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सांची में लगा 'भैया जी का अड्डा', मतदाताओं ने कहा- क्षेत्र का विकास जीतेगा उनका विश्वास

रायसेन जिले की सांची विधानसभा में भैय्या जी का अड्डा लगा. इस दौरान लोगों ने क्षेत्र की समस्याओं समेत चुनाव में अहम रहने वाले मुद्दों को लेकर बात की.

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भैया जी का अड्डा
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Published : Oct 27, 2020, 6:01 PM IST

रायसेन। मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020 में मतदान का दिन नजदीक आने के साथ ही चुनाव प्रचार जोरों पर है. वहीं, राजनीतिक बयानबाजी का दौर भी खूब चल रहा है. चुनाव प्रचार में प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक रखी है. हर दांव-पेंच आजमाए जा रहे हैं. तमाम राजनीतिक गतिविधियों के बीच ईटीवी भारत की टीम रायसेन जिले की सांची विधानसभा पहुंची. यहां भैय्या जी का अड्डा लगा. जिसमें लोगों ने चुनावी मुद्दों पर बात की.

भैया जी का अड्डा

ये भी पढ़ेंः सांची में चौधरी VS चौधरी, 'गौरी' तय करेंगे 'प्रभु' का भविष्य

विकास जीतेगा मतदाता का विश्वास

लोगों का कहना है कि पर्यटन स्थल होने के बाद भी सांची में विकास नहीं हो पाया है. तमाम नेता खोखले वादे करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है. क्षेत्र में सड़क, बिजली, पानी समेत रोजगार की भारी समस्या है. इस बार के चुनाव में जो भी प्रत्याशी इन समस्याओं को दूर करेगा उसी को वोट दिया जाएगा.

Political history
सियासी इतिहास

रोजगार शिक्षा अहम मुद्दा

वहीं युवाओं का कहना है कि क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलना चाहिए. क्षेत्र में फैक्ट्री और मिले धीरे-धीरे बंद होती जा रहीं हैं, जिसकी वजह से उन्हें रोजगार के लिए पलायन करना पड़ रहा है. कोरोना काल में हालात वैसे ही खराब हैं, ऐसे में अगर रोजगार नहीं मिलेगा तो कैसे काम चलेगा. लिहाजा इस चुनाव में रोजगार बड़ा मुद्दा रहने वाला है.इसके अलावा क्षेत्र में कोई बड़ा शिक्षा संस्थान नहीं है. यहां के छात्रों को आगे की पढ़ाई के लिए विदिशा और भोपाल जैसे शहरों को रुख करना पड़ता है.

ये भी पढ़ेंः राजनीति नहीं छोड़ी गंगा मैया की सेवा के लिए ब्रेक लिया, 2024 में लड़ूंगी चुनाव: उमा भारती

स्थानीय राजनीति भी अहम

एक मतदाता ने बताया कि सांची विधानसभा के नेता दो जिलों से आते हैं, जिनमें एक तो रायसेन की सांची विधानसभा ही है, वहीं दूसरा विदिशा जिला है. इसलिए कई क्षेत्रों में मतदाता दूसरे जिले के नेताओं के प्रति असहजता का भाव रखते हैं. लिहाजा स्थानीयता का मुद्दा भी अहम है.

दल-बदल का भी असर

मतदाताओं में दल बदल के चलते भी नाराजगी है. लोगों का कहना है कि उन्होंने पांच साल के लिए प्रत्याशी को चुना था. लेकिन दल-बदल के चलते कोरोना काल में उन्हें चुनाव में जाना पड़ा. ये उनका फैसला नहीं है. लिहाजा इसका भी असर पड़ेगा.

चौधरी बनाम चौधरी मुकाबला

इस बार सांची में चौधरी और चौधरी के बीच मुकाबला है. बीजेपी ने प्रभुराम चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. जबकि कांग्रेस ने मदनलाल चौधरी पर दांव लगाया है. ये सीट प्रभुराम चौधरी के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी. जिसके चलते अब यहां उपचुनाव हो रहा है.

बीजेपी के लिए कई चुनौतियां

सांची विधानसभा सीट पर जीत की दहलीज तक पहुंचने में बीजेपी को कई तरह की चुनौतियों को सामना करना पड़ सकता है. पहली तो ये है कि स्थानीय लोगों में दलबदल के चलते कहीं ना कहीं नाराजगी है. जबकि बीजेपी को भितरघात का खतरा भी है. सियासी गलियारों में ये सुगबुगाहट है कि बीजेपी नेता और सांची विधानसभा से विधायक रहे गौरीशंकर शेजवार और उनके बेटे मुदित शेजवार नाराज हैं. जिसके चलते चुनाव में वे ज्यादा सक्रिय नहीं है.

