इंदौर: प्रयागराज के महाकुंभ में एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स पहुंची हैं. वे महाकुंभ में कल्पवास कर रही हैं. इसको लेकर मंगलवार को मकर संक्रांति पर सनातन संस्कृति और भारतीय अध्यात्म के बारे में बात करते हुए कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने लॉरेन का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि "दुनिया भर में लोगों के पास भले ही कितने पैसे हो जाए, लेकिन मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए लोग अब भारतीय परंपरा और भारत का रुख कर रहे हैं. जिनमें से एक लॉरेन हैं, जो प्रयागराज महाकुंभ में कल्पवास कर रही हैं"
10 दिन का कल्पवास करेंगी लॉरेन
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी अमृत स्नान करने पहुंची हैं. जहां उनके आध्यात्मिक गुरु कैलाश नंद गिरी ने उन्हें कमला नाम दिया है. मंगलवार को मकर संक्रांति के अवसर पर भारत के आध्यात्मिक महत्व का जिक्र करते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने कहा "एप्पल के को-फाउंडर की पत्नी लॉरेन पिछले 3 दिनों से कुंभ में है, जो 10 दिन का कल्पवास कर रही हैं." उन्होंने कहा कि "उनके पास इतना पैसा है कि वह दुनिया के 10 अमीरों की श्रेणी में है, किसी भी इंसान के पास पैसा कितना भी आ जाए, लेकिन लोग शांति की तलाश में भारत आना चाहते हैं."
उन्होंने कल्पवास के नियम का जिक्र करते हुए कहा कि "कल्पवास के दौरान सुबह उठकर गंगा जी में स्नान करना होता है. एक समय भोजन करना होता है." हालांकि कुछ लोग फलहार भी करते हैं, लेकिन मूल बात यह है कि लोग आज भी आध्यात्मिक और मानसिक शांति के लिए भारतीय परंपरा और सनातन की ओर आकर्षित हैं. इधर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने भी लॉरेन के बारे में कहा था कि "अध्यात्म की खोज ने उन्हें यहां ले आई है, जो सनातन संस्कृति को देखने आई हैं."
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क्या होता है कल्पवास
कल्पवास का मतलब संगम के तट पर रहते हुए वेद का अध्ययन ध्यान और पूजा करना है. कल्पवास पोस्ट माह के 11 दिन से प्रारंभ होकर माघ माह के 12 दिन तक किया जाता है. जिसमें आध्यात्मिक विकास का महत्व है और पापों से मुक्ति का विधान है. जिसमें व्यक्ति पीले रंग के वस्त्र या गेरुआ रंग के वेस्टन में रहकर सत्य वचन, अहिंसा, इंद्रियों पर नियंत्रण, दया भाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग और ब्रह्म मुहूर्त में जागने से लेकर नित्य नदी में स्नान, पिंडदान अथवा सत्संग और संकीर्तन आदि करना होता है. इस दौरान दिन में एक बार भोजन और भूमि पर शयन के साथ व्रत उपवास और दान का महत्व है.