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दलित वोट पर सियासत की नई 'शतरंज', क्या ग्वालियर चंबल में बीजेपी का ये मास्टर स्ट्रोक आएगा काम ? - एमपी दलित वोटर्स

दलित वोटरों की नाराजगी का खामियाजा बीजेपी 2018 में देख चुकी है, यहीं वजह है कि इस बार चंबल अंचल क्षेत्र में बीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए बड़े दलित चेहरे के रूप में लाल सिंह आर्य को अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. अब देखना होगा कि उपचुनाव में दलित वोट बैंक को बीजेपी कितना रिझाने में कामयाब हो पाती है. पढ़िए पूरी खबर...

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लाल सिंह आर्य,अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
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Published : Oct 3, 2020, 2:36 PM IST

Updated : Oct 3, 2020, 4:48 PM IST

ग्वालियर। मध्यप्रदेश में उप चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही दोनों पार्टियों ने ग्राउंड लेवल पर हर वर्ग को साधने की कोशिश तेज कर दी है. चंबल अंचल क्षेत्र में सबसे पहला मास्टर स्ट्रोक बीजेपी ने खेलते हुए पूर्व मंत्री और चंबल अंचल के बड़े दलित चेहरे लाल सिंह आर्य को अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. इसके पीछे वजह यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इसी चंबल अंचल में सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था. वहीं कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी कुछ भी कर ले उससे हर वर्ग परेशान है. जिसका खामियाजा उसे उप चुनाव में भुगतना पड़ेगा.

एमपी में अबकी बार किसका दलित वोट

ये है 9 सीटों का गणित

मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं और उनमें 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं तो एक सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 14 सीटें सामान्य जातियों के लिए हैं. इन सभी सीटों पर करीब 20 फीसदी दलित मतदाता है. चंबल इलाका दलित बाहुल्य और उत्तर प्रदेश से सटे होने के चलते इस इलाके में बसपा का अच्छा खासा जनाधार है.

लाल सिंह आर्य के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी

पिछले चुनाव में 15 सीटों पर उसे निर्णयक वोट मिले थे. इनमें से 2 सीटों पर बसपा प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि 13 सीटें ऐसी थी जहां बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट मिले थे. लेकिन अब लाल सिंह आर्य को वोटों को साधने का जिम्मा मिला है. ग्वालियर चंबल अंचल कि जिन सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं उनमें से मेहगांव, जोरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर, करेरा और अशोक नगर सीट पर बसपा पूर्व की चुनाव में जीत दर्ज कर चुकी है.

दलित वोट बैंक को लुभाने में कामयाब रही थी कांग्रेस

2018 के विधानसभा चुनाव में गोहद, डबरा पोहरी में बसपा दूसरे नंबर पर रही. जबकि ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और मुंगावली में उसकी मौजूदगी नतीजों को प्रभावित करने वाली साबित हुई. मुरैना में बीजेपी की पराजय में बसपा की मौजूदगी प्रमुख कारण था. इसके अलावा पोहरी, जोरा, अंबाह में बसपा के चलते भाजपा तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी. ऐसे में 2018 विधानसभा में दलित की पहली पसंद कांग्रेस बनी थी और इसी के सहारे ग्वालियर चंबल इलाके में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो गया था. ऐसी में देखना होगा कि इस बार उपचुनाव में दलित वोट बैंक किसे सत्ता की कुर्सी दिलाता है.

एससी वोटरों को बीजेपी के पक्ष में करना बड़ी चुनौती

अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य के सामने प्रदेश की 28 सीटों पर एससी वोटर्स को भाजपा के पक्ष में करना बड़ी चुनौती है. उन्हें सबसे बड़ी चुनौती उनके घर ग्वालियर चंबल अंचल की 16 सीटों पर मिल रही है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में अंचल की 16 सीटों पर भाजपा 3,39,444 वोटों के अंतर से हार गई थी. जिसका नतीजा यह हुआ कि अंचल के एससी वोट ने कांग्रेस को सत्ता और कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था.

ग्वालियर। मध्यप्रदेश में उप चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही दोनों पार्टियों ने ग्राउंड लेवल पर हर वर्ग को साधने की कोशिश तेज कर दी है. चंबल अंचल क्षेत्र में सबसे पहला मास्टर स्ट्रोक बीजेपी ने खेलते हुए पूर्व मंत्री और चंबल अंचल के बड़े दलित चेहरे लाल सिंह आर्य को अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. इसके पीछे वजह यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इसी चंबल अंचल में सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था. वहीं कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी कुछ भी कर ले उससे हर वर्ग परेशान है. जिसका खामियाजा उसे उप चुनाव में भुगतना पड़ेगा.

एमपी में अबकी बार किसका दलित वोट

ये है 9 सीटों का गणित

मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं और उनमें 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं तो एक सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 14 सीटें सामान्य जातियों के लिए हैं. इन सभी सीटों पर करीब 20 फीसदी दलित मतदाता है. चंबल इलाका दलित बाहुल्य और उत्तर प्रदेश से सटे होने के चलते इस इलाके में बसपा का अच्छा खासा जनाधार है.

लाल सिंह आर्य के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी

पिछले चुनाव में 15 सीटों पर उसे निर्णयक वोट मिले थे. इनमें से 2 सीटों पर बसपा प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि 13 सीटें ऐसी थी जहां बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट मिले थे. लेकिन अब लाल सिंह आर्य को वोटों को साधने का जिम्मा मिला है. ग्वालियर चंबल अंचल कि जिन सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं उनमें से मेहगांव, जोरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर, करेरा और अशोक नगर सीट पर बसपा पूर्व की चुनाव में जीत दर्ज कर चुकी है.

दलित वोट बैंक को लुभाने में कामयाब रही थी कांग्रेस

2018 के विधानसभा चुनाव में गोहद, डबरा पोहरी में बसपा दूसरे नंबर पर रही. जबकि ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और मुंगावली में उसकी मौजूदगी नतीजों को प्रभावित करने वाली साबित हुई. मुरैना में बीजेपी की पराजय में बसपा की मौजूदगी प्रमुख कारण था. इसके अलावा पोहरी, जोरा, अंबाह में बसपा के चलते भाजपा तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी. ऐसे में 2018 विधानसभा में दलित की पहली पसंद कांग्रेस बनी थी और इसी के सहारे ग्वालियर चंबल इलाके में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो गया था. ऐसी में देखना होगा कि इस बार उपचुनाव में दलित वोट बैंक किसे सत्ता की कुर्सी दिलाता है.

एससी वोटरों को बीजेपी के पक्ष में करना बड़ी चुनौती

अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य के सामने प्रदेश की 28 सीटों पर एससी वोटर्स को भाजपा के पक्ष में करना बड़ी चुनौती है. उन्हें सबसे बड़ी चुनौती उनके घर ग्वालियर चंबल अंचल की 16 सीटों पर मिल रही है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में अंचल की 16 सीटों पर भाजपा 3,39,444 वोटों के अंतर से हार गई थी. जिसका नतीजा यह हुआ कि अंचल के एससी वोट ने कांग्रेस को सत्ता और कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था.

Last Updated : Oct 3, 2020, 4:48 PM IST
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