जयपुर. कोरोना की दूसरी लहर आई और तबाही का मंजर दिखाकर लौट भी गई. जयपुर में एक परिवार है जो अब तक उस तकलीफ से जूझ रहा है. इस परिवार की ग्रहणी अप्रैल महीने में कोरोना संक्रमण से ग्रसित होकर अस्पताल में भर्ती हुई थी, लेकिन वह अब तक भी घर नहीं लौटी है. परिवार का मुखिया काम-धंधा छोड़ तीमारदार बना हुआ है, बेटी पढ़ाई के साथ घर के कामकाज में जुटी है.
पूरे देश में कोरोना दूसरी लहर ने कोहराम मचाया था. ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड को लेकर त्राहि-त्राहि मची. इसके साथ देश में वैक्सीनेशन का दौर भी चलता रहा. उसमें भी तमाम उतार-चढ़ाव देखने को मिले. दूसरी लहर में कई परिवारों ने संघर्ष किया. कुछ ने अपनों को खोया, तो एक परिवार ऐसा भी है जो अभी भी कोरोना से जंग लड़ रहा है.
अप्रैल महीने में जयपुर के जगतपुरा निवासी गुमान सिंह की धर्मपत्नी प्रमिला सिंह कोरोना संक्रमण की शिकार हुई थीं. गुमान सिंह ने प्रदेश के सबसे बड़े कोविड केयर सेंटर आरयूएचएस में पत्नी को भर्ती कराया. पत्नी कोरोना संक्रमण से तो मुक्त हो गई, लेकिन पोस्ट कोविड-19 के दौर से अभी भी गुजर रही है. प्रमिला बीते 4 महीने से अस्पताल में भर्ती हैं. नतीजन परिवार की पूरी जीवन शैली बदल गई है.
पूरे परिवार की जीवन शैली बदली
ईटीवी भारत गुमान सिंह के घर पहुंचा तो घर का नजारा कुछ और ही देखने को मिला. जिस रसोई में प्रमिला सबके लिए भोजन पकाया करती थी, वहां गुमान सिंह की 72 वर्षीय बुजुर्ग मां काम करती दिखीं. जिस बेटी ने कभी खाना नहीं पकाया था, वह 4 महीने से परिवार के सदस्यों के दोनों समय का भोजन बना रही है. गुमान सिंह खुद उत्तर प्रदेश में ट्यूरिंग वर्क किया करते थे, वे अपनी पत्नी की सेवा में जुटे हुए हैं. प्रमिला अस्पताल में कोरोना को हराने के लिए जंग लड़ रही है.
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गुमान सिंह ने बताया कि 23 अप्रैल को प्रमिला को अस्पताल ले जाया गया था. डॉक्टर भी उनकी बीमारी को समझ नहीं पा रहे हैं. अब उन्होंने भगवान के भरोसे छोड़ रखा है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में जब हर दिन 2000 मरीज भर्ती रहते थे, उस दौर में वे लोग वहां पहुंचे थे. आज अस्पताल सूना है, लेकिन उनकी धर्मपत्नी को अब तक अस्पताल से छुट्टी नहीं मिली है.
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जन्मदिन, सालगिरह सब अस्पताल में
इस दौरान हजारों मरीज यहां से ठीक हो कर गए. कई पॉजिटिव मरीज काल का ग्रास बन गए. इन हालात ने हौसले भी पस्त किये. लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिनके लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया जाता है. उन्होंने बताया कि नवरात्र करते हुए उनकी पत्नी को ये तकलीफ हुई. उसके बाद समय सिर्फ अस्पताल में बीता. इस दौरान घर के हर एक व्यक्ति का जन्मदिन और वैवाहिक वर्षगांठ अस्पताल में ही मनाई गई.
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गुमान सिंह का 4 महीने में एक अनुभव ये भी रहा कि अस्पताल में हर जाति, धर्म, वर्ग, भाषा के लोग पहुंचे. वे अस्पताल में जिस तरह एक दूसरे की मदद कर रहे थे, उससे ये सिद्ध हो गया कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है. इसी धर्म को निभाते हुए डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे थे और तीमारदार एक दूसरे की मदद कर रहे थे.
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बहरहाल, एक आम व्यक्ति की जीवन शैली कोरोना काल में पूरी तरह बदल गई. लोग कोरोना से अभी भी संघर्ष कर रहे हैं. संघर्ष के दौर ने यही संदेश दिया है कि हौसलों के दम पर ही कोरोना से जंग जीती जा सकती है.