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'मौत की शराब' के नशे में झूमती सियासत, शराबबंदी से दूर होगा मुरैना का 'मर्ज'? - liqueur ban Succeed or fail

उज्जैन के बाद मुरैना में मौत की शराब ने 24 नशेड़ियों को अपनी आगोश में ले लिया, जिसके बाद बिहार-गुजरात की तरह ही मध्यप्रदेश में भी पूर्ण शराबबंदी की मांग उठने लगी है, पर क्या पूर्ण शराबबंदी से मौत की शराब का नशा सत्ता-सियासत के सिर से उतर पायेगा क्योंकि शराब को पूरी तरह सियासत ही संरक्षण देती है, इसलिए सवाल उठता है कि आखिर पूर्ण शराबबंदी से उज्जैन, बुलंदशहर या मुरैना जैसी घटनाओं पर रोक लग पाएगी..?

liqueur-ban
शराबबंदी
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Published : Jan 14, 2021, 8:55 PM IST

भोपाल। मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से अब तक 24 लोगों की मौत हो चुकी है. अभी कई अस्पताल में भर्ती हैं. जिनकी हालत गंभीर है. कुछ समय पहले ही उज्जैन में भी इसी तरह की घटना हुई थी. पिछले 9 महीनों की बात करें, तो जहरीली शराब से 46 लोग काल के गाल में समा चुके हैं. प्रदेश में लगातार हो रहीं इस तरह की घटनाओं के बाद शराबबंदी को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. हम इस बहस के इर्द-गिर्द सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे. जिनमें शराबबंदी के परिणाम, क्या शराबबंदी सफलतापूर्वक लागू की जा सकती है ? किन राज्यों में शराबबंदी है... कहां शराबबंदी फेल हुई...और मध्यप्रदेश में शराबबंदी से सरकार के खजाने पर क्या प्रभाव पड़ेगा... ये बातें शामिल होंगी.

शराब से कितना मिला रेवेन्यू ?

अगर राज्य में शराबबंदी की जाती है तो इसका सीधा असर प्रदेश सरकार के खजाने पर पड़ेगा. यही वजह है कि ज्यादातर राज्य सरकारें नशाखोरी के खिलाफ तो बात करतीं हैं, लेकिन शराबबंदी के नाम पर हाथ-पांव फूल जाते हैं. अगर मध्यप्रदेश की बात की जाए तो 2019-20 में सरकार शराब से 10,773.29 करोड़ की आमदनी हुई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आय का सोर्स सरकार के लिए कितना महत्वपूर्ण है. खासकर तब, जब इसमें लगातार इजाफा हो रहा है. देखें पिछले सालों के आंकड़े...

Alcohol revenue
शराब से मिलने वाला राजस्व

एमपी में शराब की खपत

इन आकड़ों सबके इतर अगर प्रदेश में शराब की खपत पर नजर डाली जाए तो साल 2019-20 में 2, 813.33 लाख प्रूफ लीटर शराब की खपत हुई. इसमें देसी शराब मात्रा 1130.18 लाख प्रूफ लीटर है.

Alcohol consumption in M.P.
एमपी में शराब की खपत

अवैध शराब का भी बड़ा कारोबार

ये सब तो सरकारी आंकड़े हैं. अगर अवैध शराब को और जोड़ लिया जाए. तो ये मात्रा और बढ़ जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक सरकार को हर साल 1 हजार करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान अवैध शराब के चलते उठाना पड़ता है.

शराबबंदी की राह कितनी आसान ?

अगर सरकार रेवेन्यू के मोहपाश से खुद को मुक्त भी कर ले, तो सवाल है कि शराबबंदी की राह आसान होगी. इसके लिए दूसरे राज्यों लागू हुई शराबबंदी के अनुभवों को देखना पड़ेगा.

