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इन मजदूरों का सहारा बना कमल का बीज, पेट पालने के लिए करते हैं ये संघर्ष

लॉकडाउन के दिनों में जहां पूरी तरह से बाजार बंद रहा, वहीं अनलॉक होने के बाद विशेष रुप से दमोह जिले में रैकवार समाज के लोगों के लिए मछलियों को पकड़ने का काम बंद करना पड़ा, अब यह मछुआरे तालाबों में लगे कमल के फूल को तोड़कर उनके बीज का व्यापार कर रहे हैं. ताकि किसी तरह दो वक्त की रोटी मिल सके.

laborers
पेट पालने का संघर्ष
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Published : Jul 18, 2020, 7:39 PM IST

Updated : Jul 18, 2020, 10:52 PM IST

दमोह। वैश्विक महामारी का प्रकोप दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. इसके बीच गरीब और बेघर सिर्फ कोरोना वायरस से ही नहीं, बल्कि भूख से भी लड़ रहे हैं. उनके पास लॉकडाउन होने के लिए घर भी नहीं है. ऐसे में जब दुनिया कोरोना के खिलाफ लॉकडाउन और सेल्फ डिस्टेंस का पालन कर रही हैं, वहीं गरीब और बेघर दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं.

मजदूरों का सहारा

कमल के बीजों का सहारा

लॉकडाउन में सभी प्रकार के व्यापारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. वहीं मजदूरी से जुड़ा एक वर्ग ऐसा है, जो लॉकडाउन के बाद काम को लेकर परेशान है. ऐसे में इन मजदूरी करने वाले लोगों का कमल के बीज का सहारा है. ये मजदूर तालाबों से मछलियों का निकालने का काम करता है. लेकिन अब बारिश के मौसम में मछलियों के पकड़े जाने पर प्रतिबंध लग गया है. ऐसे में अब ये तालाब से कमल को तोड़कर उसके बीज का व्यापार कर रहे हैं. ताकि इस मुसीबत में उन्हें दो वक्त की रोटी मिल सके.

मछुआरों का संकट

लॉकडाउन के दिनों में जहां पूरी तरह से बाजार बंद रहा, वहीं अनलॉक होने के बाद विशेष रुप से दमोह जिले में रैकवार समाज के लोगों के लिए मछलियों को पकड़ने का काम बंद करना पड़ा, क्योंकि इन दिनों मांस की बिक्री कम हो गई. साथ ही बारिश के शुरुआती दौर में मछलियों को पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. ऐसे में मछुआरों को अपने धंधे से हाथ धोना पड़ा है.

कमलगट्टा बना जीवन का सहारा

वहीं अब यह मछुआरे तालाबों में लगे कमल को तोड़कर उनके बीज का व्यापार कर रहे हैं. कमल के बीज के का उपयोग धार्मिक कार्यक्रमों में होता है. कमल के बीज को कमलगट्टा कहते हैं. वहीं यह मछुआरे तालाब से कमल तोड़ करके उससे बीज निकालकर बेचकर अपने घर का खर्च चला रहे हैं. इन मछुआरों का कहना है कि यही अब इनके जीवन का सहारा है.

लिहाजा लॉकडाउन से तंग किसान किसी तरह पेट पालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि अब कमल के बीजों की उत्पादकता कम हो गई है, लेकिन लॉकडाउन के बाद यही कमलगट्टा अब कुछ लोगों के लिए जीवन जीने का सहारा बन गया है.

दमोह। वैश्विक महामारी का प्रकोप दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. इसके बीच गरीब और बेघर सिर्फ कोरोना वायरस से ही नहीं, बल्कि भूख से भी लड़ रहे हैं. उनके पास लॉकडाउन होने के लिए घर भी नहीं है. ऐसे में जब दुनिया कोरोना के खिलाफ लॉकडाउन और सेल्फ डिस्टेंस का पालन कर रही हैं, वहीं गरीब और बेघर दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं.

मजदूरों का सहारा

कमल के बीजों का सहारा

लॉकडाउन में सभी प्रकार के व्यापारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. वहीं मजदूरी से जुड़ा एक वर्ग ऐसा है, जो लॉकडाउन के बाद काम को लेकर परेशान है. ऐसे में इन मजदूरी करने वाले लोगों का कमल के बीज का सहारा है. ये मजदूर तालाबों से मछलियों का निकालने का काम करता है. लेकिन अब बारिश के मौसम में मछलियों के पकड़े जाने पर प्रतिबंध लग गया है. ऐसे में अब ये तालाब से कमल को तोड़कर उसके बीज का व्यापार कर रहे हैं. ताकि इस मुसीबत में उन्हें दो वक्त की रोटी मिल सके.

मछुआरों का संकट

लॉकडाउन के दिनों में जहां पूरी तरह से बाजार बंद रहा, वहीं अनलॉक होने के बाद विशेष रुप से दमोह जिले में रैकवार समाज के लोगों के लिए मछलियों को पकड़ने का काम बंद करना पड़ा, क्योंकि इन दिनों मांस की बिक्री कम हो गई. साथ ही बारिश के शुरुआती दौर में मछलियों को पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. ऐसे में मछुआरों को अपने धंधे से हाथ धोना पड़ा है.

कमलगट्टा बना जीवन का सहारा

वहीं अब यह मछुआरे तालाबों में लगे कमल को तोड़कर उनके बीज का व्यापार कर रहे हैं. कमल के बीज के का उपयोग धार्मिक कार्यक्रमों में होता है. कमल के बीज को कमलगट्टा कहते हैं. वहीं यह मछुआरे तालाब से कमल तोड़ करके उससे बीज निकालकर बेचकर अपने घर का खर्च चला रहे हैं. इन मछुआरों का कहना है कि यही अब इनके जीवन का सहारा है.

लिहाजा लॉकडाउन से तंग किसान किसी तरह पेट पालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि अब कमल के बीजों की उत्पादकता कम हो गई है, लेकिन लॉकडाउन के बाद यही कमलगट्टा अब कुछ लोगों के लिए जीवन जीने का सहारा बन गया है.

Last Updated : Jul 18, 2020, 10:52 PM IST
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