कांग्रेस की राह भी नहीं आसान

प्रभुराम चौधरी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने सांची विधानसभा सीट से मदनलाल चौधरी पर दांव लगाया है. जो क्षेत्र के लिए प्रभुराम चौधरी की तुलना में बिलकुल नया चेहरा है. साथ ही प्रभुराम चौधरी इस सीट से तीन बार विधायक भी रह चुके हैं. लिहाजा कांग्रेस की राह भी आसान नहीं है.

रायसेन। मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020 में मतदान का दिन नजदीक आने के साथ ही चुनाव प्रचार जोरों पर है. वहीं, राजनीतिक बयानबाजी का दौर भी खूब चल रहा है. चुनाव प्रचार में प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक रखी है. हर दांव-पेंच आजमाए जा रहे हैं. तमाम राजनीतिक गतिविधियों के बीच ईटीवी भारत की टीम रायसेन जिले की सांची विधानसभा पहुंची. यहां भैय्या जी का अड्डा लगा. जिसमें लोगों ने चुनावी मुद्दों पर बात की.

भैया जी का अड्डा

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विकास जीतेगा मतदाता का विश्वास

लोगों का कहना है कि पर्यटन स्थल होने के बाद भी सांची में विकास नहीं हो पाया है. तमाम नेता खोखले वादे करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है. क्षेत्र में सड़क, बिजली, पानी समेत रोजगार की भारी समस्या है. इस बार के चुनाव में जो भी प्रत्याशी इन समस्याओं को दूर करेगा उसी को वोट दिया जाएगा.

Political history
सियासी इतिहास

रोजगार शिक्षा अहम मुद्दा

वहीं युवाओं का कहना है कि क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलना चाहिए. क्षेत्र में फैक्ट्री और मिले धीरे-धीरे बंद होती जा रहीं हैं, जिसकी वजह से उन्हें रोजगार के लिए पलायन करना पड़ रहा है. कोरोना काल में हालात वैसे ही खराब हैं, ऐसे में अगर रोजगार नहीं मिलेगा तो कैसे काम चलेगा. लिहाजा इस चुनाव में रोजगार बड़ा मुद्दा रहने वाला है.इसके अलावा क्षेत्र में कोई बड़ा शिक्षा संस्थान नहीं है. यहां के छात्रों को आगे की पढ़ाई के लिए विदिशा और भोपाल जैसे शहरों को रुख करना पड़ता है.

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स्थानीय राजनीति भी अहम

एक मतदाता ने बताया कि सांची विधानसभा के नेता दो जिलों से आते हैं, जिनमें एक तो रायसेन की सांची विधानसभा ही है, वहीं दूसरा विदिशा जिला है. इसलिए कई क्षेत्रों में मतदाता दूसरे जिले के नेताओं के प्रति असहजता का भाव रखते हैं. लिहाजा स्थानीयता का मुद्दा भी अहम है.

दल-बदल का भी असर

मतदाताओं में दल बदल के चलते भी नाराजगी है. लोगों का कहना है कि उन्होंने पांच साल के लिए प्रत्याशी को चुना था. लेकिन दल-बदल के चलते कोरोना काल में उन्हें चुनाव में जाना पड़ा. ये उनका फैसला नहीं है. लिहाजा इसका भी असर पड़ेगा.

चौधरी बनाम चौधरी मुकाबला

इस बार सांची में चौधरी और चौधरी के बीच मुकाबला है. बीजेपी ने प्रभुराम चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. जबकि कांग्रेस ने मदनलाल चौधरी पर दांव लगाया है. ये सीट प्रभुराम चौधरी के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी. जिसके चलते अब यहां उपचुनाव हो रहा है.

बीजेपी के लिए कई चुनौतियां

सांची विधानसभा सीट पर जीत की दहलीज तक पहुंचने में बीजेपी को कई तरह की चुनौतियों को सामना करना पड़ सकता है. पहली तो ये है कि स्थानीय लोगों में दलबदल के चलते कहीं ना कहीं नाराजगी है. जबकि बीजेपी को भितरघात का खतरा भी है. सियासी गलियारों में ये सुगबुगाहट है कि बीजेपी नेता और सांची विधानसभा से विधायक रहे गौरीशंकर शेजवार और उनके बेटे मुदित शेजवार नाराज हैं. जिसके चलते चुनाव में वे ज्यादा सक्रिय नहीं है.

कांग्रेस की राह भी नहीं आसान

प्रभुराम चौधरी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने सांची विधानसभा सीट से मदनलाल चौधरी पर दांव लगाया है. जो क्षेत्र के लिए प्रभुराम चौधरी की तुलना में बिलकुल नया चेहरा है. साथ ही प्रभुराम चौधरी इस सीट से तीन बार विधायक भी रह चुके हैं. लिहाजा कांग्रेस की राह भी आसान नहीं है.

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