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साउथ एशिया का बदलता स्वरूप: बांग्लादेश से बढ़ रही पाकिस्तान की यारी, अफगानिस्तान आया भारत के करीब - THE CHANGING FACE OF SOUTH ASIA

बांग्लादेश पाकिस्तान से अब्दाली शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल और तुर्की से टैंक खरीदने पर विचार कर रहा है.

Foreign Secretary Vikram Misri meets Afghanistan Acting Foreign Minister Mawlawi Amir Khan Muttaqi, in Dubai on Jan.
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी से मिले (ANI)
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By Major General Harsha Kakar

Published : Jan 15, 2025, 4:51 PM IST

नई दिल्ली: हाल ही में दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक दक्षिण एशिया में बदलते परिदृश्य की ताजा घटना है. पिछले साल अगस्त में बांग्लादेश में शेख हसीना शासन को उखाड़ फेंकने के साथ ही परिदृश्य में बदलाव आना शुरू हो गया था. तब से बांग्लादेश, भारत से चावल और निरंतर समर्थन के लिए अनुरोध करने के बावजूद पाकिस्तान की ओर आकर्षित होने लगा.

पाकिस्तान से गोला-बारूद और खाद्यान्नों का आयात और साथ ही पाक विदेश मंत्री इशाक डार की बांग्लादेश की आगामी यात्रा क्षेत्र में बदलते परिदृश्य का संकेत है. इशाक डार ने उल्लेख किया कि बांग्लादेश पाकिस्तान का खोया हुआ भाई है. यह यात्रा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बीच बैठकों की एक सीरीज के बाद हुई है, जहां दोनों ने संबंधों को फिर से मजबूत करने का प्रयास किया है.

Bangladesh Chief Adviser Professor Muhammad Yunus meets with Chinese Foreign Minister Wang Yi, at UN headquarters in New York on Sep. 26, 2024.
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की (ANI)

SAARC को फिर से मजबूत करने की यूनुस की नियमित मांग नई दिल्ली के लिए एक बाधा बन गई है. भारत ने यूनुस की इस मांग को नजरअंदाज करते हुए ढाका के साथ संबंधों को पुन स्थापित करने की उम्मीद में बातचीत जारी रखी.

ऐसी भी खबरें हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सैन्य सहयोग बढ़ रहा है. जानकारी के अनुसार बांग्लादेश भारत के खिलाफ एक निवारक के रूप में पाकिस्तान से अब्दाली शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल और तुर्की से टैंक खरीदने पर विचार कर रहा है. इसके अलावा इस साल फरवरी से पाकिस्तान की सेना बांग्लादेशी सेना को ट्रेनिंग देना शुरू कर देगी. यह ट्रेनिंग बांग्लादेश की चार छावनियों में आयोजित किया जाएगा. पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व मेजर जनरल रैंक के अधिकारी करेंगे.

Bangladesh Chief Adviser Professor Muhammad Yunus meets with Pakistan Prime Minister Shehbaz Sharif on the sidelines of the UN General Assembly, in New York on Sep. 26, 2024.
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुसन्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अवसर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात करते हुए. (ANI)

वहीं, पाक सैनिकों द्वारा प्रशिक्षण भारत के लिए कोई बड़ी चिंता का विषय नहीं है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथ बढ़ेगा. एजेंडे में भारत विरोधी तत्व भी शामिल होंगे, जो भारत-बांग्लादेश सैन्य संबंधों को खराब कर देंगे. बांग्लादेश के लिए भारत के अलावा कोई खतरा नहीं है. देश में पाकिस्तान के प्रवेश के साथ ही चीन भी जल्द ही उसके पीछे आ जाएगा. यह एक अतिरिक्त चिंता का विषय होगा.

इसके अलावा इससे पाकिस्तान की आईएसआई के लिए देश में भारत विरोधी विद्रोही समूहों को प्रशिक्षित करने के लिए ठिकानों को फिर से स्थापित करने के लिए पैर जमाने के लिए दरवाजे खुल जाएंगे. यह पहले भी ऐसा करता रहा है. बांग्लादेश कश्मीरी आतंकवादियों को भारत में भेजने का एक जरिया भी बन सकता है. अपुष्ट रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि यह पहले ही शुरू हो चुका है.

