समिति का गठन किया गया है. यह समिति योजना क्रियांवयन पर काम करेगी.
अतिरिक्त मुख्य सचिव वन धन योजना के क्रियान्वयन हेतु परियोजना अधिकारी, माडा जिला नोडल अधिकारी माडा क्षेत्र होंगे और अतिरिक्त आयुक्त जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग उदयपुर राज्य नोडल अधिकारी होंगे. राजेश्वर सिंह ने बताया कि वन धन योजना पूर्व से ही जनजाति उपयोजना क्षेत्र के उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सिरोही और सहरिया क्षेत्र के जिलों में लागू है. योजना का उद्देश्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से लघु उद्योग का संग्रहण करना तथा प्रशिक्षण द्वारा संग्रहित उपजों के मूल्य संवर्धन के लिए उपकरण उपलब्ध करवाना है.
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राजेश्वर सिंह ने बताया कि एक वन धन केंद्र का गठन 20 सदस्यों के 15 स्वयं सहायता समूह को मिलाकर किया गया है. इसके सुचारू संचालन के लिए 8 सदस्य कार्यकारिणी का गठन किया जाता है. न्यूनतम 60 प्रतिशत जनजातीय क्षेत्र के लोगों का होना अनिवार्य है. 300 सदस्यीय वन धन के बंधन विकास केंद्र के लिए प्रशिक्षण के लिए 5 लाख और उपकरण सामग्री के लिए 10 लाख रुपए उपलब्ध कराए जाते हैं.
उदयपुर में 14, बांसवाड़ा में 2, प्रतापगढ़ में 2, सिरोही में 5, डूंगरपुर में 2 विकास केंद्र कार्यरत हैं. 25 वन धन विकास केंद्रों के लिए स्वीकृत राशि इनको 372.20 लाख से 122.20 लाख रुपए प्रशिक्षण, 250 लाख रुपए की टूल कीट उपलब्ध करवाएं जाएंगे. उन्होंने बताया कि अब तक सूची प्राप्त 25 वन धन केंद्रों में से नौ राजीविका, 4 ग्रामीण विकास ट्रस्ट, 02 वन विभाग, 02 आरबीएस फाउंडेशन, 02 जय कला फाउंडेशन, 02 श्रद्धा महिला विकास समिति, 01 सृजन संस्थान, 01सेवा मंदिर, 01 आदिवासी तेंदू पत्ता उत्थान समिति देवला और 01 महान सेवा संस्थान कोल्यारी संस्थान को मार्ग दर्शन के रूप में सौंप गया है, वर्तमान में प्रशिक्षण का कार्य चल रहा है, प्रशिक्षण के उपरांत वन धन विकास केंद्रों में खाद्दय प्रसंस्करण गतिविधियां प्रारंभ की जाएगी.