भोपाल। इंदौर के हादसे के बाद हर कोई बावड़ियों को लेकर चिंता जता रहा है. किसी को इस बात की चिंता है कि इनसे खतरा है और कोई इनके अस्तित्व को लेकर चिंतित है. भोपाल में भी हाल कुछ ऐसा ही है. यहां करीब 12 बावड़ियां हैं, जिनमें से ज्यादातर पर कब्जे हो गए हैं. लोगों ने इनकी दीवारों पर अपने घर की दीवार खड़ी कर ली है. हाल यह है कि कुछ बावड़ियों को तो पूरी तरह से खत्म करके इनका पानी निजी काम में लिया जा रहा है.
परमार कालीन बावड़ी: शहरी क्षेत्र में परमार कालीन कुल 9 बावड़ियां अभी जीवित हैं, लेकिन जर्जर अवस्था में. इंदौर की तरह भोपाल में भी इन बावड़ी में से कुछ पर लोगों ने कब्जा कर लिया है. ETV Bharat ने इंदौर हादसे के बाद शहर की इन 9 बावड़ियों में से 3 का जायजा लिया तो 3 अलग अलग स्थिति सामने आई. सबसे पहली ऐशबाग स्टेडियम से एकदम सटकर बनी है. लेकिन इसे ढूंढते रह जाओगे, क्योंकि इस पर किसी ठेकेदार ने कब्जा करके अपनी निजी संपत्ति जैसा बना लिया है. मौके पर मौजूद एक शख्स ने बताया कि भीतर बावड़ी में जाना है तो उसने बताया कि मालिक ने ताला लगाया है और अभी भीतर नहीं जा सकते हैं. आसपास के लोगों ने दबी जुबान में बताया कि इस बावड़ी की दीवारों पर कब्जे करने वाले नया निर्माण कर दिया है. बड़ी बात यह है कि इस बावड़ी में आज भी पानी मौजूद है और इसका इस्तेमाल वह निजी काम में करता है.
महामाई के बाग में दूसरी बावड़ी है. यह चारों तरफ से खुली है और इससे सटाकर लोगों ने कब्जा कर लिया है. बच्चे इस बावड़ी के किनारे खेलते हैं. पीछे की तरफ लोगे का जंगला कर रख दिया, लेकिन यह पूरी तरह से ढका नहीं है. बच्चे यहां बैठकर खेलते हैं. यहीं रहने वाली गोमती माली ने बताया कि 12 साल पहले तक नगर निगम बावड़ी साफ करता था और लोग भी इसका ध्यान रखते थे. बावड़ी का पानी इतना साफ था कि लोग इसे पीने केे काम में इस्तेमाल करते थे, लेकिन नगर निगम अपनी मोटर ले गया. इसके बाद इसे कचरा घर बना दिया है, ऊपर से इसे ढका भी नहीं है. ऐसे में यह खतरा बन गया है.
एकमात्र सुरक्षित बावड़ी, हो सकता है हादसा: शहर के नवीन नगर इलाके में स्थित खुशवंत राय की बावड़ी, जो न केवल सुरक्षित है, बल्कि इसे आसपास के लोगों ने संरक्षित भी करके रखा है. ऐशबाग के नवीन नगर में भोपाल रियासत के तात्कालीन प्रधानमंत्री रहे खुशवक्त राय की बावड़ी और समाधिस्थल (छतरी) का जीर्णोद्घार हुआ है लेकिन अभी इसका पानी पीने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है. पुरातत्व विभाग ने इसके जीर्णोद्धार के लिए 7.5 लाख रुपए भी मंजूर किए थे. इस बावड़ी को तार फेंसिंग से कवर कर दिया है लेकिन यहां भी एक बड़ा खतरा इसकी छत पर है. दरअसल शाम होते ही बच्चे छत पर चढ़ जाते हैं और मस्ती करते हैं. छत खुली है और एक भी तरफ परकोटा नहीं बना है. ऐसे में बच्चों के फिसलकर बावड़ी में गिरने का डर बना रहता है. बावड़ी में पानी मौजूद है, लेकिन इसकी सफाई नहीं होती है गेट पर ताला लगा हुआ है.
