मुरैना। सरकार ने शिक्षक संतोषी लाल शर्मा को भले ही रिटायर कर दिया हो, लेकिन वे रिटायरमेंट के बाद से ही संस्कृत संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल-स्कूल जाकर छात्रों में जाग्रति ला रहे हैं. साथ ही नशे के दुष्परिणामों को लेकर छात्रों को जागरूक करते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं.
शिक्षक संतोषी लाल शर्मा ने सेवानिवृत्ति के बाद सन् 2011 से अभी तक लगभग चार सैकड़ा स्कूलों में अपने अनोखे तरीके से छात्रों को संस्कृत पढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत के गुर भी सिखाए हैं. लगभग चार हजार छात्रों को नशामुक्ति का संकल्प अब तक वे दिला चुके हैं. संतोषी लाल ने संस्कृत के व्याकरण को पहले सूत्रों में संकलित किया, फिर उन्हें गीतों में पिरोया और अब छात्रों के लिए संस्कृत भाषा को सरस बनाकर पढ़ा रहे हैं.
संतोषी लाल शर्मा ने शिक्षक बनकर शासकीय सेवा में लगभग 30 साल संस्कृत पढ़ाई, रिटायरमेंट के बाद जुलाई 2011 से बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के रुझान के दौर में गुमनाम होती संस्कृत को जीवंत करने का बीड़ा उठाया. जब तक शासकीय सेवा में रहे, तब तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए संस्कृत का बखूबी अध्ययन कराया और उसके बाद सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद से ही स्कूल-स्कूल जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेना शुरू कर दिया.
संतोषी लाल शर्मा ने अपने इस काम को निरंतर जारी रखा है और अपने खुद के खर्च पर निःशुल्क संस्कृत पढ़ाते हैं. संस्कृत कैसे लोकप्रिय हो और छात्रों के लिए कैसे संस्कृत मधुर भाषा बने, इसके लिए उन्होंने इसे गीतों का रूप भी दिया है. मुरैना शहर के वार्ड क्रमांक एक मुड़िया खीरे में निवास करने वाले संतोषी लाल शर्मा लगभग 70 साल की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर नियमित रूप से घर से निकलते हैं. साथ ही समाज, संस्कृत, संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो और उसे संजोए रखें, इसके लिए उनके प्रयास आज समाज में सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी हैं.