नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर की आर्कटिक सर्कल के अध्यक्ष ओलाफुर रैगमैन ग्रिमसन के साथ गुरुवार को यहां हुई मुलाकात भारत की वैश्विक पर्यावरण कूटनीति में एक और महत्वपूर्ण कदम है. जयशंकर ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा कि आइसलैंड के पूर्व राष्ट्रपति और आर्कटिक सर्कल के अध्यक्ष ओ आर ग्रिमसन से मिलकर खुशी हुई. आर्कटिक सर्कल की गतिविधियों और गहन सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा हुई.
यह बैठक इस साल मई में नई दिल्ली में आयोजित होने वाले आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम से पहले हो रही है. ग्रिम्सन ने बैठक के बाद अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट किया, "मई मेंआर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम और अगली असेंबली के अलावा विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ चर्चा में भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक महत्व के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल था."
आर्कटिक सर्कल आर्कटिक और प्लानेट अर्थ के भविष्य पर अंतरराष्ट्रीय संवाद और सहयोग का सबसे बड़ा नेटवर्क है. यह सरकारों, संगठनों, निगमों, विश्वविद्यालयों, थिंक टैंकों, पर्यावरण संघों, स्वदेशी समुदायों, चिंतित नागरिकों और अन्य लोगों की भागीदारी वाला एक खुला लोकतांत्रिक मंच है.नई दिल्ली के लिए, आर्कटिक की उभरती गतिशीलता के साथ भारत के सामरिक, पर्यावरणीय और आर्थिक हितों के प्रतिच्छेदन के कारण इस नेटवर्क के साथ जुड़ाव तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है.
Pleased to meet former President of Iceland and Chairman of @_Arctic_Circle @ORGrimsson.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) January 2, 2025
Discussed the activities of the Arctic Circle and the potential for deeper cooperation. pic.twitter.com/mchwJyrSVP
आर्कटिक, जिसे अक्सर 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन का बैरोमीटर' कहा जाता है. भारत सहित दुनिया भर के देशों के लिए महत्वपूर्ण सबक रखता है. आर्कटिक देशों के साथ अपने बढ़ते जुड़ाव के साथ, भारत न केवल वैज्ञानिक सहयोग को प्राथमिकता दे रहा है, बल्कि स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा और संसाधनों के समान उपयोग पर चर्चा में खुद को एक प्रमुख हितधारक के रूप में भी स्थापित कर रहा है.
यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत 2013 से आर्कटिक काउंसिल में एक ओब्जर्वर राष्ट्र रहा है. भारत ने 2022 में अपनी खुद की आर्कटिक नीति भी अपनाई थी.
आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम और पोलर डायलॉग क्या हैं?
आर्कटिक सर्कल फोरम विशेष विषयों पर पूरी दुनिया में आयोजित किए जाते हैं. इन्हें मेजबान देशों की सरकारों, मंत्रालयों और संगठनों के सहयोग से आयोजित किया जाता है. आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम इस साल मई में नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक द्वारा इसकी सह-मेजबानी की जाएगी.
उम्मीद है कि फोरम आर्कटिक में भारत की भूमिका के बढ़ते महत्व पर जोर देगा और जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, विज्ञान और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग के पारस्परिक लाभों को उजागर करेगा.
अक्टूबर 2024 में शुरू किए गए पोलर डायलॉग का मुख्य फोकस आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय, तीसरे ध्रुव क्षेत्र के साथ-साथ दुनिया के अन्य बर्फ से ढके क्षेत्रों पर विज्ञान और रिसर्च सहयोग पर है. वैज्ञानिक समुदाय के साथ रचनात्मक संवाद बढ़ाने के उद्देश्य से उच्च-स्तरीय राजनीतिक नेताओं ने भाग लिया और पोलर डायलॉग के लिए प्रतिबद्धता जताई.
2024 पोलर डायलोग 17-19 अक्टूबर को आइसलैंड के रेक्जाविक में आयोजित आर्कटिक सर्कल असेंबली में हुई, जिसमें कई सेशन, कंसल्टेंट मीटिंग, वर्कशॉप और उच्च-स्तरीय पूर्ण सत्र शामिल थे.
आर्कटिक काउंसिल क्या है?
आर्कटिक काउंसिल एक उच्च-स्तरीय अंतर-सरकारी मंच है जो आर्कटिक सरकारों और आर्कटिक क्षेत्र के स्वदेशी लोगों के सामने आने वाले मुद्दों को संबोधित करता है. वर्तमान में आठ देश आर्कटिक सर्कल पर संप्रभुता का इस्तेमाल करते हैं, और ये परिषद के सदस्य राज्य हैं. ये देश कनाडा, डेनमार्क, फ़िनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका हैं.
