अलवर. 22 अगस्त यानी शनिवार से गणेश चतुर्थी के साथ देशभर में गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है. इस बार गणेशोत्सव कोरोना के साए में मनाया जा रहा है. ऐसे में प्रदेश भर की तरह अलवर में भी इस बार गणेश महोत्सव बिना किसी शोर-शराबे और बिना किसी बड़े सामूहिक आयोजन के आयोजित होगा. वहीं, गणेश चतुर्थी के पर्व को लेकर मूर्ति कलाकारों ने बड़ी तादाद में गणेश की प्रतिमाएं बनाई, लेकिन कोविड-19 की वजह से बिक्री में बेहद कमी नजर आई.
मूर्ति कलाकारों की मानें तो जहां हर साल जहां 2 हजार से अधिक गणेश की प्रतिमा की बिक्री होती थी, लेकिन इस बार महज 100 से 150 ही मूर्तियां बिकी हैं. जिसकी वजह से इन मूर्ति कलाकारों को मंदी की मार झेलनी पड़ रही है.
विदेशों में भी रहती है डिमांड
हर साल अलवर की मिट्टी से बने हुए गणपति जी की पूजा विदेशों में भी होती है. अलवर से आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, यूरोप, अमेरिका सहित बड़ी संख्या में शहरों में गणपति की मूर्ति भेजी जाती थी. सालभर अलवर में गणपति की मूर्ति बनाने का काम चलता है. इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात सहित देश के विभिन्न हिस्सों में भी अलवर में बनी हुई गणपति की मूर्ति पंडालों में सजती थी. लेकिन इस बार कोरोना के चलते सब कुछ ठप रहा. विदेशों तो दूर अपने ही देश में मूर्तियों की ब्रिकी में कमी आई है.
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इस साल घटी मूर्तियों की बिक्री
गणेश प्रतिमा के डिमांड आधे से भी कम रह गई है. बहुत कम लोग मूर्ति खरीदने के लिए मूर्तिकारों के पास पहुंच रहे हैं. हालांकि अलवर में इको फ्रेंडली मिट्टी से बनी हुई मूर्ति की पूरी दुनिया में डिमांड रहती है. कोरोना के चलते बाजार सूने पड़े हैं, तो वहीं मूर्तिकार परेशान हैं. बड़ी मूर्तियों की डिमांड तो पूरी तरीके से खत्म हो गई है, क्योंकि प्रशासन की तरफ से कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं दी गई है.
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गणेश चतुर्थी के मौके पर बप्पा को घर लाना, घर में स्थापित करना और विधि विधान से उनकी पूजा करना, उसके बाद बहते हुए पानी में उनका विसर्जन करने का खास महत्व है. देश के विभिन्न हिस्सों में गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा-अर्चना होती है. वहीं महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष पूजा-अर्चना होती है. हालांकि अब पूरे देश में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है.
अलवर में बनती हैं इको फ्रेंडली मूर्तियां
शहर में बनी हुई मूर्तियां इको फ्रेंडली रहती है, इसलिए इनकी डिमांड अन्य जगहों की तुलना में ज्यादा रहती है. यह पानी में आसानी से घुल जाती हैं. जिससे पानी में रहने वाले जीवों को भी नुकसान नहीं पहुंचता है.