सबसे पहले हरियाणा की बात

मद्य-निषेध के मामले में हरियाणा का नुस्खा काफी भयावह तस्वीर की याद दिलाने वाला है. जब बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, तब उन्हें दो साल के भीतर शराबबंदी के अपने फैसले को पलटना पड़ा था. उस समय उनकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मझधार में छोड़ कर 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का हाथ थाम लिया था. भाजपा और चौटाला के मौके के गठजोड़ ने बंसीलाल सरकार गिरा दी और अगले चुनाव में बंसीलाल को मैदान में कहीं का नहीं छोड़ा. चौटाला ने अपनी सरकार 2000 में जनादेश के साथ बनाई.

क्या आईं थीं समस्याएं

शराबबंदी के बाद हरियाणा के गांवों में महिलाओं ने अपनी शिकायतें मंत्री के पास पहुंचानी शुरू कर दी थीं कि उनके पति शाम होते ही सीमा से सटे पंजाब, उससे आगे राजस्थान या दूसरे राज्यों में भी निकल जाते हैं.फिर अक्सर अवैध शराब हाथ में होने की वजह से पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं. अवैध शराब के चक्कर में आए दिन थानों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. लिहाजा जो समाज शराबबंदी की मांग पर अड़ा था, बाद में उसी ने कई समस्याएं झेलीं और कहा जाता है कि जब ये फैसला वापस लिया गया तो लोगों ने शराबबंदी से ज्यादा खुशी जताई थी. यही चुनौतियां मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सामने आ सकती हैं. क्योंकि पड़ोसी राज्यों में तो शराब पर कोई पाबंदी नहीं है.

बिहार में शराबबंदी का हाल

वैसे तो साल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू कर दी थी, जिसके बाद से यह ड्राई स्टेट बन गया था. उस बिहार सरकार को तकरीबन 3300 करोड़ के आस-पास राजस्व की हानि हुई थी. लेकिन जमीनी स्तर पर क्या ये शराबबंदी लागू हो पाई. ये बड़ा सवाल है. इसका अंदाजा बिहार और महाराष्ट्र के इन आंकड़ों की तुलना से लगाया जा सकता है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब पी जाती है. सर्वे के मुताबिक बिहार में 15.5 फीसदी पुरुषों ने शराब पीने की बात स्वीकार की है. शहरी बिहार की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की खपत अधिक है. बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 फीसदी लोग शराब पीते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 14 फीसदी था.

वहीं महाराष्ट्र, जहां शराबबंदी लागू नहीं है, में 13.9 फीसदी पुरुष शराब का सेवन करते हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शराब की खपत का अनुपात बिहार की तुलना में कम है.

शराबबंदी में रोल मॉडल गुजरात का हाल

महात्मा गांधी की जन्मभूमि रहे गुजरात में कोई भी सत्ताधारी दल शराबबंदी से पाबंदी हटाने की सोच भी नहीं सकता. लेकिन यहां लोगों ने ऐसा मर्ज खोजा निकाला, जिसका इलाज मदिरा से ही हो सकता है. सूबे में 1960 से शराबबंदी है. लेकिन वहां लगभग 65 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिनके पास शराब खरीदने और पीने का परमिट है. राज्य में प्रोहेविशन विभाग से परमिट लेकर सिविल अस्पताल के डॉक्टर से वैसी बीमारी का सर्टिफिकेट लेना पड़ता है, जो सिर्फ शराब पीने से ही ठीक हो सकती हैं और जिनके पास शराब पीने के लिए हेल्थ परमिट नहीं है, उनके लिए सूबे से सटे दमन- दव व राजस्थान से तस्करी कर मंगाई गई शराब तो है ही.

