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दशहरे पर ऐसा क्या लिख गईं थीं शाहजहां बेगम की भारतेंदु हरिश्चंद्र भी तारीफ को मजबूर हो गए

नवाबों के शहर में बेगमों की बयानी इमारतों के साथ तो होती रही हमेशा.....इबारतों का ज़िक्र कब आया. आप कितना जानते हैं भोपाल की उस बेगम के बारे में जिसने रियासत की जिम्मेदारियां संभालते हुए भी अपने हुनर की धार बरकरार रखी. जिसने हाथ में थामी कलम और कूची.....कैनवास पर रंग उतारे तो दशहरे पर नज्म भी कही. सरजमी ए हिंदुस्तान को उस बेगम की निगाह से देखिए तो ज़रा. ऐसा क्या लिख दिया करती थीं शाहजहा बेगम कि जिनकी कविताएं छपवाने की पैरवी करने खुद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखी थी चिट्ठी.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम की दशहरे पर नज्म
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Published : Jan 18, 2023, 12:56 PM IST

Updated : Jan 18, 2023, 1:31 PM IST

शाहजहां बेगम की दशहरे पर नज्म

भोपाल। शाहजहां बेगम (Bhopal Nawab Shahjahan Begum) को अब तक अगर आप ताजुल मसाजिद के साथ याद करते हों, तो आपकी जानकारी में कुछ इजाफा कर लीजिए. इमारतों के साथ जिनकी याद होती रही. उर्दू की शायरा रही शाहजहां बेगम रियासत के कामों से फारिग होकर अपनी नज़्मों में हिंदुस्तान के मौसम यहां के त्योहारों के साथ सर ज़मीन ए हिंद के अलग अलग रंग उतारा करती थीं. उर्दू फारसी के जानकार बद्र वास्ती बताते हैं शाहजहां बेगम ने शीरी फिर ताजवर के तखल्लुस से दो किताबें शाया हुईं. इनमें ताजुदा कलाम और दीवानें शीरी ये वो दो किताबें हैं जिनमें उर्दू की गजलें थीं.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम को 3 ज़ुबानों में महारत हासिल

शाहजहां बेगम को 3 ज़ुबानों में महारत हासिल: एक आम घरेलू औरत की जिंदगी पर लिखी गई उनकी किताब तहज़ीब निसवान थी. जो हिंदी उर्दू दोनों ज़बानों में शाया हुई. हिंदी में रुपरतन के नाम से लिखती रहीं शाहजहां बेगम और उर्दू की ही एक विधा मसनवी की उनकी किताब सिदकुल बयान यानि सच्चा बयान में उन्होंने दशहरे के साथ भारत के किसानों की मेहनत गांव,देहात को बड़ी खूबी से उतारा था. उर्दू फारसी के जानकार और शायर बद्र वास्ती कहते हैं ये बड़ी बात थी शाहजहां बेगम की कि उन्होंने उर्दू, हिंदी और फारसी तीनों ज़बानो में महारत हासिल की और बहुत खूब लिखा भी. दूसरी एक खासियत उनकी ये थी कि वो आम औरत की जिंदगी को अपनी शायरी में उतारती थीं.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम की नज्म की भारतेंदु हरिश्चंद्र ने की थी तारीफ

भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने क्यों की थी शाहजहां बेगम की पैरवी: भारतेंदु हरिश्चंद्र की राखी बहन थी शाहजहां बेगम. लंबे समय तक दोनों के बीच कविता और शायरी को लेकर खतों किताबत हुई. एक वाकया भी चर्चा में है, जिसमें कहा जाता है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी बहन शाहजहां बेगम की कविता छपवाने हिंदी पत्रिका भारत मित्र को एक चिट्ठी लिखी थी. उस खत में उन्होंने लिखा था कि भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम की दो कविताएं आपके पास भेज रहा हूं. उनकी कुछ गज़लें में चमनिस्तान बहार में प्रकाशित कर चुका हूं. उन्होंने आगे लिखा कि एक रियासत के भार में व्यस्त होने के बावजूद वे कितना सार्थक सृजन कर रही हैं. खत में ये उल्लेख भी था कि शाहजहां बेगम हिंदी में रुपरतन के नाम से लिखती हैं.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने की थी शाहजहां बेगम की पैरवी

