भीलवाड़ा. भीलवाड़ा में हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Bhilwara) किसानों के लिए आय बढ़ाने का स्रोत बनती जा रही है. जिले के शाहपुरा क्षेत्र में एक किसान ने परंपरागत खेती छोड़कर पिछले सीजन में हल्दी की फसल बोई थी. इस खबर को ईटीवी भारत पर प्रमुखता से दिखाया था. ईटीवी भारत की खबर से प्रेरित होकर 20 से अधिक स्थानीय किसानों ने इस वर्ष हल्दी की फसल बोई है. यह फसल अब पकने को तैयार है.
इस मौके पर किसानों ने ईटीवी भारत से खास बातचीत (Interaction with turmeric farmers of Bhilwara) करते हुए कहा कि ईटीवी भारत की खबर से प्रेरणा ( Effect of ETV bharat rajasthan news) लेकर उन्होंने खेती में नवाचार किया और हल्दी की फसल की बुआई की. भीलवाड़ा का शाहपुरा क्षेत्र अब हल्दी की फसल का हब बनता जा रहा है. किसानों को उम्मीद है कि हल्दी की फसल से उन्हें अच्छा मेहनताना मिलेगा. किसानों ने कृषि नवाचार की खबर प्रसारित करने के लिए ईटीवी भारत का धन्यवाद किया.
किसान गोपाल ने किया था नवाचार
भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा क्षेत्र के पनोतिया गांव के किसान गोपाल कुमावत ने बीते साल परंपरागत खेती छोड़कर हल्दी की फसल बोई थी. आधुनिक किसान गोपाल के इस कद को ईटीवी भारत ने प्रसारित किया. खबर प्रसारित होने के बाद न केवल भीलवाड़ा बल्कि अजमेर और चित्तौड़गढ़ जिले के किसान भी मोटिवेट हुए और उन्होंने भी हल्दी की फसल में हाथ आजमाए हैं. इस तरह भीलवाड़ा जिले शाहपुरा क्षेत्र हल्दी की फसल का हब बनता जा रहा है.
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ईटीवी भारत पर खबर देखकर किया प्रयोग..
हल्दी की फसल बोने वाले किसान दिनेश चंद्र ने कहा कि मैंने बीते साल ईटीवी भारत पर हल्दी उगले सोना खबर देखी. उससे प्रेरणा लेकर मैंने 2 बीघा में हल्दी की फसल की बुवाई की है. मुझे उम्मीद है कि अच्छा प्रोडक्शन होगा. हल्दी के एक पौधे के नीचे एक से डेढ़ किलो वजन की फसल पक चुकी है. इस फसल में खर्चा कम आता है और दवाई की जरूरत भी नहीं रहती. सिर्फ पानी व बीज में ही खर्चा ज्यादा होता है. मैं किसानों से अपील करता हूं कि परंपरागत खेती छोड़ नवाचार करें तो अच्छा मेहनताना मिल सकता है. इस फसल में वर्षा ऋतु में पानी की कम जरूरत होती है सिर्फ गर्मी में पानी की जरूरत होती है और अच्छी उपज होती है. राजस्थान में मुद्रादायिनी फसलें (money making crops in rajasthan) अब किसानों को लुभा रही हैं और किसान परंपरागत खेती के अलावा कृषि में अभिनव प्रयोग कर रहे हैं.
किसान वीडियो कॉल कर समझ रहे फसल की बारीकियां..
ईटीवी भारत की टीम भीलवाड़ा के शाहपुरा इलाके में पहुंची, जहां किसान गोपाल कुमावत ने कहा कि संचार के युग में लोग कृषि नवाचार के मायने समझ रहे हैं और प्रेरित हो रहे हैं. खबर दिखाए जाने के बाद बहुत से किसानों ने हल्दी की फसल उपजाने का काम किया है. उन्होंने कहा कि ईटीवी भारत पर खबर दिखाए जाने के बाद किसान मेरे संपर्क में आए और यहां से हल्दी के बीज लेकर गए. पिछले साल तो मेरी सारी उपज बीज के रूप में ही बिक गई. यहां तक कि भीलवाड़ा और अजमेर जिले के सैंकड़ों किसान ने मुझसे बीज लिया और हल्दी की बुवाई की है. दूर दराज के किसान वीडियो कॉलिंग के जरिये इस फसल की जानकारी ले रहे हैं.
हल्दी की फसल में दवा देने की जरूरत नहीं..
इस वर्ष फसल बोने वाले किसान ने कहा कि ईटीवी भारत पर मैंने खबर देखी है. परंपरागत खेती से नकदी प्राप्त नहीं होती. हल्दी की फसल नकदी फसल है. मैंने इस बार खबर देखने के बाद आधा बीघा खेत में हल्दी की फसल की बुवाई की है. परंपरागत फसल में खर्चा ज्यादा होता है जबकि नवाचार के साथ खेती करने पर खर्चा कम होता है. किसान ने कहा कि मैंने इस वर्ष 25 मई को फसल की बुवाई की है, फसल अब अच्छी लग रही है. हल्दी की फसल में दवाई की जरूरत भी नहीं रहती. सिर्फ पानी की जरूरत रहती है.
फसल की उपज का कम भाव मिलने के सवाल पर गोपाल कुमावत ने कहा कि जयपुर की एक कंपनी ने हमसे संपर्क किया है. यह कंपनी हल्दी का अचार बनाती है. हम सोच रहे हैं कि इलाके में प्रोसेसिंग यूनिट लगे तो हल्दी किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है. साथ ही हल्दी की खेती के क्षेत्र में भीलवाड़ा पहचान भी बना सकता है. भीलवाड़ा में कृषि नवाचार (Agricultural Innovation in Bhilwara) अब राज्य के किसानों के लिए मिसाल बनता जा रहा है.