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भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा...इतिहास में पहली बार भगवान मंदिर से बाहर और भक्त घरों में रहेंगे

मंगलवार से भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने वाली है. इस बार की रथ यात्रा खास होगी, क्योंकि 2500 सालों के इतिहास में पहली बार इस यात्रा में भगवान मंदिर से बाहर और भक्त घरों में ही रहेंगे. कोरोना महामारी की वजह से इस बार ऐसा किया जा रहा है.

Puri Rath Yatra, भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा
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Published : Jun 23, 2020, 7:32 AM IST

जयपुर/उड़ीसा. आज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने जा रही है. 2500 साल के यात्रा के इतिहास में पहली बार ऐसा होने जा रहा है, जब भगवान मंदिर से बाहर और भक्त अपने घरों में ही रहेंगे. कोरोना प्रकोप के चलते लोगों से अपील की गई है कि वह इस दौरान घरों से बाहर न निकलें.

गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से पहले एक ऐसा अनुष्ठान भी किया जाता है, जिसमें डाहूक सेवादार गीत गाते हैं. सदियों पुराने इस अनुष्ठान के पूर्ण होने के बाद ही भगवान की रथ यात्रा शुरू होती है. डाहूक सेवादार यह गीत श्रद्धालुओं में उत्साह भरने के लिए गाते हैं.

यह प्रथा आज भी उतनी ही प्रचलित है. बता दें कि शुरुआती दिनों में इन गीतों गालियों का प्रयोग किया जाता था. हालांकि समय के साथ इसकी भाषाशैली में कई बदलाव किए गए हैं.

Puri Rath Yatra, भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

डाहूक सेवादारों को बाहूक भी कहा जाता है. वे रथ पर सवार होते हैं और यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं.

पढ़ें : भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में डाहूक सेवादारों का है खास महत्व

यात्रा शुरू होने से पहले डाहूक सेवादार रथ पर छड़ी लेकर चढ़ जाते हैं. इसके बाद वे हृदय को छू लेने वाले गीत गाते हैं. इन सेवादारों को भगवान जगन्नाथ के भव्य रथ का सारथी माना जाता है.

डाहूक के गीतों को सुनकर भक्त भावविभोर हो जाते हैं. गीत खत्म होने के बाद हरिबोल की जय-जयकार के साथ रथ यात्रा शुरू होती है. इस दौरान वाद्य यंत्रों की ध्वनि असीम शांति का अनुभव कराती है.

पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट से पुरी में जगन्नाथ यात्रा को मिली मंजूरी, नियमों का करना होगा पालन

डाहूकों की इस सेवा का रथ यात्रा में अहम स्थान है. इसका उल्लेख श्री मंदिर (जगन्नाथ मंदिर) के संस्कारों के अभिलेख में भी मिलता है. वे आम सेवादारों की तरह नहीं होते. उनकी सेवा का खास महत्व होता है. यह सेवा वंशानुगत होती है.

डाहूक सेवादार रथ यात्रा के दौरान यह अनूठा अनुष्ठान करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं. जब डाहूक गीत गाते हैं तो मुख्य मंदिर को गुंडिचा मंदिर से जोड़ने वाली सड़क पर अध्यात्मिक वातावरण बन जाता है.

जयपुर/उड़ीसा. आज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने जा रही है. 2500 साल के यात्रा के इतिहास में पहली बार ऐसा होने जा रहा है, जब भगवान मंदिर से बाहर और भक्त अपने घरों में ही रहेंगे. कोरोना प्रकोप के चलते लोगों से अपील की गई है कि वह इस दौरान घरों से बाहर न निकलें.

गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से पहले एक ऐसा अनुष्ठान भी किया जाता है, जिसमें डाहूक सेवादार गीत गाते हैं. सदियों पुराने इस अनुष्ठान के पूर्ण होने के बाद ही भगवान की रथ यात्रा शुरू होती है. डाहूक सेवादार यह गीत श्रद्धालुओं में उत्साह भरने के लिए गाते हैं.

यह प्रथा आज भी उतनी ही प्रचलित है. बता दें कि शुरुआती दिनों में इन गीतों गालियों का प्रयोग किया जाता था. हालांकि समय के साथ इसकी भाषाशैली में कई बदलाव किए गए हैं.

Puri Rath Yatra, भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

डाहूक सेवादारों को बाहूक भी कहा जाता है. वे रथ पर सवार होते हैं और यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं.

पढ़ें : भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में डाहूक सेवादारों का है खास महत्व

यात्रा शुरू होने से पहले डाहूक सेवादार रथ पर छड़ी लेकर चढ़ जाते हैं. इसके बाद वे हृदय को छू लेने वाले गीत गाते हैं. इन सेवादारों को भगवान जगन्नाथ के भव्य रथ का सारथी माना जाता है.

डाहूक के गीतों को सुनकर भक्त भावविभोर हो जाते हैं. गीत खत्म होने के बाद हरिबोल की जय-जयकार के साथ रथ यात्रा शुरू होती है. इस दौरान वाद्य यंत्रों की ध्वनि असीम शांति का अनुभव कराती है.

पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट से पुरी में जगन्नाथ यात्रा को मिली मंजूरी, नियमों का करना होगा पालन

डाहूकों की इस सेवा का रथ यात्रा में अहम स्थान है. इसका उल्लेख श्री मंदिर (जगन्नाथ मंदिर) के संस्कारों के अभिलेख में भी मिलता है. वे आम सेवादारों की तरह नहीं होते. उनकी सेवा का खास महत्व होता है. यह सेवा वंशानुगत होती है.

डाहूक सेवादार रथ यात्रा के दौरान यह अनूठा अनुष्ठान करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं. जब डाहूक गीत गाते हैं तो मुख्य मंदिर को गुंडिचा मंदिर से जोड़ने वाली सड़क पर अध्यात्मिक वातावरण बन जाता है.

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