Bhopal ka Tajmahal भोपाल का ताजमहल, जिसका कांच भी नहीं तोड़ पाए थे अंग्रेज, आज वक्त की मार का शिकार खूबसूरत इमारत

शाहजहां बेगम की ज़ुबानी दशहरे की बयानी: शाहजहां बेगम की किताब सिदकुल बयान एक मसनवी है. मसनवी उर्दू शायरी की वो विधा जिसमें किसी एक विषय पर मुसलसल बयान किया जाता है, इसमें दशहरे का बयान इन्ही में से एक है. शायर बद्र वास्ती कहते हैं ये ज़रा मुश्किल विधा मानी जाती है लेकिन शाहजहां बेगम देखिए कितनी खूबसूरती से बयानी करती हैं. दूसरी एक बात कि जो भोपाल की गंगा-जमुनी तहज़ीब रही है, उसकी मिसाल भी उनकी शायरी में दर्ज हुई.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम ने दशहरे पर लिखी नज़्म

दशहरे पर लिखी गई उनकी ये नज्म है.
रखा फस्ल ए सरना ने है अब कदम
करूं हिंद की रस्म पहली रकम.
हो जब क्वांर का माह नजदीक खत्म
वो करते हैं इसमें दसहरे की रस्म.
बहुत राजपूत इसमें करते हैं धूम
हर एक सिम्त होता है उनका हुजूम.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम की उर्दू में लिखी नज़्म

इसी तरह से शाहजहां बेगम मौसम की बयानी करते हुए लिखती हैं,
कैसी बदरिया कारी छायी
प्रिय बिन बरखा ऋतु आयी.
झींगुर मोर चिघार पुकारे
कल न परे मोहि पिय के मारे
पापी पपीहा ने आन जगायी.

सरज़मी ए हिंदुस्तान में शाहजहां बेगम लिखती हैं.
के है किश्वर ए हिंद जो बेमिसाल
हज़ारो हैं शहर उसमें लाखों रुहाल .
है सरसब्ज़ शादाब सारी ज़मीन
और आब ओ हवा है बहुत खुशतरीन.

शाहजहां बेगम की दशहरे पर नज्म

भोपाल। शाहजहां बेगम (Bhopal Nawab Shahjahan Begum) को अब तक अगर आप ताजुल मसाजिद के साथ याद करते हों, तो आपकी जानकारी में कुछ इजाफा कर लीजिए. इमारतों के साथ जिनकी याद होती रही. उर्दू की शायरा रही शाहजहां बेगम रियासत के कामों से फारिग होकर अपनी नज़्मों में हिंदुस्तान के मौसम यहां के त्योहारों के साथ सर ज़मीन ए हिंद के अलग अलग रंग उतारा करती थीं. उर्दू फारसी के जानकार बद्र वास्ती बताते हैं शाहजहां बेगम ने शीरी फिर ताजवर के तखल्लुस से दो किताबें शाया हुईं. इनमें ताजुदा कलाम और दीवानें शीरी ये वो दो किताबें हैं जिनमें उर्दू की गजलें थीं.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम को 3 ज़ुबानों में महारत हासिल

