जयपुर. 26 जून यानि आज अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस (International day against drug abuse and illicit Trafficking) है. इस दिन को ड्रग्स और तस्करी से संबंधित मामलों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है. देश और दुनिया में नशीली दवाओं का सेवन एक चिंता का विषय है, क्योंकि अब ये नशा स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्रों तक पहुंच चुका है. इसका असर राजस्थान में भी देखने को मिल रहा है. आए दिन पुलिस की ओर से ड्रग्स माफियों को पकड़ा जा रहा है, फिर भी प्रदेश के युवाओं को नशे से छुटकारा नहीं मिल रहा है.
26 जून चुनी गई तारीख
प्राचीन काल से ही नशे का सेवन किया जाता था. इसका उद्देश्य समाज को दूषित करना नहीं था, लेकिन आधुनिक समय में नशा की परिभाषा ही बदल गई है. हालात ये हो गए कि बच्चे भी नशे की तरफ आकर्षित होने लगे. इससे आने वाली पीढ़ी पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. इन सबको देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1987 में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें समाज को नशा मुक्त करने की बात कही गई. उसके बाद इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया और 26 जून 1987 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस मनाया गया. इसके बाद प्रत्येक साल 26 जून को यह दिवस मनाया जाने लगा.
वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक से बातचीत
इंटरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग एब्यूज एंड इलिसिट ट्रैफिकिंग (International day against drug abuse and illicit trafficking) पर ETV BHARAT ने वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ. अनिता गौतम से खास बातचीत की. डॉ. अनिता ने बताया कि वर्तमान समाज में नशे की लत ना केवल पुरुषों, महिलाओं में बल्कि बच्चों में भी पाई जा रही है. 2019 में सामाजिक न्याय मंत्रालय और भारत के सशक्तिकरण मंत्रालय की ओर से किए गए सर्वेक्षण में बताया गया है कि नशा किस हद तक किशोरों तक पहुंचता जा रहा है.
देश में नशे का सेवन करने वालों की संख्या...
डॉ. अनिता बताती हैं कि फैक्ट्री या दिहाड़ी पर काम करने बाले किशोर ज्यादातर नशे के शिकार हो रहे हैं. डॉक्टर ने बताया कि नशा करने के कई कारण हो सकते हैं. चाहे वो हर चीज को अनुभव करने की इच्छा हो या फिर पारवारिक और सामाजिक माहौल हो. बच्चों में नशा करने के कारणों की सूची...
नशा करने के कारण
- Peer Pressure- करीब 40 फीसदी बच्चे इसे एक बड़ा कारण मानते हैं.
- किशोर की जिज्ञासु प्रवृति- हर चीज को अनुभव करने की इच्छा.
- पारवारिक एवं सामाजिक माहौल.
- व्यवहार संबंधी परेशानी.
- बाल्यकाल में शारीरिक, भावनात्मक या यौन दुर्व्यवहार.
- वे बच्चे जो ड्रग्स की अवैध सप्लाई में ड्रग माफिया की ओर से इस्तमाल किए जाते हैं.
डॉ. अनिता बताती हैं कि आजकल ड्रिंक्स इतनी सामान्य हो चुकी है कि कोई भी उनका सेवन कर सकता है. पार्टियों में ड्रिंक्स मिलती हैं और बड़े लोग बच्चों के सामने इसका प्रयोग करते हैं, जिससे उन्हें भी इसे अनुभव करने की इच्छा होती है. उनका कहना है कि नशे के दुष्प्रभाव से बच्चों का जीवन खतरे में पड़ सकता है. इसलिए समय रहते उन्हें इससे बाहर निकाल लेना चाहिए.
वहीं, आंकड़ों की बात करें तो
- 27.3% पुरुष, 1.6% महिलाएं और 1.3% बच्चे (10 से 17 वर्ष) वर्तमान में शराब का सेवन करते हैं.
- 5% पुरुष, 0.6% महिलाएं, 0.9% बच्चे एवं किशोर कैनाबिस (भांग- वैध, चरस गांजा-अवैध) का सेवन करते हैं.
- 4% पुरुष, 0.2% महिलाएं, 1.8% किशोर ओपिओइड (स्मैक, डोडा, फूकी, पॉपी हस्क, हेरोइन) का सेवन करते हैं.
- इनहेलेन्ट ड्रग्स की लत बच्चों एवं किशोर वर्ग (1.17%) में वयस्कों (0.58%) की तुलना में अधिक है.
नशे का दुष्प्रभाव
- नशे के सेवन से मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर बढ़ता है और संरचना में परिवर्तन होता है. जिससे भविष्य में नशे की लत को बढ़ावा मिलता है.
- नशे से मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, सोचने समझने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
- एकाग्रता, स्मृति, व्यक्तित्व और व्यवहार में समस्या.
शैक्षिक पतन
- कई नकारात्मक परिणाम (वाहन दुर्घटना या असुरक्षित यौन व्यवहार).
- असामाजिक व्यवहार जैसे कि चोरी करना, आपराधिक प्रवृति का बढ़ना.
बच्चों में नशे की लत के संकेत
- हमेशा च्यूइंग गम, पेपरमिंट या ऐसी किसी भी अन्य चीज का इस्तेमाल करना जो की शराब की गंध को छिपाता है.
- अलग रहना.
- परिवार और दोस्तों के साथ कम समय व्यतीत करना.
- मित्र मंडली में बदलाव.
- किताबों या स्टेशनरी, प्रोजेक्ट या पॉकेट मनी के बहानों से बार-बार पैसे मांगना.
- स्कूल से शिकायतें (व्यवहार संबंधी समस्या, कक्षा में एकाग्रता में कमी, स्कूल में बंक मारना)
- शैक्षणिक योग्यता में कमी.
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इससे रोकने के लिए क्या करें?
- पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन.
- परिवार में बड़े स्वयं नशे की लत को छोड़ उदाहरण बनें.
- बच्चों की संगति और उनके मित्रों की जानकारी रखें.
- माता-पिता और बच्चों के बीच मुक्त संवाद होना चाहिए.
- विशेषज्ञ की मदद लेने में संकोच ना करें.
डॉ. अनिता बताती हैं कि अच्छा संवाद, नशे के दुरुपयोग और इसके बुरे प्रभाव के बारे में बात करना और माता-पिता की ओर से नशा ना लेने का अच्छा उदाहरण स्थापित करने से हमें इस समस्या से लड़ने में मदद मिल सकती है. अगर माता-पिता चाहें तो अपने बच्चों के साथ बात करके उन्हें नशे के बारे में बता सकते हैं. डॉ. अनिता ने कहा कि अच्छा कम्युनिकेशन ही आपको बच्चों के करीब लेकर आएगा, जिससे बच्चे नशे की राह को छोड़ सकेंगे.