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संस्कृत को लेकर ऐसा जुनून कि छात्रों को शिक्षा देने संस्कार रथ लेकर निकलते हैं शिक्षक संतोषी लाल - morena news

मुरैना के संतोषी लाल शर्मा संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए अहम योगदान दे रहे हैं. सेवानिवृत्ति के बाद भी वे अपना संस्कार रथ लेकर निकलते हैं और छात्रों को संस्कृत की शिक्षा देने के साथ ही उन्हें नशामुक्ति के लिए जागरूक भी करते हैं.

छात्रों को शिक्षा देने संस्कार रथ लेकर निकलते हैं शिक्षक संतोषी लाल
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Published : Sep 5, 2019, 9:27 AM IST

मुरैना। सरकार ने शिक्षक संतोषी लाल शर्मा को भले ही रिटायर कर दिया हो, लेकिन वे रिटायरमेंट के बाद से ही संस्कृत संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल-स्कूल जाकर छात्रों में जाग्रति ला रहे हैं. साथ ही नशे के दुष्परिणामों को लेकर छात्रों को जागरूक करते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं.

शिक्षक संतोषी लाल शर्मा ने सेवानिवृत्ति के बाद सन् 2011 से अभी तक लगभग चार सैकड़ा स्कूलों में अपने अनोखे तरीके से छात्रों को संस्कृत पढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत के गुर भी सिखाए हैं. लगभग चार हजार छात्रों को नशामुक्ति का संकल्प अब तक वे दिला चुके हैं. संतोषी लाल ने संस्कृत के व्याकरण को पहले सूत्रों में संकलित किया, फिर उन्हें गीतों में पिरोया और अब छात्रों के लिए संस्कृत भाषा को सरस बनाकर पढ़ा रहे हैं.

छात्रों को शिक्षा देने संस्कार रथ लेकर निकलते हैं शिक्षक संतोषी लाल

संतोषी लाल शर्मा ने शिक्षक बनकर शासकीय सेवा में लगभग 30 साल संस्कृत पढ़ाई, रिटायरमेंट के बाद जुलाई 2011 से बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के रुझान के दौर में गुमनाम होती संस्कृत को जीवंत करने का बीड़ा उठाया. जब तक शासकीय सेवा में रहे, तब तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए संस्कृत का बखूबी अध्ययन कराया और उसके बाद सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद से ही स्कूल-स्कूल जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेना शुरू कर दिया.

संतोषी लाल शर्मा ने अपने इस काम को निरंतर जारी रखा है और अपने खुद के खर्च पर निःशुल्क संस्कृत पढ़ाते हैं. संस्कृत कैसे लोकप्रिय हो और छात्रों के लिए कैसे संस्कृत मधुर भाषा बने, इसके लिए उन्होंने इसे गीतों का रूप भी दिया है. मुरैना शहर के वार्ड क्रमांक एक मुड़िया खीरे में निवास करने वाले संतोषी लाल शर्मा लगभग 70 साल की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर नियमित रूप से घर से निकलते हैं. साथ ही समाज, संस्कृत, संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो और उसे संजोए रखें, इसके लिए उनके प्रयास आज समाज में सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी हैं.

मुरैना। सरकार ने शिक्षक संतोषी लाल शर्मा को भले ही रिटायर कर दिया हो, लेकिन वे रिटायरमेंट के बाद से ही संस्कृत संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल-स्कूल जाकर छात्रों में जाग्रति ला रहे हैं. साथ ही नशे के दुष्परिणामों को लेकर छात्रों को जागरूक करते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं.

शिक्षक संतोषी लाल शर्मा ने सेवानिवृत्ति के बाद सन् 2011 से अभी तक लगभग चार सैकड़ा स्कूलों में अपने अनोखे तरीके से छात्रों को संस्कृत पढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत के गुर भी सिखाए हैं. लगभग चार हजार छात्रों को नशामुक्ति का संकल्प अब तक वे दिला चुके हैं. संतोषी लाल ने संस्कृत के व्याकरण को पहले सूत्रों में संकलित किया, फिर उन्हें गीतों में पिरोया और अब छात्रों के लिए संस्कृत भाषा को सरस बनाकर पढ़ा रहे हैं.