भारतीय विदेश सचिव और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के बीच हुई बैठक इस्लामाबाद को यह चेतावनी देने का एक तरीका था कि अगर वह बांग्लादेश से भारत को भड़काने का फैसला करता है तो क्या हो सकता है. वर्तमान में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं, इसके बावजूद कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो के खिलाफ संघर्ष के दौरान तालिबान का समर्थन किया था.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और बलूच स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बढ़ते हमलों ने पाक सेना को कगार पर पहुंचा दिया है. हताशा में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में टीटीपी के एक कथित ठिकाने पर हवाई हमला किया. इसका नतीजा यह हुआ कि लगभग पचास लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान से लौटे शरणार्थी थे. इसके कारण काबुल की ओर से जवाबी कार्रवाई की गई.

भारत ने अफगानिस्तान के साथ एकजुटता दिखाई और हवाई हमले की आलोचना की, जिसके बारे में पाकिस्तान ने दावा किया कि यह उसके लोगों को आगे के हमलों से बचाने के लिए किया गया था. भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, 'हम निर्दोष नागरिकों पर किसी भी हमले की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं. अपनी आंतरिक विफलताओं के लिए अपने पड़ोसियों को दोषी ठहराना पाकिस्तान की पुरानी आदत है.' भारत ऐसा करने वाला एकमात्र देश था.

Indian Foreign Secretary Vikram Misri meets Bangladesh Chief Adviser Professor Muhammad Yunus, in Dhaka on Dec. 10, 2024
भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने ढाका में बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस से मुलाकात की (ANI)

दुबई में बैठक से ठीक पहले एकजुटता का यह प्रदर्शन महत्वपूर्ण था. इसने दिखाया कि भारत पाकिस्तान के साथ संघर्ष में अफगानिस्तान का समर्थन कर रहा है. अफगानिस्तान में भारत की स्थिति बहुत अच्छी है. इसकी सहायता और समर्थन के लिए इसका सम्मान किया जाता है. विडंबना यह है कि अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा नफरत पाकिस्तान और आईएसआईएस से की जाती है, जिसका रावलपिंडी समर्थन करता है. भारत अपने हालिया कार्यों से इस सद्भावना को और मजबूत कर रहा है.

दुबई में हुई बैठक में मानवीय सहायता, विकास परियोजनाओं, आर्थिक दबाव के तहत कराची के उपयोग को रोकने के बदले में चाबहार बंदरगाह के दोहन, हेल्थ असिस्टेंट और क्रिकेट कोओपरेशन पर चर्चा हुई. अफगान पक्ष ने वैश्विक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद अफगानिस्तान के साथ जुड़ने के लिए भारत के निरंतर समर्थन और प्रतिबद्धता के लिए आभार व्यक्त किया. भारत में अफगान दूतावास बंद है जबकि काबुल में भारतीय दूतावास में सहायता की निगरानी के लिए केवल बुनियादी कर्मचारी हैं. भारत ने अभी तक तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है.

पाकिस्तान ने भारतीय कार्रवाई की आलोचना की. अफगानिस्तान में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत मंसूर अहमद खान ने कहा, ‘जब भी पाक-अफगान संबंधों में मतभेद और तनाव दिखाई देते हैं, तो भारत अपनी जगह बढ़ाने और अफगानिस्तान के पाकिस्तान के साथ भाईचारे वाले पड़ोसी संबंधों को बाधित करने का अवसर ढूंढ़ लेता है.’ उन्होंने कहा कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका अपनी आपसी चिंताओं को हल करने के लिए अफगानिस्तान के साथ बातचीत करने का तरीका निकालने पर ध्यान केंद्रित करना है.

