भोपाल। विगत सोमवार को जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का अमेरिका के न्यूजर्सी में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था. पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज का जन्म संगीतकारों के परिवार में हुआ था. उनका संबंध मेवाती घराने से रहा. जिसकी शुरुआत जोधपुर के पंडित घगगे नजीर खां ने की थी. भोपाल स्थित भारत भवन न्यास के अध्यक्ष भी 2008 से 2014 तक रहे, लेकिन हिंदुस्तान में सिर्फ एक शहर था, जिससे पंडित जसराज रूहानी मोहब्बत करते थे. जानकारों के मुताबिक उनके पूर्वजों की कब्रें भोपाल में थी, लेकिन अंत तक वह उन कब्रों को ढूंढ़ नहीं पाए थे.
भारत भवन भोपाल के निदेशक प्रेम शंकर शुक्ला ने बताया कि भारत भवन में उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में बहुत ही श्रेष्ठ और सम्मानित काम हुआ है. वह भोपाल से अत्यधिक प्रेम करते थे क्योंकि उनके गुरु की समाधि भोपाल में ही कहीं थी, लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि उन्हें कहां दफनाया गया है. वो हमेशा कहते थे कि मेरे गुरु का रिश्ता भोपाल से है तो भोपाल भी मेरा है और ये रिश्ता उन्होंने आजीवन निभाया, भोपाल से आए हर निमंत्रण को पंडित जसराज अपने सीने से लगाते थे.
लेखक और इतिहास के जानकार श्याम मुंशी बताते हैं कि पंडित जसराज स्वयं बताते थे कि उनके बुजुर्गों में कुछ लोग यहां रहे हैं, जो मेवाड घराने से थे. उस घराने के कुछ परिवार भोपाल में रहे हैं. जिनमें उस्ताद घसीटा का उस्ताद मसीता और उनके बाद कुछ और लोग जैसे- उस्ताद गप्पू खां, उस्ताद दत्तू खां भी भोपाल में रहे हैं. पंडित जसराज हमेशा कहते थे कि उनके कुछ बुजुर्गों की यहां मजारे हैं, लेकिन उन्हें मालूम नहीं कहां है, उसको ढूंढ़ने के लिए वह हमेशा बेचैन रहते थे. उन्हें सिर्फ इतना ही मालूम था कि उनके बुजुर्ग भोपाल में दफन हैं. पर जगह नहीं मालूम है, ये भी नहीं मालूम था समय और तारीख क्या थी यह भी पता नहीं था. पंडित जसराज को जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने बहुत कोशिश कि अपने बुजुर्गों की मजारें ढूंढ़ने की, लेकिन अंत तक वह पता नहीं कर पाए कि कहां हैं उनके पुरखे.