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संन्यास-सलाखों के बाद सियासी पिच पर साध्वी, क्या कर पाएंगी चमत्कार?

भोपाल लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं, पहली बार में ही उनका मुकाबला कांग्रेस के मझे हुए सियासी खिलाड़ी दिग्विजय सिंह से है. पूरे देश की निगाहें यहां के सियासी रण पर है.

बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर
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Published : May 11, 2019, 12:47 AM IST

भोपाल। तेज तर्रार छात्रा, कुशल वक्ता, हिंदुत्व की झंडाबरदार और फिर संन्यासी, इसके बाद हत्या का आरोप और मालेगांव बम धमाके के बाद मुंबई एटीएस की रडार पर आयीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. करीब एक दशक तक जेल में पुलिसिया प्रताड़ना सहने के बाद जमानत पर रिहा हुईं प्रज्ञा अब बीजेपी की फायरब्रांड नेता बन गई हैं और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजनीति के चाणक्य के खिलाफ ताल ठोक रही हैं.

2 फरवरी 1970 को भिंड जिले के कछवाहा गांव के एक साधारण परिवार में जन्मीं प्रज्ञा ठाकुर भड़काऊ भाषणों के लिए भी सुर्खियों में रही हैं. साल 2002 में प्रज्ञा ने जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति बनाई थी, बाद में स्वामी अवधेशानंद गिरी के संपर्क में आकर 2007 में संन्यास की राह पर चल पड़ी. प्रज्ञा के पिता चंद्रपाल सिंह स्वयंसेवक के साथ-साथ एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक डॉक्टर भी थे. लिहाजा वह संघ और विहिप के अलावा एबीवीपी व विहिप की दुर्गा वाहिनी शाखा से भी जुड़ी रहीं.

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का सियासी सफर

साल 2007 में देवास में संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के बाद प्रज्ञा के बुरे दिन शुरू हो गये क्योंकि इस हत्याकांड में उनका भी नाम शामिल था. हालांकि, 10 साल बाद उन्हें क्लीन चिट मिल गयी, लेकिन 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए ब्लास्ट ने प्रज्ञा के सपनों को जलाकर खाक कर दिया. इसी ब्लास्ट के आरोप में मुंबई एटीएस ने प्रज्ञा को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट से जेल और जेल से कोर्ट के चक्कर काटते हुए 9 साल बीत गये, इसके बाद 2017 में उनकी केस डायरी से अदालती आदेश पर मकोका की धारा हटा दी गयी. तब जाकर उनको जमानत मिली, वो भी तब जब वह खुद के बलबूते चलने-फिरने लायक नहीं रहीं.

कहते हैं बुरे दौर के बाद अच्छा दौर भी आता है, अब साध्वी प्रज्ञा के भी अच्छे दिन आने वाले हैं क्योंकि 16 अप्रैल 2019 को उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और अगले ही दिन बीजेपी ने उन्हें भोपाल से प्रत्याशी घोषित कर दिया. इसके बाद ही वो फिर सुर्खियों में आ गईं और अचानक से भोपाल लोकसभा सीट देश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल हो गयी क्योंकि यहां कांग्रेस पहले ही दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी. इसके साथ ही पुराने दुश्मन फिर आमने-सामने आ गये.

भोपाल। तेज तर्रार छात्रा, कुशल वक्ता, हिंदुत्व की झंडाबरदार और फिर संन्यासी, इसके बाद हत्या का आरोप और मालेगांव बम धमाके के बाद मुंबई एटीएस की रडार पर आयीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. करीब एक दशक तक जेल में पुलिसिया प्रताड़ना सहने के बाद जमानत पर रिहा हुईं प्रज्ञा अब बीजेपी की फायरब्रांड नेता बन गई हैं और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजनीति के चाणक्य के खिलाफ ताल ठोक रही हैं.

2 फरवरी 1970 को भिंड जिले के कछवाहा गांव के एक साधारण परिवार में जन्मीं प्रज्ञा ठाकुर भड़काऊ भाषणों के लिए भी सुर्खियों में रही हैं. साल 2002 में प्रज्ञा ने जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति बनाई थी, बाद में स्वामी अवधेशानंद गिरी के संपर्क में आकर 2007 में संन्यास की राह पर चल पड़ी. प्रज्ञा के पिता चंद्रपाल सिंह स्वयंसेवक के साथ-साथ एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक डॉक्टर भी थे. लिहाजा वह संघ और विहिप के अलावा एबीवीपी व विहिप की दुर्गा वाहिनी शाखा से भी जुड़ी रहीं.

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का सियासी सफर

साल 2007 में देवास में संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के बाद प्रज्ञा के बुरे दिन शुरू हो गये क्योंकि इस हत्याकांड में उनका भी नाम शामिल था. हालांकि, 10 साल बाद उन्हें क्लीन चिट मिल गयी, लेकिन 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए ब्लास्ट ने प्रज्ञा के सपनों को जलाकर खाक कर दिया. इसी ब्लास्ट के आरोप में मुंबई एटीएस ने प्रज्ञा को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट से जेल और जेल से कोर्ट के चक्कर काटते हुए 9 साल बीत गये, इसके बाद 2017 में उनकी केस डायरी से अदालती आदेश पर मकोका की धारा हटा दी गयी. तब जाकर उनको जमानत मिली, वो भी तब जब वह खुद के बलबूते चलने-फिरने लायक नहीं रहीं.