जहरीली शराब ने 1 हजार लोगों की ली जान

शराब एक अरसे से हमारे समाज को नासूर की तरह साल रही है. इसके कारण कितने ही परिवार उजड़ गए और कई लोगों को लाचारी का मुंह देखना पड़ा. दुर्भाग्य की बात यह है कि तंबाकू पर रोक लगाने के लिए तो फिर भी सरकार गंभीर दिखाई देती है, लेकिन शराब के प्रति वैसी तत्परता नहीं दिखाई जाती. यह राज्यों का विषय है और चूंकि उनकी आमदनी का मुख्य जरिया भी है, इसलिए सरकार इसके प्रति गंभीरता से मुंह मोड़ लेती है, जिसका हश्र मुरैना जैसी घटनाएं होतीं हैं. पिछले चार सालों में एमपी में करीब 1 हजार लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई है. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं.

Poisonous alcohol deaths
जहरीली शराब से होनी वाली मौतें

शराबबंदी के पक्ष-विपक्ष में तर्क

इन तमाम अनुभवों के बाद जानकार दो धड़ों में बंटे दिखाई देते हैं. एक पक्ष का मानना है कि सरकार अगर मजबूत इच्छा शक्ति के साथ चाह ले तो शराबबंदी की जा सकती है. लेकिन सरकार अपने फायदे के लिए इस तरह के कदम उठाने से बचती है.

वहीं दूसरे पक्ष के लोगों का कहना है कि अगर सरकार शराबंबदी करती है तो अवैध शराब का कारोबार बढ़ जाता है. ऐसे में स्थानीय क्षेत्रों में कच्ची शराब बनाना और दूसरे राज्यों से स्मलिंग जैसे घटनाएं सामने आतीं हैं. अपर क्लास को तो फिर इस दौरान फाइव स्टार होटल में मदिरा पान करने की छूट होती है, लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय समाज पिस जाता है. वे अवैध शराब के चंगुल में फंस जाते हैं और मुकदमेबाजी और पुलिस के चक्कर काटते रहते हैं. इसलिए शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बजाय इसके सही रेग्यूलेशन की जरूरत है. हालांकि शिवराज सरकार के रवैये से लग रहा है कि राज्य सरकार शराबबंदी के बिलकुल मूड में नहीं है.

स्थायी व मजबूत नीति जरूरत

ये तो साफ है कि शराब लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.इससे अपराधों को भी बढ़ावा मिलता है. कुल मिलाकर ये जरूरी है कि सरकार कोई भी नीति बनाए वो चिरस्थायी तौर पर लागू हो. ऐसा न कि एक अरसे बाद सरकार अपने खाली होते खजाने से त्रस्त होकर इसे वापस ले ले. जैसे हरियाणा व दूसरे राज्यों में हुआ.

भोपाल। मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से अब तक 24 लोगों की मौत हो चुकी है. अभी कई अस्पताल में भर्ती हैं. जिनकी हालत गंभीर है. कुछ समय पहले ही उज्जैन में भी इसी तरह की घटना हुई थी. पिछले 9 महीनों की बात करें, तो जहरीली शराब से 46 लोग काल के गाल में समा चुके हैं. प्रदेश में लगातार हो रहीं इस तरह की घटनाओं के बाद शराबबंदी को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. हम इस बहस के इर्द-गिर्द सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे. जिनमें शराबबंदी के परिणाम, क्या शराबबंदी सफलतापूर्वक लागू की जा सकती है ? किन राज्यों में शराबबंदी है... कहां शराबबंदी फेल हुई...और मध्यप्रदेश में शराबबंदी से सरकार के खजाने पर क्या प्रभाव पड़ेगा... ये बातें शामिल होंगी.

शराब से कितना मिला रेवेन्यू ?

अगर राज्य में शराबबंदी की जाती है तो इसका सीधा असर प्रदेश सरकार के खजाने पर पड़ेगा. यही वजह है कि ज्यादातर राज्य सरकारें नशाखोरी के खिलाफ तो बात करतीं हैं, लेकिन शराबबंदी के नाम पर हाथ-पांव फूल जाते हैं. अगर मध्यप्रदेश की बात की जाए तो 2019-20 में सरकार शराब से 10,773.29 करोड़ की आमदनी हुई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आय का सोर्स सरकार के लिए कितना महत्वपूर्ण है. खासकर तब, जब इसमें लगातार इजाफा हो रहा है. देखें पिछले सालों के आंकड़े...

