छतरपुर : मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में रहने वाले कृष्ण कुमार द्विवेदी को पता नहीं था कि भारत से अमेरिका जाना तो आसान होगा पर लौटने में उन्हें 14 साल लग जाएंगे. इस अमरीकी वनवास की वजह से वे न तो अपनी मां की अर्थी को कंधा दे पाए और न ही अपने भाई-बहन की शादी में शामिल हो सके. इतने सालों तक अमेरिका में फंसे रहने के बाद आखिरकार कृष्ण कुमार को वापस स्वदेश लौटने का मौका मिला. अपने गांव जुझार पहुंचने के बाद कृष्ण कुमार ने बताया कि उनकी वापसी पीएम मोदी की लोकप्रियता की वजह से संभव हो सकी.
ऐसे शुरू हुआ अमरीकी वनवास
दरअसल, छतरपुर जिले के लवकुश नगर इलाके के कृष्ण कुमार को स्वदेश लौटने में 14 वर्ष लग गए. जुझारनगर थाना अंतर्गत ग्राम ज्योराहा निवासी कृष्ण कुमार द्विवेदी 2008 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती चैरिटेबल ट्रस्ट इलाहाबाद गए थे. यहां उनका अच्छा कार्य देखकर संस्था की ओर से उन्हें 26 जनवरी 2011 को 50 महर्षि वैदिक पंडितों के साथ अमेरिका के शिकागो भेजा गया था. संस्था नियम अनुसार जिस वैदिक पंडित का आचरण अच्छा हुआ उसे 2 वर्ष की जगह 3 वर्ष वैदिक महर्षि आश्रम शिकागो में रहने को मिल जाता था लेकिन कृष्ण कुमार द्विवेदी उन 50 वैदिक पंडितो में से कुछ वैदिक पंडितों के साथ अलग होकर शिकागो सिटी घूमने चले गए. यहीं से उनके अमरीकी वनवास की कहानी शुरू हुई.
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शिकागो में 14 साल के लिए फंसे
कृष्ण कुमार उस संस्था से 6 दिन बाहर रहे और शिकागो की बाहरी सुंदरता से आकर्षित होकर छोटी-मोटी नौकरी की तलाश में जुट गए. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था की शिकागो में रुकने के लिए उनके वीजा की एक समय सीमा निर्धारित है. कुछ अलग करने की चाह में कृष्ण कुमार को एक छोटी सी नौकरी मिली लेकिन वीजा खत्म होने की वजह से वे वहीं फंस कर रह गए. इस दौरान उन्होंने अपने देश, अपने गांव आने के लिए तमाम तरह के प्रयास किए. कुछ भारतीय लोगों की मदद से भारत आने के लिए कई बार कागज तैयार किए पर बार-बार असफल रहे. इस दौरान वे अपनी मां के निधन तक में भी नहीं पहुंच सके और ना ही अपने भाई-बहन की शाद देख सके.
फिर काम आई पीएम मोदी की लोकप्रियता
हाल ही में छतरपुर अपने गांव लौटे कृष्ण कुमार ने बताया कि इस बुरे वक्त में जब उन्होंने हार मान ली तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का उन्हें फायदा मिला. कृष्ण कुमार के मुताबिक पीएम मोदी के प्रभाव से अमेरिका सरकार ने वीजा खत्म होने के बाद भी उन्हें रहने की अनुमति दी. इसके साथ ही वहां के लोग भारतीय होने के कारण उनका सम्मान करते रहे. इसके बाद उन्हें लगातार मदद मिलने लगी और वे आखिरकार स्वेदेश लौटने में कामयाब रहे. रविवार को जब उन्हें अपने गांव अपने घर आने का मौका मिला तो गांव मोहल्ले के लोगों ने ढोल नगाड़े गाजे बजाकर कृष्ण कुमार का स्वागत सम्मान किया.
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जीवन में बुहत कुछ खोया, पाया कम
भारत लौटे कृष्ण कुमार द्विवेदी ने कहा, '' मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ खोया है और मिला नाम मात्र का है. मेरे जाने के बाद मेरी माता जी का देहांत हो गया लेकिन उनकी अर्थी को भी कंधा नहीं दे पाया. अपनी बड़ी बहन की शादी भी नहीं देख पाया, और न ही बड़े भाई की शादी देख पाया. परदेश में रहकर जहां अंग्रेजी बोलना और समझना एक कठिन काम था वहां रहकर अपने गांव, देहात परिवारजनों को याद करता रहा हूं. भारत के प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण मुझे सम्मान मिलता रहा. अमेरिका की सरकार ने मुझे भारत का होने के कारण सहानभूति के तौर पर रहने की अनुमति दी, अमेरिका सरकार ने मेरा ग्रीन कार्ड भी बना दिया,अमेरिका में मुझे अपने भारतीयों का भी बहुत सहयोग मिला है.''