जयपुर . राजनीति के मैदान में गठबंधन फार्मूले के जरिए सियासी जीत का सेहरा बांधने का काम नया नहीं रहा है. इसी फॉर्मूले के जरिए केंद्र से लेकर राज्यों में सरकारें बनती रही हैं. लेकिन, बात अगर राजस्थान की हो तो यहां के सियासी जमीन पर जन्मी राजनीतिक पार्टी से गठबंधन का फार्मूला पहली बार देखने को मिल रहा है. लोकसभा के राजनीतिक मैदान को साधने के लिए भाजपा ने हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के साथ गठबंधन किया है.
इस गठबंधन ने जहां सियासी उबाल ला दिया है, वहीं, कई तरह के राजनीतिक कयास भी लगाए जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव 2019 को साधते हुए केंद्र में सत्ता को बरकरार रखने की कोशिश में जुटी भाजपा राजस्थान में मिशन 25 को लेकर मैदान में उतरी है. इस बार भी इस मिशन को पूरा करते हुए भाजपा 2014 के प्रदर्शन को दोहराने के फिराक में है. माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को लेकर शुरू हुए घमासान के बीच जाट मतदाताओं के साथ ही कई सीटों के समीकरणों को साधने के लिए भाजपा ने रालोपा के साथ गठबंधन किया है. इस गठबंधन के तहत रालोपा के लिए नागौर की सीट को भाजपा ने छोड़ दिया है. इस सीट पर हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़ेंगे और भाजपा समर्थन करेगी. जबकि, 24 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ेगी. चुनावी जमीन को साधने के फेर में हुए इस गठबंधन ने सियासी पारे को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है. इस बीच ये चर्चा भी शुरू हो चुकी है कि आखिर लोकसभा चुनाव के बीच हनुमान बेनीवाल की पार्टी इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो गई कि इससे गठबंधन के लिए पहले कांग्रेस ने कोशिश की. लेकिन, कामयाबी भाजपा को हासिल हुई है.
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी नई पार्टी रालोपा के साथ मैदान में उतरे हनुमान बेनीवाल ने भले ही तीन सीटों पर जीत हासिल की हो. लेकिन, उनकी पार्टी ने कई सीटों के चुनावी समीकरणों पर असर डाला था. रालोपा से उतरे प्रत्याशियों ने राज्य की कई विधानसभा सीटों पर वोट काटते हुए दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया था. इस चुनाव में रालोपा तीन सीटों पर जीत हासिल करते हुए करीब 4 फीसदी वोट शेयर हासिल करने वाली राजस्थान की चौथी पार्टी बन गई थी. जानकारों की मानें तो बेनीवाल की पार्टी का जाट बैल्ट के मतदाताओं के बीच असर है. विधानसभा के बाद अब लोकसभा के सियासी जमीन पर भी रालोपा के प्रत्याशी उतारने का एलान करने के बाद दोनों ही पार्टियों के बीच मंथन का दौर शुरू हो गया था. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जाट वोट बैंक को साधने के लिए इस पार्टी पर नजर बनाए हुए थे. इस बीच राजस्थान में जब रालोपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चाओं ने जोर पकड़ा तो राजनीतिक कयासों का दौर भी तेज हो गया.
लेकिन, दोनों पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे पर पेच फंसने के बाद गठबंधन पर सहमति नहीं बन पाई. इस संबंध में हनुमान बेनीवाल का कहना है कि उन्होंने कांग्रेस से 7 सीटों की मांग की थी. लेकिन, कांग्रेस केवल 3 सीटें ही देने को तैयार थी. साथ ही बेनीवाल को अजमेर सीट से मैदान में उतरने के लिए कह रही थी. बेनीवाल का कहना है कि इस वजह से उन्होंने कांग्रेस के गठबंधन का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. इसके बाद माना जा रहा था कि बेनीवाल की पार्टी अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी. लेकिन, अचानक बदले समीकरण के बीच हनुमान बेनीवाल और भाजपा के बीच गठबंधन के फार्मूले पर सहमति बन गई. जिसका एलान बेनीवाल के साथ ही भाजपा राजस्थान चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर, प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी ने संयुक्त रूप से कर दिया. राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस गठबंधन के बाद कांग्रेस की चुनावी राह आसान नहीं रह गई है. कई सीटों पर इस गठबंधन का असर भविष्य के दिनों में देखने को मिल सकता है.
1990 में जनता दल से किया गठबंधन
वहीं, बात इससे पहले की हो तो राजस्थान में सरकार बनाने को लेकर भाजपा 1990 में इस फार्मूले को अपना चुकी है. उस दौरान चुनाव परिणाम आने के बाद सरकार बनाने के लिए भाजपा और जनता दल ने गठबंधन किया था. जिसके बाद राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी. लेकिन, इस गठबंधन के कुछ महीने बाद ही केंद्र में भाजपा ने तत्कालीन वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. जिसके बाद राज्य में जनता दल ने भी भैरोंसिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद प्रदेश में जनता दल टूट गया था. जिसके बाद एक गुट ने भैरोंसिंह सरकार को समर्थन कर दिया था, जिसके कारण सरकार बच गई थी.