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केंद्र सरकार बताए पूर्व राजपरिवारों के साथ सम्पतियों के बंटवारे का ऑरिजिनल कोवेनेन्ट कहां हैः HC

राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व राजपरिवारों की केन्द्र के साथ संपत्ति के बंटवारे को लेकर दायर याचिका पर बुधवार को सुनवाई की. हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को इस पर शपथ पत्र पेश करने को कहा है.

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Published : May 15, 2019, 11:25 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा केन्द सरकार बताए ऑरिजनल कोविनेन्ट कहां है

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व राजपरिवारो और केन्द्र सरकार के बीच हुए संपत्तियों के बंटवारे के मामले में केन्द्र सरकार से शपथ पत्र पेश कर बताने को कहा है की दोनों पक्षों के बीच हुए कोवेनेन्ट की ऑरिजिनल कॉपी कहां है. न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश पीएन मेंदोला की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया की राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में सवाई मानसिंह म्यूजियम ट्रस्ट को आतिश मार्केट के चौक की भूमि के बदले जगतपुरा में 15 बीघा जमीन आवंटित की थी. जबकि आतिश मार्केट की यह भूमि राज्य सरकार के स्वामित्व की ही थी.

वहीं केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि केन्द्र सरकार और पूर्व रियासतों के बीच हुए कोविनेन्ट की ऑरिजनल कॉपी राज्य सरकार के पास है, केन्द्र के पास सिर्फ प्रिंटेड कॉपी ही है. दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से ऐसे कॉपी होने से इनकार किया गया. इस पर अदालत ने केन्द्र सरकार को इस संबंध में शपथ पत्र पेश करने को कहा है.

याचिका में कहा गया की पूर्व राजपरिवारों और सरकार के बीच सम्पतियों के बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था. जिसके तहत कुछ प्रोपर्टी सरकार को मिली थी, लेकिन इस संपत्ति की सूची को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. जिसके चलते विभिन्न अदालतों में इन प्रोपर्टी के चल रहे विवादों को तय करना संभव नहीं है. वहीं पूर्व राजघराने निजी ट्रस्ट बनाकर गलत तरीके से इन प्रोपर्टी को ट्रासंफर कर रहें हैं.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व राजपरिवारो और केन्द्र सरकार के बीच हुए संपत्तियों के बंटवारे के मामले में केन्द्र सरकार से शपथ पत्र पेश कर बताने को कहा है की दोनों पक्षों के बीच हुए कोवेनेन्ट की ऑरिजिनल कॉपी कहां है. न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश पीएन मेंदोला की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया की राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में सवाई मानसिंह म्यूजियम ट्रस्ट को आतिश मार्केट के चौक की भूमि के बदले जगतपुरा में 15 बीघा जमीन आवंटित की थी. जबकि आतिश मार्केट की यह भूमि राज्य सरकार के स्वामित्व की ही थी.

वहीं केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि केन्द्र सरकार और पूर्व रियासतों के बीच हुए कोविनेन्ट की ऑरिजनल कॉपी राज्य सरकार के पास है, केन्द्र के पास सिर्फ प्रिंटेड कॉपी ही है. दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से ऐसे कॉपी होने से इनकार किया गया. इस पर अदालत ने केन्द्र सरकार को इस संबंध में शपथ पत्र पेश करने को कहा है.

याचिका में कहा गया की पूर्व राजपरिवारों और सरकार के बीच सम्पतियों के बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था. जिसके तहत कुछ प्रोपर्टी सरकार को मिली थी, लेकिन इस संपत्ति की सूची को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. जिसके चलते विभिन्न अदालतों में इन प्रोपर्टी के चल रहे विवादों को तय करना संभव नहीं है. वहीं पूर्व राजघराने निजी ट्रस्ट बनाकर गलत तरीके से इन प्रोपर्टी को ट्रासंफर कर रहें हैं.

Intro: जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व राजपरिवारो और केन्द्र सरकार के बीच हुए संपत्तियों के बंटवारे के मामले में केन्द्र सरकार से शपथ पत्र पेश कर बताने को कहा है की दोनों पक्षों के बीच हुए कोविनेन्ट की ऑरिजनल कॉपी कहाँ है। न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश पीएन मेंदोला की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।


Body:सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया की राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में सवाई मानसिंह म्यूजियम ट्रस्ट को आतिश मार्केट के चौक की भूमि के बदले जगतपुरा में 15 बीघा जमीन आवंटित की थी। जबकि आतिश मार्केट की यह भूमि राज्य सरकार के स्वामित्व की ही थी। वहीं केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया की केन्द्र सरकार और पूर्व रियासतों के बीच हुए कोविनेन्ट की ऑरिजनल कॉपी राज्य सरकार के पास है, केन्द्र के पास सिर्फ प्रिंटेड कॉपी ही है। दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से ऐसे कॉपी होने से इनकार किया गया। इस पर अदालत ने केन्द्र सरकार को इस संबंध में शपथ पत्र पेश करने को कहा है।
याचिका में कहा गया की पूर्व राजपरिवारों और सरकार के बीच सम्पतियों के बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था। जिसके तहत कुछ प्रोपर्टी सरकार को मिली थी, लेकिन इस संपत्ति की सूची को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। जिसके चलते विभिन्न अदालतों में इन प्रोपर्टी के चल रहे विवादों को तय करना संभव नहीं है। वहीं पूर्व राजघराने निजी ट्रस्ट बनाकर गलत तरीके से इन प्रोपर्टी को ट्रासंफर कर रहें हैं।


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