ETV Bharat / bharat

पिता पकड़ते थे तीतर, मां मांगती थी भीख, पढ़-लिखकर निकिता ने हासिल की सरकारी नौकरी

महाराष्ट्र की अमरावती निवासी निकिता ने शिक्षा हासिल कर सफलता के शिखर पर पहुंची और सरकारी नौकरी हासिल की.

निकिता पवार
निकिता पवार (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 7, 2024, 6:54 PM IST

मुंबई: महाराष्ट्र के अमरावती की एक लड़की निकिता ने साबित कर दिया कि दृढ़ निश्चय और मेहनत से ही सफलता मिलती है. निकिता ऐसे हालात में सफलता के शिखर पर पहुंची है, जब इसके परिवार में कोई पढ़ा लिखा नहीं था. खानाबदोश समाज में रहने वाले परिवार का शिक्षा का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था, लड़की के पिता शिकार करते थे, जबकि उसकी मां भीख मांगती थी.

घर में गरीबी और परिवार में शराब की भरमार के बीच किसी तरह निकिता को शिक्षा की दिशा मिली. निकिता अपने पांच छोटे भाई-बहनों के साथ स्कूल जाने लगी. उसने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद निकिता को सरकारी नौकरी मिल गई.

आज निकिता अमरावती जल संसाधन विभाग में बतौर क्लर्क तीन-चार महीने के लिए शामिल हुई हैं. अमरावती शहर के वडाली के टांडा में पली-बढ़ी निकिता के लिए यह सफर आसान नहीं था.पिता का काम शिकार करना था और मां का काम भीख मांगकर खुद समेत पूरे परिवार का पेट भरना था.

'मां को पढ़ाई का शौक'
निकिता पवार ने 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए बताया कि हम छह भाई-बहन थे. उनकी मां को पढ़ाई का शौक था. हालांकि, उन्हें पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला. वह हमेशा चाहती थीं कि उनके बच्चे पढ़ें. मां खुद भी नाइट स्कूल जाती थीं. जब हम छोटे थे, तो इलाके के क्राइस्ट मिशनरी स्कूल की सिस्टर त्रिजा ने मेरी मां को सभी भाई-बहनों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया और मुझे होली क्रॉस मराठी स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया.

निकिता ने कहा, "मैं स्कूल के हॉस्टल में रहने लगी. स्कूल की टीचर सिस्टर क्लेरिना और अन्य शिक्षिकाएं हमेशा मुझे यही मार्गदर्शन देती थीं कि तुम्हें अपने समाज के लिए कुछ करना चाहिए. टीचर हमेशा कहती थीं कि तुम्हें अच्छे से पढ़ाई करनी चाहिए. उनकी बातों का मुझ पर असर हुआ. मैंने समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की."

पिता तीतर और बटेर पकड़ते थे
उन्होंने कहा कि वह दिवाली और गर्मी की छुट्टियों में ही घर आती थीं. उनके पिता तीतर और बटेर पकड़ते थे. हम छह भाई-बहनों के पास खाने की सुविधा नहीं थी. ऐसे में मैं पड़ोस के लड़के-लड़कियों के साथ घर का बर्तन लेकर भीख मांगने जाती थी. जिन शादियों में मैं भीख मांगने जाती थी, वहां मेरे स्कूल की लड़कियां अच्छे कपड़े पहनकर आती थीं, यह सब देखकर मुझे शर्म आती थी.

फिलहाल निकिता पवार संत गाडगेबाबा अमरावती विश्वविद्यालय से पीएचडी की तैयारी कर रही हैं. निकिता का रिसर्च टॉपिक फासेपर्धी जनजाति के बच्चों का शैक्षणिक और स्वास्थ्य समाजशास्त्रीय अध्ययन है. अरुण चव्हाण के मार्गदर्शन में उनका रिसर्च वर्क चल रहा है.

ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद निकिता ने जयेश चंद्रमोहन राजे से शादी कर ली. निकिता ने बताया, "मेरे पति ने मुझे आगे की पढ़ाई के लिए मदद की क्योंकि मुझे शिक्षा में रुचि थी. समाज के प्रति मेरा जुनून देखकर मेरे पति चाहते थे कि मैं राजनीति में शामिल हो जाऊं. उनके प्रोत्साहन के कारण मैंने 2016 में जिला परिषद के अंजनगांव बारी सर्कल से चुनाव भी लड़ा. हालांकि, मैं चुनाव हार गई."

उन्होंने कहा कि भले ही मैं हार गई, लेकिन इस चुनाव ने मुझे समाज के लिए लड़ना सिखाया. निकिता कहती हैं कि उन्होंने चुनाव के अनुभव के जरिए अपने समाज के कई मुद्दों को सरकार के सामने रखने की कोशिश की. उन्होंने आगे कहा, "हमारे समुदाय के बच्चों को सिर्फ पैसे की जरूरत नहीं है, बल्कि प्रेरणादायी काम करने वालों की प्रशंसा की भी जरूरत है. कई लोगों ने मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे प्रेरित किया. इसी वजह से मैं कई बार अपने समुदाय के मुद्दों को प्रशासन के सामने रख पाई हूं."

निकिता ने बताया कि वह अपने सेतु फाउंडेशन के तहत राजुरा में बच्चों के लिए एक हॉस्टल शुरू कर रही हैं. अनाथ बच्चों को हम इस छात्रावास में आश्रय देने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "मैं इन बच्चों की सारी शिक्षा खुद ही करूंगी. मैं अपने समुदाय के कम से कम दस बच्चों में से एक को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हूं. मेरा सपना है कि हमारे समुदाय के बच्चे पढ़ें और बड़े हों."

