झाबुआ। जिले की नवगठित नगर परिषद मेघनगर को अपने ही कार्यालय भवन के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. साल 2015 में ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बनी मेघनगर के विकास के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कई मूलभूत योजनाएं स्वीकृत की. इसके बावजूद अब तक नगर परिषद के लिए भवन नहीं बना है. जिससे स्थानीय लोगों, परिषद के कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
कार्यालय निर्माण के लिए लाखों रुपए स्वीकृत
साल 2015 में नगर परिषद के कार्यालय, शॉपिंग कांप्लेक्स के लिए शासन ने 30 लाख और नगर निकाय से 50 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की थी, जिससे पुराने पंचायत भवन के स्थान पर बड़ा नगर परिषद कार्यालय बनाया जा सके. इस दौरान परिषद का कार्यालय आधा बना गया था, लेकिन निर्माणाधीन नगर परिषद कार्यालय के पास रहने वाले लोगों ने भवन के पिछले भाग में वेंटीलेशन और खिड़कियां ढक रही थी. जिसे लेकर नरेंद्र राठौर और अन्य ने व्यवहार न्यायालय थांदला में दीवानी वाद दायर किया हुआ है.
खिड़कियों के चक्कर में अटका निर्माण कार्य
इस वाद में लोगों ने सुखाधिकार कानून का हवाला देते हुए हवा और प्रकाश के लिए वेंटिलेशन और खिड़कियों के लिए 10 फीट की जगह छोड़ने की मांग की रखी थी, जिस पर नगर परिषद सहमत नहीं थी. इस मामले को लेकर वाद को थाना न्यायालय से आंशिक राहत भी मिली, जिसके बाद नगर परिषद ने अब इस मामले को लेकर जिला न्यायालय में अपील की है.
कम्युनिटी हॉल में संचालित हो रहा परिषद
नगर परिषद भवन निर्माण का विवाद इतना गहराया हुआ है कि पहली परिषद के पांच सालों का कार्यकाल खत्म हो गया, लेकिन नवगठित परिषद के पहले अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और पार्षदों को कार्यालय में बैठने के लिए ना तो रूम नसीब हुआ और ना ही उनके लिए कार्यालय में कभी स्थायी कुर्सियां लग पाई. पहली परिषद को अपना कार्यकाल आम लोगों की सुविधाओं के लिए ग्राम पंचायत द्वारा बनाए गए कम्युनिटी हॉल से पूरा करना पड़ा.
नगर परिषद का स्थायी कार्यालय नहीं
मेघनगर नगर परिषद का गठन हुए 6 साल से ज्यादा का समय बीतने वाला है, लेकिन परिषद को अभी तक अपना कार्यालय नसीब नहीं हुआ. वर्तमान में नगर परिषद का स्थायी कार्यालय नहीं होने से प्रशासनिक कार्यालय रेलवे फाटक के दूसरी ओर बने कम्युनिटी हॉल से संचालित हो रहा है, जबकि स्वच्छता कार्यालय मछली बाजार स्थित अनुसूचित जनजाति के लिए बनाए गए कम्युनिटी हॉल से संचालित हो रहा है. परिषद के पास वाहनों को भी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण स्वच्छता में लगे वाहनों के साथ-साथ अन्य संसाधन कभी मछली बाजार में, तो कभी सड़कों पर रखे जाते हैं.
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नवगठित परिषद के कार्यकाल को खत्म हुए एक साल बीतने को है, इसके बावजूद इस मामले में कोई प्रोग्रेस दिखाई नहीं दे रही है. मामला जिला न्यायालय में चल रहा है, जहां से तय होगा कि आखिर नगर पालिका परिषद का कार्यालय कब बनकर तैयार होगा और कब परिषद के कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों को इसका लाभ मिलेगा. फिलहाल नगर परिषद भवन, सह शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण कब तक पूरा होगा यह कहना मुशकिल है. वहीं अधिकारी मामला न्यायालय में है कहकर पल्ला झाड़ रहे है, लेकिन कार्यालय के निर्माण में सरकार के जो लाखों रुपए लगे है, उसकी चिंता किसी को नहीं है.