आज तक अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से अफगानिस्तान को फंड दे रहा था. पिछले साल मई में अमेरिकी विदेश मामलों की समिति के एक बयान में चेयरमैन माइकल मैककॉल का हवाला दिया गया है, जिन्होंने कहा, ‘अगस्त 2021 में अफगानिस्तान से बाइडेन प्रशासन की विनाशकारी वापसी के बाद से संयुक्त राज्य सरकार ने तालिबान के अधिग्रहण से पैदा हुए मानवीय संकट को दूर करने के लिए 2.8 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की राशि प्रदान की है.’ इसमें आगे कहा गया है, ‘किसी भी अमेरिकी फंडिंग से तालिबान को लाभ मिलना अस्वीकार्य है. बाइडेन प्रशासन को अमेरिकी करदाताओं के पैसे को तालिबान तक जाने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.’

तालिबान ने अमेरिका से किसी भी तरह की सहायता मिलने से इनकार किया है. इसके प्रवक्ता ने कहा, ‘अमेरिका ने इस्लामिक अमीरात को एक पैसा भी नहीं दिया है. इसके बजाय, उसने अरबों डॉलर जब्त कर लिए हैं और उन्हें फ्रीज कर दिया है, जो कि अफगानिस्तान के लोगों का हक हैं.’ अमेरिका में ट्रंप ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली ऐसी सभी सहायता को रोकने का वादा किया है. अमेरिका में कई लोगों का मानना ​​है कि इस सहायता से अफगानिस्तान में पनप रहे अन्य आतंकवादी समूहों को फंड मिलेगा.

आंकड़े जो भी हों अब भारत ही अफ़गानिस्तान की मदद के लिए आगे आएगा, जबकि भारतीय सहायता का उद्देश्य अमेरिका का मुकाबला करना नहीं होगा, इसे पाकिस्तान के लिए चेतावनी के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. हाल ही में हुई बैठक और अफगानिस्तान को भविष्य की सहायता एक मौन संदेश है कि अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ़ बांग्लादेश का इस्तेमाल करता है, तो इसका नतीजा यह हो सकता है कि भारत पाकिस्तान के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि वह काबुल को टीटीपी और बलूच का इस्लामाबाद के खिलाफ और ज़्यादा इस्तेमाल करने के लिए मजबूर कर सकता है. भौगोलिक निकटता को देखते हुए भारत अभी भी बांग्लादेश को संभालने और उसके साथ बातचीत करने में सक्षम हो सकता है, जबकि पाकिस्तान को अफ़गानिस्तान से बढ़ती मार झेलनी पड़ेगी.

यह भी पढ़ें- कठिन समय में बौद्धिक रूप से तैयार रहने के लिए लिखा 'द वर्ल्ड आफ्टर गाजा'

नई दिल्ली: हाल ही में दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक दक्षिण एशिया में बदलते परिदृश्य की ताजा घटना है. पिछले साल अगस्त में बांग्लादेश में शेख हसीना शासन को उखाड़ फेंकने के साथ ही परिदृश्य में बदलाव आना शुरू हो गया था. तब से बांग्लादेश, भारत से चावल और निरंतर समर्थन के लिए अनुरोध करने के बावजूद पाकिस्तान की ओर आकर्षित होने लगा.

पाकिस्तान से गोला-बारूद और खाद्यान्नों का आयात और साथ ही पाक विदेश मंत्री इशाक डार की बांग्लादेश की आगामी यात्रा क्षेत्र में बदलते परिदृश्य का संकेत है. इशाक डार ने उल्लेख किया कि बांग्लादेश पाकिस्तान का खोया हुआ भाई है. यह यात्रा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बीच बैठकों की एक सीरीज के बाद हुई है, जहां दोनों ने संबंधों को फिर से मजबूत करने का प्रयास किया है.

Bangladesh Chief Adviser Professor Muhammad Yunus meets with Chinese Foreign Minister Wang Yi, at UN headquarters in New York on Sep. 26, 2024.
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की (ANI)

SAARC को फिर से मजबूत करने की यूनुस की नियमित मांग नई दिल्ली के लिए एक बाधा बन गई है. भारत ने यूनुस की इस मांग को नजरअंदाज करते हुए ढाका के साथ संबंधों को पुन स्थापित करने की उम्मीद में बातचीत जारी रखी.