Alcohol revenue
शराब से मिलने वाला राजस्व

एमपी में शराब की खपत

इन आकड़ों सबके इतर अगर प्रदेश में शराब की खपत पर नजर डाली जाए तो साल 2019-20 में 2, 813.33 लाख प्रूफ लीटर शराब की खपत हुई. इसमें देसी शराब मात्रा 1130.18 लाख प्रूफ लीटर है.

Alcohol consumption in M.P.
एमपी में शराब की खपत

अवैध शराब का भी बड़ा कारोबार

ये सब तो सरकारी आंकड़े हैं. अगर अवैध शराब को और जोड़ लिया जाए. तो ये मात्रा और बढ़ जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक सरकार को हर साल 1 हजार करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान अवैध शराब के चलते उठाना पड़ता है.

शराबबंदी की राह कितनी आसान ?

अगर सरकार रेवेन्यू के मोहपाश से खुद को मुक्त भी कर ले, तो सवाल है कि शराबबंदी की राह आसान होगी. इसके लिए दूसरे राज्यों लागू हुई शराबबंदी के अनुभवों को देखना पड़ेगा.

सबसे पहले हरियाणा की बात

मद्य-निषेध के मामले में हरियाणा का नुस्खा काफी भयावह तस्वीर की याद दिलाने वाला है. जब बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, तब उन्हें दो साल के भीतर शराबबंदी के अपने फैसले को पलटना पड़ा था. उस समय उनकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मझधार में छोड़ कर 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का हाथ थाम लिया था. भाजपा और चौटाला के मौके के गठजोड़ ने बंसीलाल सरकार गिरा दी और अगले चुनाव में बंसीलाल को मैदान में कहीं का नहीं छोड़ा. चौटाला ने अपनी सरकार 2000 में जनादेश के साथ बनाई.

क्या आईं थीं समस्याएं

शराबबंदी के बाद हरियाणा के गांवों में महिलाओं ने अपनी शिकायतें मंत्री के पास पहुंचानी शुरू कर दी थीं कि उनके पति शाम होते ही सीमा से सटे पंजाब, उससे आगे राजस्थान या दूसरे राज्यों में भी निकल जाते हैं.फिर अक्सर अवैध शराब हाथ में होने की वजह से पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं. अवैध शराब के चक्कर में आए दिन थानों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. लिहाजा जो समाज शराबबंदी की मांग पर अड़ा था, बाद में उसी ने कई समस्याएं झेलीं और कहा जाता है कि जब ये फैसला वापस लिया गया तो लोगों ने शराबबंदी से ज्यादा खुशी जताई थी. यही चुनौतियां मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सामने आ सकती हैं. क्योंकि पड़ोसी राज्यों में तो शराब पर कोई पाबंदी नहीं है.

बिहार में शराबबंदी का हाल

वैसे तो साल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू कर दी थी, जिसके बाद से यह ड्राई स्टेट बन गया था. उस बिहार सरकार को तकरीबन 3300 करोड़ के आस-पास राजस्व की हानि हुई थी. लेकिन जमीनी स्तर पर क्या ये शराबबंदी लागू हो पाई. ये बड़ा सवाल है. इसका अंदाजा बिहार और महाराष्ट्र के इन आंकड़ों की तुलना से लगाया जा सकता है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब पी जाती है. सर्वे के मुताबिक बिहार में 15.5 फीसदी पुरुषों ने शराब पीने की बात स्वीकार की है. शहरी बिहार की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की खपत अधिक है. बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 फीसदी लोग शराब पीते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 14 फीसदी था.

वहीं महाराष्ट्र, जहां शराबबंदी लागू नहीं है, में 13.9 फीसदी पुरुष शराब का सेवन करते हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शराब की खपत का अनुपात बिहार की तुलना में कम है.

