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Dussehra 2022: आज करें देवी अपराजिता की पूजा, हर क्षेत्र में मिलेगी सफलता

शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी की आराधना के महापर्व में देवी के अलग-अलग स्वरूप की पूजा होती है और दसवें दिन यानी कि दशमी को दशांश हवन होता है. विजयादशमी के दिन इन नौ स्वरूपों से ही मिलकर प्रकट हुई मां अपराजिता की भी पूजा (Maa Aparajita) होती है. जानिए इस दिन क्यों होती है मां अपराजिता की पूजा...

Vijayadashami 2022
देवी अपराजिता
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Published : Oct 5, 2022, 8:56 AM IST

बीकानेर. मनवांछित फल की कामना और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मंगल जीवन की अभिलाषा से शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना और मंत्र और पाठ किए जाते हैं. 2 दिन की पूजा अर्चना के बाद विजयादशमी को दशांश हवन के साथ ही पूजा अनुष्ठान पूरा होता है. विजयादशमी यानी कि दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक, रावण पर भगवान राम की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. लेकिन विजयादशमी का खास महत्व देवी अपराजिता (Maa Aparajita) की पूजा से भी जुड़ा हुआ है. देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की नवरात्रि में पूजा होती है और इन नौ स्वरूपों से ही देवी अपराजिता प्रकट हुई.

शत्रु दमन के लिए होती है पूजा: पचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि कि वैसे तो नाम से ही आभास हो जाता है कि अपराजिता का अर्थ है जिसकी कभी पराजय नहीं होती. उन्होंने बताया कि शत्रु दमन, किसी प्रकार की अड़चन और वर्तमान में चुनाव में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भी मां अपराजिता की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सात्विक तरीके से षोडशोपचार के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का महत्व है. भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा की थी और रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसका जिक्र मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत में मिलता है.

पंडित राजेंद्र किराडू

पढ़ें:Dussehra 2022: विजयादशमी पर क्यों होता है शस्त्र पूजन, जानिए इसके पीछे का कारण

अपराजिता के पुष्प: पंडित किराडू ने बताया कि अपराजिता नाम से पुष्प भी होते हैं. जिन्हें विष्णुक्रांता और शंखपुष्पी भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा अर्चना में इन पुष्पों का अर्चन का विशेष महत्तम है. अपराजिता के साथ ही भगवान विष्णु और भगवान शंकर को भी अपराजिता के पुष्प काफी प्रिय है. इसका जिक्र हमारे शास्त्रों में मिलता है. जहां अपराजिता स्त्रोत से मां अपराजिता का पूजन होता है.

उड़द से बने मिठाई का भोग: उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता को उड़द से बनी मिठाई और लापसी का भोग लगाया जाता है. देवी अपराजिता 10 भुजाएं धारण किए हुए हैं और उनके हाथ में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं. देवी अपराजिता सिंह की सवारी करती हैं.

विजयादशमी के दिन पूजन का खास महत्व: पंडित किराडू ने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा भगवान राम ने विजयादशमी के दिन की थी और उस दिन उनकी पूजा का खास महत्व है. वे कहते हैं कि देवी अपराजिता की पूजा करने से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अलग-अलग प्रकार के विकार नष्ट होते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ लोग वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी के अवतरण दिवस पर भी देवी अपराजिता की पूजा करते है. उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में देवी अपराजिता की पूजा आमतौर पर साधक लोग करते हैं.

बीकानेर. मनवांछित फल की कामना और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मंगल जीवन की अभिलाषा से शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना और मंत्र और पाठ किए जाते हैं. 2 दिन की पूजा अर्चना के बाद विजयादशमी को दशांश हवन के साथ ही पूजा अनुष्ठान पूरा होता है. विजयादशमी यानी कि दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक, रावण पर भगवान राम की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. लेकिन विजयादशमी का खास महत्व देवी अपराजिता (Maa Aparajita) की पूजा से भी जुड़ा हुआ है. देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की नवरात्रि में पूजा होती है और इन नौ स्वरूपों से ही देवी अपराजिता प्रकट हुई.

शत्रु दमन के लिए होती है पूजा: पचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि कि वैसे तो नाम से ही आभास हो जाता है कि अपराजिता का अर्थ है जिसकी कभी पराजय नहीं होती. उन्होंने बताया कि शत्रु दमन, किसी प्रकार की अड़चन और वर्तमान में चुनाव में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भी मां अपराजिता की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सात्विक तरीके से षोडशोपचार के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का महत्व है. भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा की थी और रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसका जिक्र मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत में मिलता है.

पंडित राजेंद्र किराडू

पढ़ें:Dussehra 2022: विजयादशमी पर क्यों होता है शस्त्र पूजन, जानिए इसके पीछे का कारण

अपराजिता के पुष्प: पंडित किराडू ने बताया कि अपराजिता नाम से पुष्प भी होते हैं. जिन्हें विष्णुक्रांता और शंखपुष्पी भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा अर्चना में इन पुष्पों का अर्चन का विशेष महत्तम है. अपराजिता के साथ ही भगवान विष्णु और भगवान शंकर को भी अपराजिता के पुष्प काफी प्रिय है. इसका जिक्र हमारे शास्त्रों में मिलता है. जहां अपराजिता स्त्रोत से मां अपराजिता का पूजन होता है.

उड़द से बने मिठाई का भोग: उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता को उड़द से बनी मिठाई और लापसी का भोग लगाया जाता है. देवी अपराजिता 10 भुजाएं धारण किए हुए हैं और उनके हाथ में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं. देवी अपराजिता सिंह की सवारी करती हैं.

विजयादशमी के दिन पूजन का खास महत्व: पंडित किराडू ने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा भगवान राम ने विजयादशमी के दिन की थी और उस दिन उनकी पूजा का खास महत्व है. वे कहते हैं कि देवी अपराजिता की पूजा करने से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अलग-अलग प्रकार के विकार नष्ट होते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ लोग वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी के अवतरण दिवस पर भी देवी अपराजिता की पूजा करते है. उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में देवी अपराजिता की पूजा आमतौर पर साधक लोग करते हैं.

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