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special story: सड़कों पर खड़े होकर घर जाने का करते हैं हर रोज इंतजार

लॉकडाउन के बाद लगातार मजदूरों की व्यथा की अलग-अलग कहांनियां सुनने और देखने को मिल रही हैं. ऐसा ही एक मंजर जयपुर के टोंक फाटक पर रोज देखने को मिलता है. जहां बिहार के सैकड़ों मजदूर हर दिन बिहार जाने के लिए साधन की बाट जोहते खड़े रहते हैं. ईटीवी भारत ने जाना उनका दर्द...

जयपुर में प्रवासी मजदूर, migrant worker in jaipur
जयपुर में प्रवासी मजदूर
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Published : May 8, 2020, 9:22 PM IST

जयपुर. महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पटरी पर सो रहे प्रवासी मजदूरों के ऊपर से मालगाड़ी गुजर गई. हादसे में 16 की मौत हो गई. मरने वालों में मजदूरों के बच्चे भी शामिल हैं. इस तरह की घटनाएं सामने आने के बाद अपने घर से दूर रह रहे मजदूर अपने गृह राज्य, गृह जिले और अपने गांव जाने के लिए आतुर हैं.

आज मजदूर बिना किसी रोजगार के पलायन को मजबूर हो गए हैं. वहीं एक बड़ी संख्या उन मजदूरों की भी है, जिन्हें आज भी इंतजार है कि प्रशासन उनकी सुध लेगा और उनके लिए घर जाने की उचित व्यवस्था करेगा.

कोरोना संक्रमण को लेकर लगाए गए लॉकडाउन के बीच सबसे बड़ी समस्या उन दिहाड़ी मजदूरों के सामने खड़ी हुई, जो रोज कमाकर दो वक्त के खाने का इंतजाम करते थे. इनमें एक बड़ी संख्या ऐसे मजदूरों की थी, जो दूसरे राज्यों से जयपुर काम की तलाश में आए थे. यही वजह है कि अब इस लॉकडाउन के बीच ऐसे श्रमिकों का पलायन का दौर जारी है.

मजदूरों को है घर जाने का इंतजार

पढ़ें: INTERVIEW: सरकार की वोट बैंक की राजनीति ने फैलाया रामगंज में कोरोना: सतीश पूनिया

हालांकि इन मजदूरों की मदद के लिए जिला प्रशासन और निगम प्रशासन आगे जरूर आया. लेकिन अब ये मजदूर अपने घर की राह ताक रहे हैं. यही वजह है कि हर दिन सैकड़ों मजदूर बस और ट्रेन के इंतजार में सड़कों पर आ जाते हैं. जयपुर के टोंक फाटक पर बिहार के ऐसे ही 296 मजदूर हर दिन बिहार जाने के लिए साधन की बाट जोहते हैं.

इन मजदूरों ने ईटीवी भारत को बताया कि प्रशासन की ओर से राशन की व्यवस्था तो की गई लेकिन परिवार बड़ा होने के चलते ये राशन पर्याप्त नहीं रहता. ऐसे में अब घर जाना चाहते हैं. इस संबंध में क्षेत्रीय थाने में एप्लीकेशन, आधार नंबर, मोबाइल नंबर और घर का एड्रेस भी लिख कर दिया है. लेकिन अब तक राहत के द्वार नहीं खुले. प्रशासन ईमित्र से रजिस्ट्रेशन की बात कहता है तो ईमित्र संचालक वहां से भगा देते हैं. बार-बार थाने जाते हैं तो पुलिस प्रशासन वहां से भगा देता है. ऐसे में अब वो अधर में लटके हुए हैं.