ऐसी भी खबरें हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सैन्य सहयोग बढ़ रहा है. जानकारी के अनुसार बांग्लादेश भारत के खिलाफ एक निवारक के रूप में पाकिस्तान से अब्दाली शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल और तुर्की से टैंक खरीदने पर विचार कर रहा है. इसके अलावा इस साल फरवरी से पाकिस्तान की सेना बांग्लादेशी सेना को ट्रेनिंग देना शुरू कर देगी. यह ट्रेनिंग बांग्लादेश की चार छावनियों में आयोजित किया जाएगा. पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व मेजर जनरल रैंक के अधिकारी करेंगे.

Bangladesh Chief Adviser Professor Muhammad Yunus meets with Pakistan Prime Minister Shehbaz Sharif on the sidelines of the UN General Assembly, in New York on Sep. 26, 2024.
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुसन्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अवसर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात करते हुए. (ANI)

वहीं, पाक सैनिकों द्वारा प्रशिक्षण भारत के लिए कोई बड़ी चिंता का विषय नहीं है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथ बढ़ेगा. एजेंडे में भारत विरोधी तत्व भी शामिल होंगे, जो भारत-बांग्लादेश सैन्य संबंधों को खराब कर देंगे. बांग्लादेश के लिए भारत के अलावा कोई खतरा नहीं है. देश में पाकिस्तान के प्रवेश के साथ ही चीन भी जल्द ही उसके पीछे आ जाएगा. यह एक अतिरिक्त चिंता का विषय होगा.

इसके अलावा इससे पाकिस्तान की आईएसआई के लिए देश में भारत विरोधी विद्रोही समूहों को प्रशिक्षित करने के लिए ठिकानों को फिर से स्थापित करने के लिए पैर जमाने के लिए दरवाजे खुल जाएंगे. यह पहले भी ऐसा करता रहा है. बांग्लादेश कश्मीरी आतंकवादियों को भारत में भेजने का एक जरिया भी बन सकता है. अपुष्ट रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि यह पहले ही शुरू हो चुका है.

भारतीय विदेश सचिव और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के बीच हुई बैठक इस्लामाबाद को यह चेतावनी देने का एक तरीका था कि अगर वह बांग्लादेश से भारत को भड़काने का फैसला करता है तो क्या हो सकता है. वर्तमान में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं, इसके बावजूद कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो के खिलाफ संघर्ष के दौरान तालिबान का समर्थन किया था.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और बलूच स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बढ़ते हमलों ने पाक सेना को कगार पर पहुंचा दिया है. हताशा में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में टीटीपी के एक कथित ठिकाने पर हवाई हमला किया. इसका नतीजा यह हुआ कि लगभग पचास लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान से लौटे शरणार्थी थे. इसके कारण काबुल की ओर से जवाबी कार्रवाई की गई.

भारत ने अफगानिस्तान के साथ एकजुटता दिखाई और हवाई हमले की आलोचना की, जिसके बारे में पाकिस्तान ने दावा किया कि यह उसके लोगों को आगे के हमलों से बचाने के लिए किया गया था. भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, 'हम निर्दोष नागरिकों पर किसी भी हमले की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं. अपनी आंतरिक विफलताओं के लिए अपने पड़ोसियों को दोषी ठहराना पाकिस्तान की पुरानी आदत है.' भारत ऐसा करने वाला एकमात्र देश था.

Indian Foreign Secretary Vikram Misri meets Bangladesh Chief Adviser Professor Muhammad Yunus, in Dhaka on Dec. 10, 2024
भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने ढाका में बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस से मुलाकात की (ANI)

दुबई में बैठक से ठीक पहले एकजुटता का यह प्रदर्शन महत्वपूर्ण था. इसने दिखाया कि भारत पाकिस्तान के साथ संघर्ष में अफगानिस्तान का समर्थन कर रहा है. अफगानिस्तान में भारत की स्थिति बहुत अच्छी है. इसकी सहायता और समर्थन के लिए इसका सम्मान किया जाता है. विडंबना यह है कि अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा नफरत पाकिस्तान और आईएसआईएस से की जाती है, जिसका रावलपिंडी समर्थन करता है. भारत अपने हालिया कार्यों से इस सद्भावना को और मजबूत कर रहा है.

