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जानें क्यों मनाया जाता है ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का छह दिन उर्स - AJMER URS 2025

आज हम इस रिपोर्ट में आपको 6 दिन उर्स मनाने के पीछे के मकसद और ख्वाजा गरीब नवाज के सूफियाना सफर के बारे में बताएंगे.

Ajmer Urs 2025
ख्वाजा का 813वां उर्स (ETV BHARAT AJMER)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 2, 2025, 8:26 PM IST

अजमेर : देशभर की तमाम दरगाहों में एक या दो दिन उर्स मनाया जाता है, लेकिन ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में छह दिन उर्स मनाने की परंपरा है. वहीं, ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 813वें उर्स की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में गरीब नवाज के चाहने वाले देश-दुनिया से दरगाह में हाजिरी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं. इनमें से ज्यादातर जायरीन छह दिनों तक अजमेर रहकर हर दिन गरीब नवाज की चौखट चूमते हैं और रात को होने वाली कव्वालियों में खोकर रूहानी फैज पाते हैं. खैर, आज हम आपको छह दिन उर्स मनाने के पीछे के मकसद और ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सूफियाना सफर के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.

देश-दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है. दरगाह के दरवाजे हमेशा आम और खास सभी के लिए खुले रहते हैं. इसलिए कहा जाता है कि 'ख्वाजा तेरे रोजे पर शाहों के घराने आते हैं, मिलने का बहाना होता है, तकदीर बनाने आते हैं.' मान्यता है कि गरीब नवाज नेक नीयत से आने वाले हर शख्स की झोली खुशियों से भरते हैं. खासकर उर्स के छह दिन दरगाह में चारों ओर रूहानी फैज बरसती है.

इसे भी पढ़ें - ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में इंद्रेश कुमार व केंद्रीय मंत्री पासवान की ओर से चढ़ाई गई चादर - AJMER DARGAH 813TH URS

36 वर्ष की आयु में अजमेर आए ख्वाजा : दरगाह के खादिम सैयद फकर काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज बगदाद से ईरान-इराक होते हुए समरकंद, बुखारा के रास्ते काबुल और कंधार तक आए थे. वहां से ताशकंद गए और फिर वापस काबुल लौट आए. उसके बाद लाहौर होते हुए दिल्ली पहुंचे और फिर दिल्ली से अजमेर चले आए. 36 वर्ष की आयु में ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर आए थे.

गुफा में की 40 दिनों तक इबादत : काजमी ने बताया कि अजमेर आने के बाद ख्वाजा गरीब नवाज सबसे पहले औलिया मस्जिद में ठहरे थे. उसके बाद वो आना सागर के समय एक पहाड़ी की गुफा में रहने लगे, जहां गरीब नवाज ने 40 दिन तक इबादत की थी. उस स्थान को ख्वाजा गरीब नवाज का चिल्ला कहा जाता है. ख्वाजा के चाहने वाले उन्हें गुफा से यहां लेकर आए, जहां आज दरगाह है. यहीं रहकर गरीब नवाज इबादत किया करते थे और लोगों के दुख तकलीफ सुनकर उसे दूर किया करते थे. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज ने रजब का चांद देखकर अपने शिष्यों को कहा कि वे याद-ए-इलाही की इबादत के लिए गुजरे में बैठने जा रहे हैं. इसलिए किसी को भी भीतर नहीं आने दिया जाए.

Ajmer Urs 2025
ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह (ETV BHARAT AJMER)

इसे भी पढ़ें - उर्स 813: रजब का चांद दिखने के साथ ही ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का हुआ आगाज - AJMER DARGAH 813TH URS BEGINS

रजब के चांद से छह दिन होता है उर्स : खादिम सैयद फकर काजमी ने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज रजब के चांद की तारीख से 5 रजब तक अपने हुजरे (कमरे) में रहे. छठे दिन हमरे से जब कोई आवाज भीतर से नही आई, तो उनके शिष्यों को चिंता होने लगी. उसके बाद सभी शिष्यों ने मिलकर तय किया कि हुजरे को खोला जाए. हुजरे को सबकी राय से खोला गया, तब ख्वाजा गरीब नवाज इस दुनिया से पर्दा कर चुके थे.

