जयपुर. परेशानी को कोई सुनने वाला हो तो दर्द आधा हो जाता है. महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के कई मामले तो वैसे भी सामने नहीं आ पाते. महिलाओं की बात सुने जाने का एक ही जरिया बचता है, महिला आयोग. ऐसे में यदि आयोग ही बंद पड़ा हो तो महिलाएं कहां गुहार लगाएंगी.
प्रदेश की गहलोत सरकार में महिलाओं पर होने वाली प्रताड़ना से न्याय दिलाने तो बहुत दूर, पीड़ित महिलाओं का दर्द सुनने वाला भी कोई नही है. प्रदेश की सरकार को सत्ता संभाले हुए दो साल होने के बाद भी गहलोत सरकार राज्य महिला आयोग की नियुक्ति नहीं कर पाई. जबकि लॉकडाउन में महिला घरेलू हिंसा के आंकड़ों में बेतहाशा वृद्धि हुई है.
कभी पीड़ित महिलाओं की आवाज सुनने वाला यह महिला आयोग का दफ्तर अब वीरान सा लग रहा है. महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचारों के समाधान के लिए बने महिला आयोग में प्रदेश की साढ़े तीन करोड़ महिलाओं की सुनने वाला कोई नहीं है. राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष का पद प्रदेश की नई सरकार बनने की साथ ही खाली हो गया था. महिला आयोग में केवल सदस्य सचिव के पद पर एक आरएएस अफसर तैनात हैं और कुछ कर्मचारी है. आयोग के अध्यक्ष के साथ साथ सदस्यों के पद भी खाली चल रहे हैं. ऐसे में कमीशन के अभाव में काम गति नहीं पकड़ पा रहा है.
नहीं मिलता कोई जवाब...
कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन के दौरान महिलाओं पर घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. इस दौरान ना तो आयोग इन महिलाओं के पास पहुंच पा रहा है और ना ही महिलाएं आयोग तक पहुंच पा रही है. अध्यक्ष के अभाव में आयोग की संवेदनशीलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शाम 5:00 बजने के बाद कार्यालय में कोई फोन उठाने वाला भी नहीं आता. वहीं ईमेल के जरिए भी जवाब समय पर नहीं मिलता है.
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महिला अत्याचार पर काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ताओं निशा सिद्धू की मानें तो आयोग के अध्यक्ष की जब तक नियुक्ति नहीं हो जाती तब तक आयोग पूरी तरीके से सक्रिय नहीं हो पाएगा. ऐसे में प्रदेश की गहलोत सरकार को चाहिए कि महिला आयोग जैसे महत्वपूर्ण जगह पर तत्काल अध्यक्ष की नियुक्ति करें. जिससे प्रदेश के साढ़े तीन करोड़ महिलाओं को इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़े.
हर सरकार ने गठन में लिया समय...
राज्य महिला आयोग के गठन के बाद से इसके इतिहास को देखें तो यह साफ दिखाई देता है कि सरकारें बदलने के साथ ही हर बार नई सरकार ने नए सिरे से आयोग के गठन में 5 से 6 महीने का वक्त लिया है. गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में भी तत्कालीन महिला आयोग की अध्यक्ष तारा भंडारी का कार्यकाल 2009 में खत्म होने के बाद नई अध्यक्ष डॉ. लाड़ कुमारी जैन का मनोनय करने में सरकार को करीब ढाई साल का समय लगा था. इसके बाद 2014 में प्रदेश में बीजेपी की वसुंधरा सरकार बनने के बाद आयोग के अध्यक्ष का मनोनय 10 महीने के भीतर सुमन शर्मा के रूप में किया गया था, लेकिन इस बार फिर प्रदेश की गहलोत सरकार बनने के बाद करीब दो से अधिक वक्त से आयोग का पद खाली चल रहा है.
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पूर्व महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं लाड कुमारी जैन बताती हैं कि आयोग का फुलफिल कमीशन नहीं होने की वजह से महिलाओं के अधिकारों को लेकर होने वाली सुनवाई नहीं हो पाती है. आयोग के समक्ष महीने में ढाई से तीन हजार मामले सुनवाई के लिए आते हैं. महिला आयोग जैसी जगह पर आयोग के अध्यक्ष के पद लंबे समय तक खाली रहना महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचार को बढ़ावा देने का काम कर रहा है.
लॉकडाउन के दौरान बढ़े महिला उत्पीड़न के मामले...
राजस्थान पुलिस विभाग के हर महीने जारी होने वाले आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2020 में और खासकर कोरोना वायरस के दौरान दर्ज मामलों में महिला उत्पीड़न के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई. मार्च 2020 में महिला उत्पीड़न , दहेज , बलात्कार , छेड़छाड़ की घटनाएं करीब 10 हजार के आंकड़ों को पार कर चुकी है. हालांकि आयोग के समक्ष ई मेल और अन्य तरीके से पहुंचने वाली शिकायतों पर करवाई तो हो रही है, लेकिन जिस गति के साथ आयोग का फुलफिल कमीशन काम करता है वो अभी नहीं हो पा रहा है.
आयोग का अध्यक्ष हो तो प्रदेश में मीडिया या सोशल मीडिया के जरिए सामने वाली घटनाओं पर संज्ञान लिया जा सकता था. अब सीएम गहलोत को चाहिए कि वो इतने बड़े और महत्वपूर्ण आयोग को यूंही खाली ना छोड़े और जल्द आयोग के पद पर नियुक्ति की जाए.