भोपाल। तेज तर्रार छात्रा, कुशल वक्ता, हिंदुत्व की झंडाबरदार और फिर संन्यासी, इसके बाद हत्या का आरोप और मालेगांव बम धमाके के बाद मुंबई एटीएस की रडार पर आयीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. करीब एक दशक तक जेल में पुलिसिया प्रताड़ना सहने के बाद जमानत पर रिहा हुईं प्रज्ञा अब बीजेपी की फायरब्रांड नेता बन गई हैं और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजनीति के चाणक्य के खिलाफ ताल ठोक रही हैं.
2 फरवरी 1970 को भिंड जिले के कछवाहा गांव के एक साधारण परिवार में जन्मीं प्रज्ञा ठाकुर भड़काऊ भाषणों के लिए भी सुर्खियों में रही हैं. साल 2002 में प्रज्ञा ने जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति बनाई थी, बाद में स्वामी अवधेशानंद गिरी के संपर्क में आकर 2007 में संन्यास की राह पर चल पड़ी. प्रज्ञा के पिता चंद्रपाल सिंह स्वयंसेवक के साथ-साथ एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक डॉक्टर भी थे. लिहाजा वह संघ और विहिप के अलावा एबीवीपी व विहिप की दुर्गा वाहिनी शाखा से भी जुड़ी रहीं.
साल 2007 में देवास में संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के बाद प्रज्ञा के बुरे दिन शुरू हो गये क्योंकि इस हत्याकांड में उनका भी नाम शामिल था. हालांकि, 10 साल बाद उन्हें क्लीन चिट मिल गयी, लेकिन 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए ब्लास्ट ने प्रज्ञा के सपनों को जलाकर खाक कर दिया. इसी ब्लास्ट के आरोप में मुंबई एटीएस ने प्रज्ञा को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट से जेल और जेल से कोर्ट के चक्कर काटते हुए 9 साल बीत गये, इसके बाद 2017 में उनकी केस डायरी से अदालती आदेश पर मकोका की धारा हटा दी गयी. तब जाकर उनको जमानत मिली, वो भी तब जब वह खुद के बलबूते चलने-फिरने लायक नहीं रहीं.
कहते हैं बुरे दौर के बाद अच्छा दौर भी आता है, अब साध्वी प्रज्ञा के भी अच्छे दिन आने वाले हैं क्योंकि 16 अप्रैल 2019 को उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और अगले ही दिन बीजेपी ने उन्हें भोपाल से प्रत्याशी घोषित कर दिया. इसके बाद ही वो फिर सुर्खियों में आ गईं और अचानक से भोपाल लोकसभा सीट देश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल हो गयी क्योंकि यहां कांग्रेस पहले ही दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी. इसके साथ ही पुराने दुश्मन फिर आमने-सामने आ गये.