अल्लाह का दोस्त, अल्लाह की मोहब्बत में अल्लाह से जा मिला : उनके शिष्य उनके चमकते हुए चेहरे को हैरानी से देख रहे थे. ख्वाजा गरीब नवाज की पेशानी पर लिखा था कि अल्लाह का दोस्त, अल्लाह की मोहब्बत में अल्लाह से जा मिला. उन्होंने बताया कि विगत 6 दिनों में ख्वाजा गरीब नवाज ने दुनिया से कब पर्दा किया, यह किसी को नहीं पता था. यही वजह है कि ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स 6 दिन मनाया जाने लगा.

इसे भी पढ़ें - अजमेर उर्स : देशभर से आए कलंदरों ने निभाई 800 साल पुरानी परंपरा, दिखाए हैरतअंगेज कारनामे - AJMER URS 2025

ऐसे शुरू हुआ सूफी का सफर : काजमी बताते हैं कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म इराक के संदल शहर में हुआ था. 14 वर्ष की आयु में उनके माता-पिता उन्हें छोड़ दुनिया से रुखसत हो गए. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अपने गुजरे के लिए बागवानी किया करते थे. विरासत में उन्हें एक पवन चक्की और एक बाग मिला था. आम इंसान की तरह जीवन बसर कर रहे ख्वाजा का जीवन उस वक्त बदल गया, जब उनकी मुलाकात संत इब्राहिम कंदोजी से हुई. इस मुलाकात के बाद ख्वाजा गरीब नवाज का मन अध्यात्म में लग गया.

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने अपना बाग और पवन चक्की बेच दी और उससे मिले पैसों को गरीब और यतीमों में बांट दिया. वही, कुछ पैसे उन्होंने अपनी यात्रा के लिए रख लिए. ख्वाजा की सूफी सफर की यात्रा यहां से शुरू हुई थी. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने सबसे पहले मक्का और मदीना में हाजिरी दी. इस यात्रा में आध्यात्मिक गुरु पीर उस्मान हारुनी मिले. अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश से ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अपने फुफेरे भाई फखरुद्दीन गुर्देजी के साथ हिंदुस्तान के लिए रवाना हुए.

इसे भी पढ़ें - ख्वाजा गरीब नवाज की मजार से उतारा संदल, जायरीनों में किया गया तकसीम - 813TH URS

पैदल लंबी यात्रा करके मार्ग में इंसानियत और मोहब्बत का संदेश देते हुए ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेर पहुंचे और यही के होकर रह गए. यहां भी उन्होंने इंसान को इंसान बनाने की शिक्षा दी. यह गरीब नवाज की शिक्षाएं ही हैं कि आज उनकी दरगाह में किसी भी जाति बिरादरी का फर्क नहीं समझा जाता है. ख्वाजा के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं.

अजमेर : देशभर की तमाम दरगाहों में एक या दो दिन उर्स मनाया जाता है, लेकिन ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में छह दिन उर्स मनाने की परंपरा है. वहीं, ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 813वें उर्स की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में गरीब नवाज के चाहने वाले देश-दुनिया से दरगाह में हाजिरी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं. इनमें से ज्यादातर जायरीन छह दिनों तक अजमेर रहकर हर दिन गरीब नवाज की चौखट चूमते हैं और रात को होने वाली कव्वालियों में खोकर रूहानी फैज पाते हैं. खैर, आज हम आपको छह दिन उर्स मनाने के पीछे के मकसद और ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सूफियाना सफर के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.

देश-दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है. दरगाह के दरवाजे हमेशा आम और खास सभी के लिए खुले रहते हैं. इसलिए कहा जाता है कि 'ख्वाजा तेरे रोजे पर शाहों के घराने आते हैं, मिलने का बहाना होता है, तकदीर बनाने आते हैं.' मान्यता है कि गरीब नवाज नेक नीयत से आने वाले हर शख्स की झोली खुशियों से भरते हैं. खासकर उर्स के छह दिन दरगाह में चारों ओर रूहानी फैज बरसती है.

इसे भी पढ़ें - ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में इंद्रेश कुमार व केंद्रीय मंत्री पासवान की ओर से चढ़ाई गई चादर - AJMER DARGAH 813TH URS

36 वर्ष की आयु में अजमेर आए ख्वाजा : दरगाह के खादिम सैयद फकर काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज बगदाद से ईरान-इराक होते हुए समरकंद, बुखारा के रास्ते काबुल और कंधार तक आए थे. वहां से ताशकंद गए और फिर वापस काबुल लौट आए. उसके बाद लाहौर होते हुए दिल्ली पहुंचे और फिर दिल्ली से अजमेर चले आए. 36 वर्ष की आयु में ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर आए थे.