शराबबंदी में रोल मॉडल गुजरात का हाल

महात्मा गांधी की जन्मभूमि रहे गुजरात में कोई भी सत्ताधारी दल शराबबंदी से पाबंदी हटाने की सोच भी नहीं सकता. लेकिन यहां लोगों ने ऐसा मर्ज खोजा निकाला, जिसका इलाज मदिरा से ही हो सकता है. सूबे में 1960 से शराबबंदी है. लेकिन वहां लगभग 65 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिनके पास शराब खरीदने और पीने का परमिट है. राज्य में प्रोहेविशन विभाग से परमिट लेकर सिविल अस्पताल के डॉक्टर से वैसी बीमारी का सर्टिफिकेट लेना पड़ता है, जो सिर्फ शराब पीने से ही ठीक हो सकती हैं और जिनके पास शराब पीने के लिए हेल्थ परमिट नहीं है, उनके लिए सूबे से सटे दमन- दव व राजस्थान से तस्करी कर मंगाई गई शराब तो है ही.

जहरीली शराब ने 1 हजार लोगों की ली जान

शराब एक अरसे से हमारे समाज को नासूर की तरह साल रही है. इसके कारण कितने ही परिवार उजड़ गए और कई लोगों को लाचारी का मुंह देखना पड़ा. दुर्भाग्य की बात यह है कि तंबाकू पर रोक लगाने के लिए तो फिर भी सरकार गंभीर दिखाई देती है, लेकिन शराब के प्रति वैसी तत्परता नहीं दिखाई जाती. यह राज्यों का विषय है और चूंकि उनकी आमदनी का मुख्य जरिया भी है, इसलिए सरकार इसके प्रति गंभीरता से मुंह मोड़ लेती है, जिसका हश्र मुरैना जैसी घटनाएं होतीं हैं. पिछले चार सालों में एमपी में करीब 1 हजार लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई है. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं.

Poisonous alcohol deaths
जहरीली शराब से होनी वाली मौतें

शराबबंदी के पक्ष-विपक्ष में तर्क

इन तमाम अनुभवों के बाद जानकार दो धड़ों में बंटे दिखाई देते हैं. एक पक्ष का मानना है कि सरकार अगर मजबूत इच्छा शक्ति के साथ चाह ले तो शराबबंदी की जा सकती है. लेकिन सरकार अपने फायदे के लिए इस तरह के कदम उठाने से बचती है.

वहीं दूसरे पक्ष के लोगों का कहना है कि अगर सरकार शराबंबदी करती है तो अवैध शराब का कारोबार बढ़ जाता है. ऐसे में स्थानीय क्षेत्रों में कच्ची शराब बनाना और दूसरे राज्यों से स्मलिंग जैसे घटनाएं सामने आतीं हैं. अपर क्लास को तो फिर इस दौरान फाइव स्टार होटल में मदिरा पान करने की छूट होती है, लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय समाज पिस जाता है. वे अवैध शराब के चंगुल में फंस जाते हैं और मुकदमेबाजी और पुलिस के चक्कर काटते रहते हैं. इसलिए शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बजाय इसके सही रेग्यूलेशन की जरूरत है. हालांकि शिवराज सरकार के रवैये से लग रहा है कि राज्य सरकार शराबबंदी के बिलकुल मूड में नहीं है.

स्थायी व मजबूत नीति जरूरत

ये तो साफ है कि शराब लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.इससे अपराधों को भी बढ़ावा मिलता है. कुल मिलाकर ये जरूरी है कि सरकार कोई भी नीति बनाए वो चिरस्थायी तौर पर लागू हो. ऐसा न कि एक अरसे बाद सरकार अपने खाली होते खजाने से त्रस्त होकर इसे वापस ले ले. जैसे हरियाणा व दूसरे राज्यों में हुआ.

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