यह भी पढ़ें- प.बंगाल के डॉक्टरों की भूख हड़ताल जारी, बोले- कोई भी साबित नहीं कर सकता कि हमारी मांगें गलत हैं...

मुंबई: महाराष्ट्र के अमरावती की एक लड़की निकिता ने साबित कर दिया कि दृढ़ निश्चय और मेहनत से ही सफलता मिलती है. निकिता ऐसे हालात में सफलता के शिखर पर पहुंची है, जब इसके परिवार में कोई पढ़ा लिखा नहीं था. खानाबदोश समाज में रहने वाले परिवार का शिक्षा का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था, लड़की के पिता शिकार करते थे, जबकि उसकी मां भीख मांगती थी.

घर में गरीबी और परिवार में शराब की भरमार के बीच किसी तरह निकिता को शिक्षा की दिशा मिली. निकिता अपने पांच छोटे भाई-बहनों के साथ स्कूल जाने लगी. उसने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद निकिता को सरकारी नौकरी मिल गई.

आज निकिता अमरावती जल संसाधन विभाग में बतौर क्लर्क तीन-चार महीने के लिए शामिल हुई हैं. अमरावती शहर के वडाली के टांडा में पली-बढ़ी निकिता के लिए यह सफर आसान नहीं था.पिता का काम शिकार करना था और मां का काम भीख मांगकर खुद समेत पूरे परिवार का पेट भरना था.

'मां को पढ़ाई का शौक'
निकिता पवार ने 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए बताया कि हम छह भाई-बहन थे. उनकी मां को पढ़ाई का शौक था. हालांकि, उन्हें पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला. वह हमेशा चाहती थीं कि उनके बच्चे पढ़ें. मां खुद भी नाइट स्कूल जाती थीं. जब हम छोटे थे, तो इलाके के क्राइस्ट मिशनरी स्कूल की सिस्टर त्रिजा ने मेरी मां को सभी भाई-बहनों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया और मुझे होली क्रॉस मराठी स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया.

निकिता ने कहा, "मैं स्कूल के हॉस्टल में रहने लगी. स्कूल की टीचर सिस्टर क्लेरिना और अन्य शिक्षिकाएं हमेशा मुझे यही मार्गदर्शन देती थीं कि तुम्हें अपने समाज के लिए कुछ करना चाहिए. टीचर हमेशा कहती थीं कि तुम्हें अच्छे से पढ़ाई करनी चाहिए. उनकी बातों का मुझ पर असर हुआ. मैंने समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की."

पिता तीतर और बटेर पकड़ते थे
उन्होंने कहा कि वह दिवाली और गर्मी की छुट्टियों में ही घर आती थीं. उनके पिता तीतर और बटेर पकड़ते थे. हम छह भाई-बहनों के पास खाने की सुविधा नहीं थी. ऐसे में मैं पड़ोस के लड़के-लड़कियों के साथ घर का बर्तन लेकर भीख मांगने जाती थी. जिन शादियों में मैं भीख मांगने जाती थी, वहां मेरे स्कूल की लड़कियां अच्छे कपड़े पहनकर आती थीं, यह सब देखकर मुझे शर्म आती थी.

फिलहाल निकिता पवार संत गाडगेबाबा अमरावती विश्वविद्यालय से पीएचडी की तैयारी कर रही हैं. निकिता का रिसर्च टॉपिक फासेपर्धी जनजाति के बच्चों का शैक्षणिक और स्वास्थ्य समाजशास्त्रीय अध्ययन है. अरुण चव्हाण के मार्गदर्शन में उनका रिसर्च वर्क चल रहा है.

ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद निकिता ने जयेश चंद्रमोहन राजे से शादी कर ली. निकिता ने बताया, "मेरे पति ने मुझे आगे की पढ़ाई के लिए मदद की क्योंकि मुझे शिक्षा में रुचि थी. समाज के प्रति मेरा जुनून देखकर मेरे पति चाहते थे कि मैं राजनीति में शामिल हो जाऊं. उनके प्रोत्साहन के कारण मैंने 2016 में जिला परिषद के अंजनगांव बारी सर्कल से चुनाव भी लड़ा. हालांकि, मैं चुनाव हार गई."

उन्होंने कहा कि भले ही मैं हार गई, लेकिन इस चुनाव ने मुझे समाज के लिए लड़ना सिखाया. निकिता कहती हैं कि उन्होंने चुनाव के अनुभव के जरिए अपने समाज के कई मुद्दों को सरकार के सामने रखने की कोशिश की. उन्होंने आगे कहा, "हमारे समुदाय के बच्चों को सिर्फ पैसे की जरूरत नहीं है, बल्कि प्रेरणादायी काम करने वालों की प्रशंसा की भी जरूरत है. कई लोगों ने मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे प्रेरित किया. इसी वजह से मैं कई बार अपने समुदाय के मुद्दों को प्रशासन के सामने रख पाई हूं."

निकिता ने बताया कि वह अपने सेतु फाउंडेशन के तहत राजुरा में बच्चों के लिए एक हॉस्टल शुरू कर रही हैं. अनाथ बच्चों को हम इस छात्रावास में आश्रय देने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "मैं इन बच्चों की सारी शिक्षा खुद ही करूंगी. मैं अपने समुदाय के कम से कम दस बच्चों में से एक को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हूं. मेरा सपना है कि हमारे समुदाय के बच्चे पढ़ें और बड़े हों."

यह भी पढ़ें- प.बंगाल के डॉक्टरों की भूख हड़ताल जारी, बोले- कोई भी साबित नहीं कर सकता कि हमारी मांगें गलत हैं...

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.