शाहजहां बेगम को 3 ज़ुबानों में महारत हासिल: एक आम घरेलू औरत की जिंदगी पर लिखी गई उनकी किताब तहज़ीब निसवान थी. जो हिंदी उर्दू दोनों ज़बानों में शाया हुई. हिंदी में रुपरतन के नाम से लिखती रहीं शाहजहां बेगम और उर्दू की ही एक विधा मसनवी की उनकी किताब सिदकुल बयान यानि सच्चा बयान में उन्होंने दशहरे के साथ भारत के किसानों की मेहनत गांव,देहात को बड़ी खूबी से उतारा था. उर्दू फारसी के जानकार और शायर बद्र वास्ती कहते हैं ये बड़ी बात थी शाहजहां बेगम की कि उन्होंने उर्दू, हिंदी और फारसी तीनों ज़बानो में महारत हासिल की और बहुत खूब लिखा भी. दूसरी एक खासियत उनकी ये थी कि वो आम औरत की जिंदगी को अपनी शायरी में उतारती थीं.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम की नज्म की भारतेंदु हरिश्चंद्र ने की थी तारीफ

भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने क्यों की थी शाहजहां बेगम की पैरवी: भारतेंदु हरिश्चंद्र की राखी बहन थी शाहजहां बेगम. लंबे समय तक दोनों के बीच कविता और शायरी को लेकर खतों किताबत हुई. एक वाकया भी चर्चा में है, जिसमें कहा जाता है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी बहन शाहजहां बेगम की कविता छपवाने हिंदी पत्रिका भारत मित्र को एक चिट्ठी लिखी थी. उस खत में उन्होंने लिखा था कि भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम की दो कविताएं आपके पास भेज रहा हूं. उनकी कुछ गज़लें में चमनिस्तान बहार में प्रकाशित कर चुका हूं. उन्होंने आगे लिखा कि एक रियासत के भार में व्यस्त होने के बावजूद वे कितना सार्थक सृजन कर रही हैं. खत में ये उल्लेख भी था कि शाहजहां बेगम हिंदी में रुपरतन के नाम से लिखती हैं.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने की थी शाहजहां बेगम की पैरवी

Bhopal ka Tajmahal भोपाल का ताजमहल, जिसका कांच भी नहीं तोड़ पाए थे अंग्रेज, आज वक्त की मार का शिकार खूबसूरत इमारत

शाहजहां बेगम की ज़ुबानी दशहरे की बयानी: शाहजहां बेगम की किताब सिदकुल बयान एक मसनवी है. मसनवी उर्दू शायरी की वो विधा जिसमें किसी एक विषय पर मुसलसल बयान किया जाता है, इसमें दशहरे का बयान इन्ही में से एक है. शायर बद्र वास्ती कहते हैं ये ज़रा मुश्किल विधा मानी जाती है लेकिन शाहजहां बेगम देखिए कितनी खूबसूरती से बयानी करती हैं. दूसरी एक बात कि जो भोपाल की गंगा-जमुनी तहज़ीब रही है, उसकी मिसाल भी उनकी शायरी में दर्ज हुई.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम ने दशहरे पर लिखी नज़्म

दशहरे पर लिखी गई उनकी ये नज्म है.
रखा फस्ल ए सरना ने है अब कदम
करूं हिंद की रस्म पहली रकम.
हो जब क्वांर का माह नजदीक खत्म
वो करते हैं इसमें दसहरे की रस्म.
बहुत राजपूत इसमें करते हैं धूम
हर एक सिम्त होता है उनका हुजूम.

Shahjahan Begum wrote poem on Dussehra
शाहजहां बेगम की उर्दू में लिखी नज़्म

इसी तरह से शाहजहां बेगम मौसम की बयानी करते हुए लिखती हैं,
कैसी बदरिया कारी छायी
प्रिय बिन बरखा ऋतु आयी.
झींगुर मोर चिघार पुकारे
कल न परे मोहि पिय के मारे
पापी पपीहा ने आन जगायी.

सरज़मी ए हिंदुस्तान में शाहजहां बेगम लिखती हैं.
के है किश्वर ए हिंद जो बेमिसाल
हज़ारो हैं शहर उसमें लाखों रुहाल .
है सरसब्ज़ शादाब सारी ज़मीन
और आब ओ हवा है बहुत खुशतरीन.

Last Updated : Jan 18, 2023, 1:31 PM IST
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