गुफा में की 40 दिनों तक इबादत : काजमी ने बताया कि अजमेर आने के बाद ख्वाजा गरीब नवाज सबसे पहले औलिया मस्जिद में ठहरे थे. उसके बाद वो आना सागर के समय एक पहाड़ी की गुफा में रहने लगे, जहां गरीब नवाज ने 40 दिन तक इबादत की थी. उस स्थान को ख्वाजा गरीब नवाज का चिल्ला कहा जाता है. ख्वाजा के चाहने वाले उन्हें गुफा से यहां लेकर आए, जहां आज दरगाह है. यहीं रहकर गरीब नवाज इबादत किया करते थे और लोगों के दुख तकलीफ सुनकर उसे दूर किया करते थे. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज ने रजब का चांद देखकर अपने शिष्यों को कहा कि वे याद-ए-इलाही की इबादत के लिए गुजरे में बैठने जा रहे हैं. इसलिए किसी को भी भीतर नहीं आने दिया जाए.

Ajmer Urs 2025
ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह (ETV BHARAT AJMER)

इसे भी पढ़ें - उर्स 813: रजब का चांद दिखने के साथ ही ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का हुआ आगाज - AJMER DARGAH 813TH URS BEGINS

रजब के चांद से छह दिन होता है उर्स : खादिम सैयद फकर काजमी ने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज रजब के चांद की तारीख से 5 रजब तक अपने हुजरे (कमरे) में रहे. छठे दिन हमरे से जब कोई आवाज भीतर से नही आई, तो उनके शिष्यों को चिंता होने लगी. उसके बाद सभी शिष्यों ने मिलकर तय किया कि हुजरे को खोला जाए. हुजरे को सबकी राय से खोला गया, तब ख्वाजा गरीब नवाज इस दुनिया से पर्दा कर चुके थे.

अल्लाह का दोस्त, अल्लाह की मोहब्बत में अल्लाह से जा मिला : उनके शिष्य उनके चमकते हुए चेहरे को हैरानी से देख रहे थे. ख्वाजा गरीब नवाज की पेशानी पर लिखा था कि अल्लाह का दोस्त, अल्लाह की मोहब्बत में अल्लाह से जा मिला. उन्होंने बताया कि विगत 6 दिनों में ख्वाजा गरीब नवाज ने दुनिया से कब पर्दा किया, यह किसी को नहीं पता था. यही वजह है कि ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स 6 दिन मनाया जाने लगा.

इसे भी पढ़ें - अजमेर उर्स : देशभर से आए कलंदरों ने निभाई 800 साल पुरानी परंपरा, दिखाए हैरतअंगेज कारनामे - AJMER URS 2025

ऐसे शुरू हुआ सूफी का सफर : काजमी बताते हैं कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म इराक के संदल शहर में हुआ था. 14 वर्ष की आयु में उनके माता-पिता उन्हें छोड़ दुनिया से रुखसत हो गए. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अपने गुजरे के लिए बागवानी किया करते थे. विरासत में उन्हें एक पवन चक्की और एक बाग मिला था. आम इंसान की तरह जीवन बसर कर रहे ख्वाजा का जीवन उस वक्त बदल गया, जब उनकी मुलाकात संत इब्राहिम कंदोजी से हुई. इस मुलाकात के बाद ख्वाजा गरीब नवाज का मन अध्यात्म में लग गया.

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने अपना बाग और पवन चक्की बेच दी और उससे मिले पैसों को गरीब और यतीमों में बांट दिया. वही, कुछ पैसे उन्होंने अपनी यात्रा के लिए रख लिए. ख्वाजा की सूफी सफर की यात्रा यहां से शुरू हुई थी. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने सबसे पहले मक्का और मदीना में हाजिरी दी. इस यात्रा में आध्यात्मिक गुरु पीर उस्मान हारुनी मिले. अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश से ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अपने फुफेरे भाई फखरुद्दीन गुर्देजी के साथ हिंदुस्तान के लिए रवाना हुए.

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पैदल लंबी यात्रा करके मार्ग में इंसानियत और मोहब्बत का संदेश देते हुए ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेर पहुंचे और यही के होकर रह गए. यहां भी उन्होंने इंसान को इंसान बनाने की शिक्षा दी. यह गरीब नवाज की शिक्षाएं ही हैं कि आज उनकी दरगाह में किसी भी जाति बिरादरी का फर्क नहीं समझा जाता है. ख्वाजा के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं.

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