बड़ा बाग बावड़ी: लगभग 30 एकड़ क्षेत्र में फैले बड़े बाग में एक विशाल बावड़ी बनी हुई है. यह शहर की सबसे बड़ी बावड़ी है, जो लगभग आधे एकड़ के एरिया में फैली हुई है. आजादी के पहले नवाब रियासतकाल में आम जनता के पेयजल के लिए इस बावड़ी का उपयोग होता था. इस बावड़ी को इस खूबसूरती से बनवाया गया कि गर्मियों के दिनों में रहने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सके.
बाग उमराव दूल्हा की बावड़ी: इसके आसपास लोगों ने इस कदर कब्जे कर लिए हैं कि यह बावड़ी एकदम से नजर भी नहीं आती है. आसपास रहने वाले निर्माण के लिए इसी बावड़ी का पानी इस्तेमाल करते हैं. अब लोगों ने इसे कचरा घर बना दिया है.
स्मार्ट सिटी ने संरक्षित करने का बनाया था प्लान, अब तक है अधूरा: भोपाल स्मार्ट सिटी डवलपमेंट कार्पोरेशन (बीएससीडीसीएल) द्वारा शहर की बावड़ियों को संवारने के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवाई गई थी. इस रिपोर्ट में 2 तरह के मास्टर प्लान तैयार किए गए थे. पहला ब्लू और दूसरा ग्रीन. ग्रीन मास्टर प्लान के तहत ही शहर की बावड़ियों को संवारने और सहेजने के काम किया जाना था जबकि ब्लू प्रोजेक्ट के तहत दूसरे जल स्त्रोतों को संवारना था. स्मार्ट सिटी ने इसका काम इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इनटेक) और मप्र सुशासन एवं नीति विश्लेषण को सौंपा था. इनटेक ने शहर की दस बावड़ियों को चिन्हित करके काम भी शुरू कर दिया था. इसके अंतर्गत पता लगाया जा रहा था कि किस तरह इन बावड़ियों में जल संग्रहित होता है और कैसे इनके जरिए सप्लाई की जा सकेगी. यह रिपोर्ट बनाकर स्मार्ट सिटी को दी जानी थी, ताकि इसके बाद स्मार्ट सिटी टेंडर की प्रक्रिया शुरू कर सके. स्मार्ट सिटी के तत्कालीन सीईओ दीपक सिंह खुद अपनी देखरेख में करवा रहे थे, लेकिन उनका ट्रांसफर होते ही काम रुक गया और अब भी अटका है. उनके जाने के बाद तीन सीईओ बदल चुके हैं.
विकास के लिए तरसती मुगलकालीन 'बावड़ी'!
बावड़ियों के संरक्षण के लिए शाजापुर मॉडल: भोपाल और इंदौर की दर्जनों बावड़ियों की सफाई के लिए शाजापुर मॉडल को अपनाने की योजना सरकार ने बनाई थी. दरअसल शाजापुर नगर पालिका ने मां राजराजेश्वरी मंदिर के समीप मेला परिसर से लगी बावडी की सफाई के मामले में जबरदस्त काम किया था. अब यहां लोग पानी पीने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
यह हैं शहर की ऐतिहासिक बावड़ियां
- नवी बाग स्थित सबसे पुरानी बावड़ी
- बैरसिया रोड पर इस्लाम नगर वाले मोड़ से किले के बीच रास्ते में पड़ती है एक ऐतिहासिक बावड़ी
- बड़े बाग की खूबसूरत बावड़ी
- बाग फरत अफजा की बावड़ी
- ऐशबाग स्टेडियम के पास बाग फरत अफजा की बावड़ी
- बाग उमराव दुल्लाह की बावड़ी
- गिन्नौर गढ़ किले में हैं 4 बावड़ियां
- रायसेन किले में हैं दो बड़ी और एक छोटी बावड़ी