कहते हैं बुरे दौर के बाद अच्छा दौर भी आता है, अब साध्वी प्रज्ञा के भी अच्छे दिन आने वाले हैं क्योंकि 16 अप्रैल 2019 को उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और अगले ही दिन बीजेपी ने उन्हें भोपाल से प्रत्याशी घोषित कर दिया. इसके बाद ही वो फिर सुर्खियों में आ गईं और अचानक से भोपाल लोकसभा सीट देश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल हो गयी क्योंकि यहां कांग्रेस पहले ही दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी. इसके साथ ही पुराने दुश्मन फिर आमने-सामने आ गये.

Intro:लोकसभा चुनाव में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भोपाल लोकसभा सीट से बीजेपी की प्रत्याशी हैं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से है साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोप भी हैं फिलहाल साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर है।


Body:साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जन्म 2 फरवरी 1970 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले में हुआ था प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पिता डॉक्टर चंद्रपाल सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक डॉक्टर भी थे और प्राकृतिक जड़ी बूटियों से मरीजों का इलाज करते थे पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते साध्वी प्रज्ञा संघ और विश्व हिंदू परिषद से जुड़ी रही और किसी दौरान उन्होंने संन्यास भी ले लिया भोपाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुड़ी रही प्रज्ञा ठाकुर हमेशा से ही दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ी रही है प्रज्ञा सिंह विश्व हिंदू परिषद में महिला शाखा दुर्गा वाहिनी से भी जुड़ी हुई थी साध्वी प्रज्ञा सिंह हिंदी के लहार कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएशन पढ़ाई की है छात्र जीवन में ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर वक्ता थे और अध्यात्म हिंदुत्व का भी काफी अनुभव था।

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर कई बार अपने भड़काऊ भाषणों के लिए सुर्खियों में भी रही है साल 2002 में प्रज्ञा सिंह ने जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति बनाई थी बाद में प्रज्ञा स्वामी अवधेशानंद गिरी के संपर्क में और इसके बाद उन्होंने एक राष्ट्रीय जागरण मंच भी बनाया इस दौरान प्रज्ञा सिंह मध्यप्रदेश और गुजरात के शहरों में आती-जाती रही है।

साल 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में एक बार आतंकवादी बम विस्फोट हुआ था इस बम ब्लास्ट के बाद मुंबई एटीएस की टीम नेम साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पहले पूछताछ के लिए बुलाया और बाद में गिरफ्तार कर लिया काफी लंबे समय तक पुलिस ने साध्वी प्रज्ञा से इस ब्लास्ट को लेकर पूछताछ की थी बताया जाता है कि इस दौरान साध्वी प्रज्ञा को कई प्रताड़नाएं ने भी झेलनी पड़ी है इसके बाद लगातार कोर्ट में साध्वी प्रज्ञा की पेशियां जारी रही इस दौरान लंबा समय साध्वी प्रज्ञा ने भोपाल सेंट्रल जेल में भी काटा है साल 2017 में एनआईए की विशेष अदालत में साध्वी प्रज्ञा पर लगी मकोका की धाराएं हटा दी और गैरकानूनी गतिविधि संशोधन अधिनियम के तहत आतंकवाद पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया। साल 2017 में स्वास्थ्य कारणों से साध्वी प्रज्ञा को जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

इतना ही नहीं साल 2007 में देवास में संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी की बालगढ़ के चुना खदान क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी मामले में पहले दो पुलिस ने हाथ में लगा दिया था लेकिन बाद में फिर से प्रकरण को ओपन किया गया इसके बाद साध्वी प्रज्ञा सहित 8 आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया कुछ समय के लिए सुनील जोशी हत्या का मामला एनआईए को भी ट्रांसफर किया गया था साथ ही देवास कोर्ट से इस मामले को स्थानांतरित कर भोपाल की विशेष अदालत में भेजा गया था हालांकि इस मामले में जांच के बाद साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट देते हुए इस मामले से फरवरी 2017 में बरी कर दिया गया था।


Conclusion:साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के राजनीतिक जीवन की बात की जाए तो साध्वी ने हाल ही में दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी इसके बाद साध्वी ने 16 अप्रैल 2019 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और पार्टी ने उन्हें भोपाल लोकसभा से टिकट देते हुए अपना उम्मीदवार भी बनाया भोपाल में साध्वी प्रज्ञा का मुख्य मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से है हालांकि बीजेपी से लोकसभा का उम्मीदवार घोषित होने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने कुछ ऐसे बयान दिए जो लगातार सुर्खियां बन गई साध्वी प्रज्ञा ने मुंबई के पूर्व एटीएस चीफ शहीद हेमंत करकरे की मौत को लेकर कहा कि हेमंत करकरे की मौत इसलिए हुई है क्योंकि उन्हें मैंने श्राप दिया था जिसके बाद कांग्रेस ने इसे जमकर बनाया जिसके चलते बीजेपी को इस बयान पर स्पष्टीकरण देते हुए कहना पड़ा कि ये साध्वी प्रज्ञा का व्यक्तिगत बयान है इस बयान से बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है बाद में साध्वी प्रज्ञा ने अपने बयान वापस लेते हुए माफी मांगी इसके अलावा साध्वी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़ जाने को लेकर भी बयान दिया था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस करने में उन्होंने भाग लिया था जिसके बाद चुनाव आयोग ने सांप्रदायिक भावनाओं को भड़का कर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए साध्वी प्रज्ञा को प्रचार करने से 72 घंटे के लिए प्रतिबंधित कर दिया था।
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