कपासन (चित्तौड़गढ़). सर्दी आते ही क्षेत्र के जलाशयों में विदेशी परिंदों की चहचहाहट और उड़ान आम हो गई है. हजारों किलोमीटर अपने परों की ताकत से उड़ान भरकर विभिन्न प्रजाति के रंग-बिरंगे विदेशी पक्षी क्षेत्र के जलाशयों में पहुंच चुके हैं. पानी में अठखेलियां करते पक्षी जिंदगी का बड़ा संदेश देते हैं.
बता दें कि पश्चिमी देशों में परिंदों का आहार बर्फ के नीचे दब जाने और मर जाने के कारण यह भारत जैसे मैदानी इलाके में पलायन कर जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय पक्षी महोत्सव में शिरकत करने वाले सबसे कम उम्र के युवा वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर उज्ज्वल दाधीच ने बताया कि यह प्रवासी पक्षी रूस, मंगोलिया, सेंट्रल यूरोप, सेंट्रल एशिया, बर्मा, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान और कई देशों से आते हैं.
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उज्ज्वल दाधीच ने बताया कि शीतकाल प्रवास बिताने के बाद मार्च में फिर अपने घर को उड़ जाते हैं. मुख्यतः इन प्रवासी पक्षियों में बार हेडेड गूज, ग्रे लेग गूज, ग्रेटर फ्लैमिंगो, ग्रीन शेंक, सैंडपाइपर, रफ, रोजी पेलिकन, कोंब डक, फिरोजीनस डक, नॉर्थरन पिनटेल, रिवर टर्न, पालाज गल्ल, विस्कर टर्न सहित कई प्रजातियों के पक्षी शामिल है.
दाधीच ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि रोजी पेलिकन नामक पक्षी अपने थेली नुमा चोंच में एक साथ 3 किलो तक मछली खा जाता है. मार्श हरियर ऑसप्रे जैसे पक्षी तैरती मछली और उड़ती पक्षियों को अपनी कलाकारी से शिकार बना लेते हैं. मुख्यतः प्रवासी पक्षी छिछले पानी में रहना पसंद करते हैं और खाने के रूप में कीट, छोटी मछलियां और घास को पसंद करते हैं.