भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस को जो हार का सामना करना पड़ा है. इस हार के बाद कांग्रेस संगठन और कांग्रेस की भविष्य की रणनीति को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. उपचुनाव के नतीजों के बाद से कांग्रेस संगठन को मजबूत करने की तैयारियां तेज हो गई हैं. कमलनाथ के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी के नए सिरे से गठन करने की तैयारियां तेज हो गई है. इसके अलावा कमलनाथ की आगामी रणनीति को लेकर भी कई तरह की अटकलें सियासी गलियारों में चल रही है. बुधवार को होने वाली विधायक दल की बैठक में समीक्षा के बाद कांग्रेस संगठन में फेरबदल और भविष्य के चुनाव की रणनीति के हिसाब से संगठन को मजबूत करने की चर्चा हो सकती है.
कांग्रेस के निशाने पर थे सिंधिया
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरते ही और सिंधिया के बगावत के बाद कांग्रेस ने शुरू से बिकाऊ और टिकाऊ, गद्दार जैसे शब्दों को लेकर अपने प्रचार अभियान को तेज किया था. आक्रमक प्रचार के साथ कांग्रेस के निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया थे. शुरुआती दौर में कांग्रेस का यह आक्रमक प्रचार बीजेपी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए मुसीबत भी बनता हुआ नजर आया. लेकिन जैसे ही बीजेपी को समझ में आया कि सिंधिया के कारण उपचुनाव में नुकसान हो सकता है. इसके बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदल कर सभी दिग्गजों को अलग-अलग मोर्चे पर तैनात किया.
बीजेपी ने लगातार चुनाव क्षेत्रों में किसी न किसी बहाने कार्यक्रम आयोजित किए और कांग्रेस सिर्फ गद्दारों और बगावत के मुद्दे पर फोकस करती रही. कांग्रेस की कोशिश यही रही कि चुनावी मुद्दों से न भटके. जनता के मिजाज से भी नजर आया कि जनता इतनी बड़ी बगावत के खिलाफ है. लेकिन जब EVM से चुनाव परिणाम निकले तो वह चौंकाने वाले थे.
कांग्रेस को निभानी होगी मजबूत विपक्ष की भूमिका
उपचुनाव के परिणाम के साथ विधानसभा चुनाव 2018 में 114 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरने वाली कांग्रेस अब 100 के अंदर सिमट गई है. लेकिन फिर भी पिछले 2003, 2008 और 2013 के मुकाबले कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को जहां सदन में मजबूत विपक्ष की भूमिका में नजर आना होगा. तो वहीं दूसरी तरफ सड़क पर मजबूत संगठन के साथ जहां कार्यकर्ताओं में जोश भरना होगा. वहीं कमजोर कड़ियों पर सुधार करना होगा.
उपचुनाव में हुई बड़ी हार के बाद सियासी गलियारों में भी लगातार सवाल उठ रहे हैं. कमलनाथ अब मध्य प्रदेश की सियासत में सक्रिय रहेंगे या फिर केंद्र की राजनीति में जाएंगे. हालांकि जिस तरीके से कमलनाथ ने उपचुनाव लड़ा है, और जितने समर्पण के साथ उन्होंने उपचुनाव के लिए काम किया है. ऐसे में कम ही आसार है कि, कमलनाथ मध्य प्रदेश की सियासत से अपने आप को दूर करेंगे. लिहाजा हो सकता है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी अब संगठन को मजबूत करने के साथ विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारियों में जुट जाएंगे.
नेता प्रतिपक्ष की भूमिका के लिए नए चेहरे की तलाश !
कांग्रेस की इस बड़ी हार के साथ मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन में फेरबदल और सदन में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में नए चेहरे पर भी चर्चा हो सकती है. चर्चा है कि कमलनाथ पहले ही दिल्ली में आलाकमान से मुलाकात करके संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिहाज से फेरबदल की तैयारियों में मतदान के बाद ही जुट गए थे. ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है कि कमलनाथ फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे, और सदन में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका किसी वरिष्ठ विधायक को दी जा सकती है. क्योंकि कांग्रेस की कोशिश होगी कि वह सदन और सड़क दोनों मोर्चे पर शिवराज सरकार को घेरे, और आने वाले 3 सालों में संगठन को इतना मजबूत करे कि बीजेपी को जवाब दिया सके.
मप्र कांग्रेस संगठन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर की माने तो उनका कहना है कि, कांग्रेस का संगठन चुनाव में मजबूत था. हमारे अध्यक्ष ने सभी 27-28 सीटों पर पूरे संगठन को व्यवस्थित किया. मंडल बनाए, सेक्टर बनाए और बूथ मैनेजमेंट किया, लेकिन आगे और भी जरूरत होगी, तो सुधार किया जाता है. सुधार की गुंजाइश हर काम में हमेशा रहती है. जहां संगठन के विषय में अगर कोई निर्णय होना है तो वह अध्यक्ष स्वयं विचार करेंगे और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के जो निर्देश होंगे उस पर विचार किया जाएगा.