दुबई में हुई बैठक में मानवीय सहायता, विकास परियोजनाओं, आर्थिक दबाव के तहत कराची के उपयोग को रोकने के बदले में चाबहार बंदरगाह के दोहन, हेल्थ असिस्टेंट और क्रिकेट कोओपरेशन पर चर्चा हुई. अफगान पक्ष ने वैश्विक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद अफगानिस्तान के साथ जुड़ने के लिए भारत के निरंतर समर्थन और प्रतिबद्धता के लिए आभार व्यक्त किया. भारत में अफगान दूतावास बंद है जबकि काबुल में भारतीय दूतावास में सहायता की निगरानी के लिए केवल बुनियादी कर्मचारी हैं. भारत ने अभी तक तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है.

पाकिस्तान ने भारतीय कार्रवाई की आलोचना की. अफगानिस्तान में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत मंसूर अहमद खान ने कहा, ‘जब भी पाक-अफगान संबंधों में मतभेद और तनाव दिखाई देते हैं, तो भारत अपनी जगह बढ़ाने और अफगानिस्तान के पाकिस्तान के साथ भाईचारे वाले पड़ोसी संबंधों को बाधित करने का अवसर ढूंढ़ लेता है.’ उन्होंने कहा कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका अपनी आपसी चिंताओं को हल करने के लिए अफगानिस्तान के साथ बातचीत करने का तरीका निकालने पर ध्यान केंद्रित करना है.

आज तक अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से अफगानिस्तान को फंड दे रहा था. पिछले साल मई में अमेरिकी विदेश मामलों की समिति के एक बयान में चेयरमैन माइकल मैककॉल का हवाला दिया गया है, जिन्होंने कहा, ‘अगस्त 2021 में अफगानिस्तान से बाइडेन प्रशासन की विनाशकारी वापसी के बाद से संयुक्त राज्य सरकार ने तालिबान के अधिग्रहण से पैदा हुए मानवीय संकट को दूर करने के लिए 2.8 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की राशि प्रदान की है.’ इसमें आगे कहा गया है, ‘किसी भी अमेरिकी फंडिंग से तालिबान को लाभ मिलना अस्वीकार्य है. बाइडेन प्रशासन को अमेरिकी करदाताओं के पैसे को तालिबान तक जाने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.’

तालिबान ने अमेरिका से किसी भी तरह की सहायता मिलने से इनकार किया है. इसके प्रवक्ता ने कहा, ‘अमेरिका ने इस्लामिक अमीरात को एक पैसा भी नहीं दिया है. इसके बजाय, उसने अरबों डॉलर जब्त कर लिए हैं और उन्हें फ्रीज कर दिया है, जो कि अफगानिस्तान के लोगों का हक हैं.’ अमेरिका में ट्रंप ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली ऐसी सभी सहायता को रोकने का वादा किया है. अमेरिका में कई लोगों का मानना ​​है कि इस सहायता से अफगानिस्तान में पनप रहे अन्य आतंकवादी समूहों को फंड मिलेगा.

आंकड़े जो भी हों अब भारत ही अफ़गानिस्तान की मदद के लिए आगे आएगा, जबकि भारतीय सहायता का उद्देश्य अमेरिका का मुकाबला करना नहीं होगा, इसे पाकिस्तान के लिए चेतावनी के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. हाल ही में हुई बैठक और अफगानिस्तान को भविष्य की सहायता एक मौन संदेश है कि अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ़ बांग्लादेश का इस्तेमाल करता है, तो इसका नतीजा यह हो सकता है कि भारत पाकिस्तान के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि वह काबुल को टीटीपी और बलूच का इस्लामाबाद के खिलाफ और ज़्यादा इस्तेमाल करने के लिए मजबूर कर सकता है. भौगोलिक निकटता को देखते हुए भारत अभी भी बांग्लादेश को संभालने और उसके साथ बातचीत करने में सक्षम हो सकता है, जबकि पाकिस्तान को अफ़गानिस्तान से बढ़ती मार झेलनी पड़ेगी.

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