इंदौर। 12 जनवरी 2020 को मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) के द्वारा एक परीक्षा का आयोजन किया गया था. उस परीक्षा में भील जाति को लेकर आपत्तिजनक गद्यांश आने से काफी विरोध हुआ था. इसके बाद पुलिस ने पूरे मामले में एमपीपीएससी के चेयरमैन, सचिव और परीक्षा नियंत्रण के खिलाफ एससी, एसटी एक्ट सहित विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज किया था. इस पूरे मामले में हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में एक याचिका लगाई गई थी, जिसपर गुरुवार देर शाम फैसला आया है. कोर्ट ने पूरे मामले में दर्ज प्रकरण को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिए हैं.
इस पूरे मामले को लेकर समाज के लोगों ने भी उस समय काफी विरोध प्रदर्शन किया था और लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए प्रदेश सरकार ने इस पूरे मामले में एक्शन लेते हुए एमपीपीएससी के अधिकारियों के खिलाफ एससी, एसटी एक्ट में प्रकरण दर्ज करने के निर्देश जारी कर दिए थे. पुलिस ने एमपीपीएसी के चेयरमैन, सचिव और परीक्षा नियंत्रण के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया था. इस मामले को लेकर अधिकारियों ने हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर की थी, जिसमें गुरुवार देर शाम हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अधिकारियों पर दर्ज एफआईआर को निरस्त कर दिया.
कोर्ट ने क्या कहा ?
कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि, प्रश्नपत्र में भील समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए गद्यांश शामिल नहीं किया गया था, बल्कि जस्ट सामग्री विभिन्न पुस्तकों सहित अन्य अधिकृत दस्तावेजों में शामिल होने के चलते ली गई थी. इसलिए एफआईआर दर्ज करना अनुचित है.
क्यों हुआ था विवाद ?
एमपीपीएससी के प्रश्न पत्र के सी-सेट में भील जनजाति को लेकर आपत्तिजनक गद्यांश पूछा गया था. प्रश्न नंबर 99 में पूछा गया था कि
भीलों की अपराधिक प्रवृत्ति का मुख्य कारण क्या है ?
A. देनदारियां पूरी न कर पाना B. ईमानदारी से काम करना
C. अनैतिक कार्य करना D. गांव से पलायन करना
इसी तरह सवाल नंबर 100 में पूछा गया
धन उपार्जन के लिए भील कैसे कामों में संलिप्त हो जाते हैं ?
A. सामाजिक काम B. धार्मिक काम
C. गैर वैधानिक तथा अनैतिक काम D.कठिन से कठिन काम
दिए गए ऑप्सन में 'गैर वैधानिक और अनैतिक काम करना' को लेकर भील समाज ने नाराजगी जाहिर की थी. इसके साथ ही नेताओं ने भी इसको जोरदार विरोध किया था.