पढ़ें: सीजन आने से पहले पटरी पर लौटेगा पर्यटन व्यवसाय, घटाया जाएगा 'पैलेस ऑन व्हील्स' का किराया: मंत्री विश्वेंद्र सिंह

उन्होंने बताया कि अधूरे राशन के साथ अब खाने के भी लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में राजस्थान सरकार हो, बिहार की सरकार हो या केंद्र सरकार सभी से एक ही दरख्वास्त है कि उन्हें घर पहुंचाने की व्यवस्था की जाए. इन बिहारी मजदूरों की दिनचर्या में अब काम नहीं, इंतजार शामिल हो गया है. इंतजार घर जाने का. यही वजह है कि हर दिन घर से तैयार होकर वो सड़क पर आ जाते हैं और किसी साधन का इंतजार करते हैं, ताकि वो अपने घर पहुंच सकें.

जयपुर. महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पटरी पर सो रहे प्रवासी मजदूरों के ऊपर से मालगाड़ी गुजर गई. हादसे में 16 की मौत हो गई. मरने वालों में मजदूरों के बच्चे भी शामिल हैं. इस तरह की घटनाएं सामने आने के बाद अपने घर से दूर रह रहे मजदूर अपने गृह राज्य, गृह जिले और अपने गांव जाने के लिए आतुर हैं.

आज मजदूर बिना किसी रोजगार के पलायन को मजबूर हो गए हैं. वहीं एक बड़ी संख्या उन मजदूरों की भी है, जिन्हें आज भी इंतजार है कि प्रशासन उनकी सुध लेगा और उनके लिए घर जाने की उचित व्यवस्था करेगा.

कोरोना संक्रमण को लेकर लगाए गए लॉकडाउन के बीच सबसे बड़ी समस्या उन दिहाड़ी मजदूरों के सामने खड़ी हुई, जो रोज कमाकर दो वक्त के खाने का इंतजाम करते थे. इनमें एक बड़ी संख्या ऐसे मजदूरों की थी, जो दूसरे राज्यों से जयपुर काम की तलाश में आए थे. यही वजह है कि अब इस लॉकडाउन के बीच ऐसे श्रमिकों का पलायन का दौर जारी है.

मजदूरों को है घर जाने का इंतजार

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हालांकि इन मजदूरों की मदद के लिए जिला प्रशासन और निगम प्रशासन आगे जरूर आया. लेकिन अब ये मजदूर अपने घर की राह ताक रहे हैं. यही वजह है कि हर दिन सैकड़ों मजदूर बस और ट्रेन के इंतजार में सड़कों पर आ जाते हैं. जयपुर के टोंक फाटक पर बिहार के ऐसे ही 296 मजदूर हर दिन बिहार जाने के लिए साधन की बाट जोहते हैं.

इन मजदूरों ने ईटीवी भारत को बताया कि प्रशासन की ओर से राशन की व्यवस्था तो की गई लेकिन परिवार बड़ा होने के चलते ये राशन पर्याप्त नहीं रहता. ऐसे में अब घर जाना चाहते हैं. इस संबंध में क्षेत्रीय थाने में एप्लीकेशन, आधार नंबर, मोबाइल नंबर और घर का एड्रेस भी लिख कर दिया है. लेकिन अब तक राहत के द्वार नहीं खुले. प्रशासन ईमित्र से रजिस्ट्रेशन की बात कहता है तो ईमित्र संचालक वहां से भगा देते हैं. बार-बार थाने जाते हैं तो पुलिस प्रशासन वहां से भगा देता है. ऐसे में अब वो अधर में लटके हुए हैं.

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उन्होंने बताया कि अधूरे राशन के साथ अब खाने के भी लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में राजस्थान सरकार हो, बिहार की सरकार हो या केंद्र सरकार सभी से एक ही दरख्वास्त है कि उन्हें घर पहुंचाने की व्यवस्था की जाए. इन बिहारी मजदूरों की दिनचर्या में अब काम नहीं, इंतजार शामिल हो गया है. इंतजार घर जाने का. यही वजह है कि हर दिन घर से तैयार होकर वो सड़क पर आ जाते हैं और किसी साधन का इंतजार करते हैं, ताकि वो अपने घर पहुंच सकें.

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