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Chhindwara Stepwel: 800 साल पुरानी इस बावड़ी का आज तक नहीं सूखा पानी, जानिए क्या है शक्कर वाली बावड़ी की कहानी

छिंदवाड़ा के पांढुर्णा के बढ़ चिचौली गांव में एक 800 साल पुरानी बावड़ी है. इस बावड़ी को लेकर अपनी अलग कहानी है. साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस बावड़ी के पानी से लोगों के चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं.

Chhindwara Stepwel
शक्कर वाली बावड़ी
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 5, 2023, 10:22 PM IST

छिंदवाड़ा में शक्कर वाली बावड़ी

छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा गांव के बढ़ चिचौली में करीब 800 साल पुरानी एक ऐसी बावड़ी है. जिसका पानी आज तक कभी भी खत्म नहीं हुआ है. कहा जाता है कि इस बावड़ी में बाबा फरीद ने 12 साल तक उल्टा लटक कर अल्लाह की इबादत की थी. इसे फौजी पड़ाव वाली बावड़ी के के नाम से भी जाना जाता है.

800 साल पुरानी है मुगलकालीन बावड़ी कभी नहीं सूखा पानी: स्थानीय लोग बताते हैं कि "मुगलकालीन बावड़ी करीब 800 साल पुरानी है. इसी बावड़ी में बाबा फरीद ने 12 सालों तक उल्टा लटक कर अल्लाह की इबादत की थी. फिर इस इलाके का नाम फरीद वाटिका हो गया. स्थानीय लोग बताते हैं भले ही कितना सूखा पड़ गया हो, लेकिन बावड़ी में पानी कभी खत्म नहीं हुआ. इतना ही नहीं कुछ लोग इसके पानी की मिठास के चलते इसे शक्कर वाली बावड़ी भी कहते हैं.

मुगलकालीन फौज का होता था पड़ाव, एक साथ बांधे जाते थे हजारों घोड़े: बाबा फरीद वाटिका की खिदमत करने वाले नूर मोहम्मद ने बताया कि "उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना था कि मुगल कालीन सेना जब यहां से गुजरती थी तो भी इसी फरीद वाटिका में आराम करती थी. एक साथ करीब हजारों घोड़े यहां पर बांधे जाते थे और बावड़ी का उपयोग सेना के लिए पीने का पानी और घोड़े के लिए भी उपयोग किया जाता था. उसके बाद से ही इसे फौजी पड़ाव वाली बावड़ी भी कहा जाने लगा है. तब से आज तक इसकी पहचान फौजी पड़ाव वाली बावड़ी के नाम से बन चुकी है.

चर्म रोगों से मिलती है मुक्ति: इसी इलाके में बाबा फरीद की दरगाह और हनुमान जी के साथ ही शंकर जी का भी मंदिर है. लोग इसी बावड़ी के पानी को शंकर जी को भी अर्पित करते हैं. इसी से पूजा भी की जाती है. साथ ही इसी पानी से लोग बजू भी करते हैं. इस पानी के साथ किवदंती है कि इससे कई तरह के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं, इसलिए हर दिन लोग बावड़ी के पानी को लेने के लिए फरीद वाटिका पहुंचते हैं.

यहां पढ़ें...

बावड़ी को सहेजने के लिए जीर्णोंद्धार का काम फिर से हुआ है शुरु: इलाके की पहचान फौजी पड़ाव वाली बावड़ी धीरे-धीरे टूट रही थी. मुगलकालीन बावड़ी का जीर्णोंद्धार के लिए लगातार स्थानीय लोग प्रशासन से मांग कर रहे थे. अब प्रशासन ने जीर्णोद्धार का काम शुरू किया है, ताकि ऐतिहासिक धरोहर को सहेज जा सके.

छिंदवाड़ा में शक्कर वाली बावड़ी

छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा गांव के बढ़ चिचौली में करीब 800 साल पुरानी एक ऐसी बावड़ी है. जिसका पानी आज तक कभी भी खत्म नहीं हुआ है. कहा जाता है कि इस बावड़ी में बाबा फरीद ने 12 साल तक उल्टा लटक कर अल्लाह की इबादत की थी. इसे फौजी पड़ाव वाली बावड़ी के के नाम से भी जाना जाता है.

800 साल पुरानी है मुगलकालीन बावड़ी कभी नहीं सूखा पानी: स्थानीय लोग बताते हैं कि "मुगलकालीन बावड़ी करीब 800 साल पुरानी है. इसी बावड़ी में बाबा फरीद ने 12 सालों तक उल्टा लटक कर अल्लाह की इबादत की थी. फिर इस इलाके का नाम फरीद वाटिका हो गया. स्थानीय लोग बताते हैं भले ही कितना सूखा पड़ गया हो, लेकिन बावड़ी में पानी कभी खत्म नहीं हुआ. इतना ही नहीं कुछ लोग इसके पानी की मिठास के चलते इसे शक्कर वाली बावड़ी भी कहते हैं.

मुगलकालीन फौज का होता था पड़ाव, एक साथ बांधे जाते थे हजारों घोड़े: बाबा फरीद वाटिका की खिदमत करने वाले नूर मोहम्मद ने बताया कि "उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना था कि मुगल कालीन सेना जब यहां से गुजरती थी तो भी इसी फरीद वाटिका में आराम करती थी. एक साथ करीब हजारों घोड़े यहां पर बांधे जाते थे और बावड़ी का उपयोग सेना के लिए पीने का पानी और घोड़े के लिए भी उपयोग किया जाता था. उसके बाद से ही इसे फौजी पड़ाव वाली बावड़ी भी कहा जाने लगा है. तब से आज तक इसकी पहचान फौजी पड़ाव वाली बावड़ी के नाम से बन चुकी है.

चर्म रोगों से मिलती है मुक्ति: इसी इलाके में बाबा फरीद की दरगाह और हनुमान जी के साथ ही शंकर जी का भी मंदिर है. लोग इसी बावड़ी के पानी को शंकर जी को भी अर्पित करते हैं. इसी से पूजा भी की जाती है. साथ ही इसी पानी से लोग बजू भी करते हैं. इस पानी के साथ किवदंती है कि इससे कई तरह के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं, इसलिए हर दिन लोग बावड़ी के पानी को लेने के लिए फरीद वाटिका पहुंचते हैं.

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बावड़ी को सहेजने के लिए जीर्णोंद्धार का काम फिर से हुआ है शुरु: इलाके की पहचान फौजी पड़ाव वाली बावड़ी धीरे-धीरे टूट रही थी. मुगलकालीन बावड़ी का जीर्णोंद्धार के लिए लगातार स्थानीय लोग प्रशासन से मांग कर रहे थे. अब प्रशासन ने जीर्णोद्धार का काम शुरू किया है, ताकि ऐतिहासिक धरोहर को सहेज जा सके.

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