छात्रों को शिक्षा देने संस्कार रथ लेकर निकलते हैं शिक्षक संतोषी लाल

संतोषी लाल शर्मा ने शिक्षक बनकर शासकीय सेवा में लगभग 30 साल संस्कृत पढ़ाई, रिटायरमेंट के बाद जुलाई 2011 से बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के रुझान के दौर में गुमनाम होती संस्कृत को जीवंत करने का बीड़ा उठाया. जब तक शासकीय सेवा में रहे, तब तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए संस्कृत का बखूबी अध्ययन कराया और उसके बाद सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद से ही स्कूल-स्कूल जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेना शुरू कर दिया.

संतोषी लाल शर्मा ने अपने इस काम को निरंतर जारी रखा है और अपने खुद के खर्च पर निःशुल्क संस्कृत पढ़ाते हैं. संस्कृत कैसे लोकप्रिय हो और छात्रों के लिए कैसे संस्कृत मधुर भाषा बने, इसके लिए उन्होंने इसे गीतों का रूप भी दिया है. मुरैना शहर के वार्ड क्रमांक एक मुड़िया खीरे में निवास करने वाले संतोषी लाल शर्मा लगभग 70 साल की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर नियमित रूप से घर से निकलते हैं. साथ ही समाज, संस्कृत, संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो और उसे संजोए रखें, इसके लिए उनके प्रयास आज समाज में सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी हैं.

Intro:सरकार ने शिक्षक संतोषी लाल शर्मा को भले ही रिटायर कर दिया हो लेकिन संतोषी लाल रिटायरमेंट के बाद से ही संस्कार रक्त लेकर संस्कृत संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल स्कूल जाकर छात्रों में जाग्रति ला रहे हैं । साथी नशा के दुष्परिणामों से छात्रों को अवगत कराते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं शिक्षक संतोषी लाल शर्मा ने सेवानिवृत्ति के बाद सन 2011 से अभी तक लगभग 4 सैकड़ा स्कूलों में अपने अनोखे तरीके से छात्रों को संस्कृत पढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत के गुर भी सिखाए हैं लगभग 4000 छात्रों को नशा मुक्ति का संकल्प दिला चुके हैं संस्कृत के व्याकरण को पहले सूत्रों में संकलित किया फिर उन्हें गीतों में पिरोया और अब छात्रों के लिए संस्कृत भाषा को सरस बनाकर पढ़ा रहे हैं
ए तत्पर रहते हैं






Body:संतोषी लाल शर्मा ने शिक्षक बन कर शासकीय सेवा में लगभग 30 वर्ष संस्कृत पढ़ाई और सेवानिवृत्ति के बाद जुलाई 2011 से बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के रुझान के दौर में गुमनाम होती संस्कृत को जीवंत करने का बीड़ा उठाया जब तक शासकीय सेवा में रहे तब तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए संस्कृत का बखूबी अध्ययन कराया और उसके बाद सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद से ही विद्यालय विद्यालय जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेना प्रारंभ कर दिया साथ ही आने वाली पीढ़ी यानी कि छात्रों को नशा के दुष्परिणामों से अवगत कराते हुए न केवल छात्र वर्ग के उनके परिजन और रिश्तेदारों को भी नशे की लत से दूर रखने की सलाह देते हुए 4 हजार से अधिक छात्रों से संकल्प पत्र भरवाए जा चुके हैं संतोषी लाल शर्मा ने अपने इस विधा को निरंतर जारी रखा है और अपने स्वयं के व्यय पर विद्यालय विद्यालय जाकर निशुल्क संस्कृत का अध्ययन कर आते हैं संस्कृत कैसे लोकप्रिय हो और छात्रों के लिए कैसे सरस्वत मधुर भाषा बने इसके लिए उन्होंने इसे गीतों का रूप भी दिया है व्याकरण को गीतों के माध्यम से न केवल सरल रूप से परिभाषित किया बल्कि छात्रों की दिल और दिमाग पर संस्कृत की छाप बनी रहे इसका निरंतर प्रयास किया





Conclusion:मुरैना शहर के वार्ड क्रमांक 1 मुड़िया खीरे में निवास करने वाले संतोषी लाल शर्मा लगभग 70 वर्ष की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर नियमित रूप से घर से निकलते हैं और विभिन्न विद्यालयों में जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं साथ ही समाज संस्कृत संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो और उसे संजोए रखें इसके लिए उनके प्रयास आज समाज में सराहनीय नहीं बल्कि अनुकरणीय भी हैं ।

बाईट - सन्तोषीलाल शर्मा - सेवा निवृत्त संस्कृत शिक्षक निवासी मुड़ियाखेरा मुरैना
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