पर्यवेक्षक का दर्जा गैर-आर्कटिक राज्यों के लिए खुला है, जिन्हें परिषद द्वारा हर दो साल में एक बार आयोजित होने वाली मंत्रिस्तरीय बैठकों में मंजूरी दी जाती है. पर्यवेक्षकों के पास परिषद में मतदान का कोई अधिकार नहीं है. भारत को 2013 में पर्यवेक्षक राष्ट्र के रूप में शामिल किया गया था.
भारत आर्कटिक काउंसिल के कार्य समूहों के साथ परियोजनाओं में शामिल है और अंतरराष्ट्रीय आर्कटिक विज्ञान समिति (IASC) और Ny-Alesund विज्ञान प्रबंधक समिति (NySMAC) का सदस्य है.
भारत की आर्कटिक नीति क्या है?
2022 में, भारत ने ‘भारत और आर्कटिक: बिल्डिंग ए पार्टनरशिप फॉर सस्टैनेबल डेवलपमेंट' टाइटल से अपनी आर्कटिक नीति जारी की. नीति में छह स्तंभ निर्धारित किए गए हैं. इनमें भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग को मजबूत करना, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक और मानव विकास, परिवहन और संपर्क शासन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग, और आर्कटिक क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षमता निर्माण शामिल है. भारत की आर्कटिक नीति को लागू करने में शिक्षा, अनुसंधान समुदाय, व्यवसाय और उद्योग सहित कई हितधारक शामिल हैं.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, भारत की आर्कटिक नीति का उद्देश्य निम्नलिखित एजेंडे को बढ़ावा देना है:
· आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान और अन्वेषण, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, समुद्री और आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं और दक्षताओं को मजबूत करना. सरकार और शैक्षणिक, अनुसंधान और व्यावसायिक संस्थानों के भीतर संस्थागत और मानव संसाधन क्षमताओं को मजबूत किया जाएगा.
· आर्कटिक में भारत के हितों की खोज में अंतर-मंत्रालयी कोर्डिनेशन.
· आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन के भारत की जलवायु, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव की समझ को बढ़ाना.
· आर्कटिक में बर्फ पिघलने के वैश्विक शिपिंग मार्गों, ऊर्जा सुरक्षा और खनिज संपदा के दोहन से संबंधित भारत के आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक हितों पर पड़ने वाले प्रभावों पर बेहतर विश्लेषण, पूर्वानुमान और समन्वित नीति निर्माण में योगदान देना.
· ध्रुवीय क्षेत्रों और हिमालय के बीच संबंधों का अध्ययन करना.
· वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान से विशेषज्ञता प्राप्त करते हुए विभिन्न आर्कटिक मंचों के तहत भारत और आर्कटिक क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को गहरा करना.
· आर्कटिक काउंसिल में भारत की भागीदारी बढ़ाना और आर्कटिक में जटिल शासन संरचनाओं, प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों और क्षेत्र की भू-राजनीति की समझ में सुधार करना.
गौरतलब है कि आर्कटिक जलवायु परिवर्तन के लिए एक संकेतक के रूप में कार्य करता है. आर्कटिक जलवायु में परिवर्तन दक्षिण एशिया में मानसून पैटर्न को प्रभावित करते हैं, जो भारत की कृषि और जल संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण हैं.
भारत नॉर्वे के स्वालबार्ड में अपने हिमाद्री अनुसंधान केंद्र के माध्यम से ध्रुवीय अनुसंधान कर रहा है. आर्कटिक हितधारकों के साथ सहयोग भारत की ध्रुवीय प्रक्रियाओं और भारतीय उपमहाद्वीप पर उनके प्रभाव की समझ को बढ़ाता है.
आर्कटिक तेल, गैस और दुर्लभ खनिजों के समृद्ध भंडार का घर है. जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग बर्फ के आवरण को कम करती है, ये संसाधन तेजी से सुलभ होते जा रहे हैं. भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग इसे रुचि का एक प्रमुख क्षेत्र बनाती है.
आर्कटिक में बर्फ पिघलने से नए समुद्री मार्ग खुल रहे हैं, जैसे कि उत्तरी समुद्री मार्ग, जो यूरोप और एशिया के बीच शिपिंग समय को काफी कम कर सकता है, जिससे भारत के व्यापार को लाभ होगा.