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अफसोस, आज भी सरकारी रिकार्ड में शहीद नहीं हैं भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को सरकारी रिकार्ड में भले शहीद का दर्जा ना मिला हो लेकिन ये देशभक्त भारत के लोगों के दिलों में राज करते हैं. यह कहना है भगत सिंह के भतीजे किरणजीत संधू का. ईटीवी भारत से खास बातचीत में इन तीनों शहीदों के परिजनों ने कई बातें शेयर की हैं. मांग की कि इन देशभक्तों को सरकारी रिकार्ड में भी शहीद का दर्जा मिले.

Bhagat Singh Sukhdev and Rajguru got martyr status
तीनों क्रांतिकारियों को मिले शहीद का दर्जा
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Published : Mar 24, 2023, 4:25 PM IST

Updated : Mar 24, 2023, 4:51 PM IST

क्रांतिकारियों को मिले शहीद का दर्जा

भोपाल। न इंतज़ार करो इनका ए अज़ादारो शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु इनकी शहादत के बिना देश आज़ादी का सूरज देख पाता ये नामुमकिन था. लेकिन हैरत की बात है कि सरकारी रिकॉर्ड में ये देशभक्त आज भी शहीद का दर्जा नहीं पा सके हैं. वजह ये है कि आजादी के बाद जिन लोगों ने देश के लिए प्राण न्यौछावर किए हैं उन्हें ही सरकारी रिकार्ड में शहीद का दर्जा दिया गया है. ऐसे में इन शहीदों के परिजनों का कहना है कि देश में अब एक अलग क्रांति आई हुई है. भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत संधू कहते हैं कि भगत सिंह को भले ही सरकारों ने सरकारी रिकॉर्ड में शहीद का दर्जा नहीं दिया, लेकिन वह आज भी लोगों के दिलों में राज करते हैं और शहीद-ए-आजम कहलाते हैं.

दुनिया ने देखा तीनों का देश प्रेम: किरणजीत सिंह ने एक बार फिर वीर क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा देने की मांग की. वह भगत सिंह के आखिरी दिनों का एक किस्सा भी सुनाते हैं. वह बताते हैं कि '' भगत सिंह के जेल में रहते हुए जब उनका परिवार भगत सिंह से मिलने गया था, तब अंग्रेजों ने उनके परिवार को मिलने से रोक दिया था. ऐसे में सुखदेव, राजगुरु के घरवालों ने भी अपने बेटों से मिलने से मना कर दिया था, यही देश प्रेम दर्शाता है''.

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भोपाल में बनाया जाए भारत द्वार: वहीं, सुखदेव के पोते अनुज थापक ने भी इन तीनों को शहीद का दर्जा दिए जाने का समर्थन किया है. उनका कहना है कि ''केंद्र में इसको लेकर चर्चा भी चल रही है लेकिन आगे देखिए क्या होता है''. उनका कहना है कि ''मध्यप्रदेश सरकार शहीदों के लिए बेहतर काम कर रही है, उनके लिए जो प्रतिमा स्थापित की जा रही हैं उससे निश्चित ही लोगों को प्रेरणा मिलेगी''. वहीं, अनुज ने एक बार फिर मांग की है कि दिल्ली में बनने वाले भारत द्वार को भोपाल में बनाया जाए. क्योंकि दिल्ली काफी दूर होता है और भोपाल में अगर यह बनेगा तो निश्चित तौर पर लोग देखने आएंगे. क्योंकि भोपाल देश के मध्य में पड़ता है और ऐसे में हर राज्य का व्यक्ति यहां पर आ सकता है. वह कहते हैं कि ''इसके लिए उन्होंने सरकार से भी मांग की है और सरकार का पक्ष भी इस और नजर आ रहा है. लेकिन आगे देखिए क्या होता है''. वहीं, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की जीवनी को मध्यप्रदेश के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा का भी अनुज ने स्वागत किया. उनका कहना है कि जब भगत सिंह और अन्य शहीदों की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल होगी तो निश्चित ही उनके बारे में आने वाली पीढ़ी को पता चलेगा.

शहीदों के वंशज होने पर गर्व: वहीं राजगुरु के भाई के पोते विलास राजगुरु कहते हैं कि ''शहीदों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने जो शहादत दी है उसी का परिणाम है कि हम आज आजाद भारत में घूम रहे हैं. हमारा परिवार जहां भी जाता है तो लोग हमें वही सम्मान और सत्कार देते हैं, जिससे हमें यह गर्व होता है कि हम इन शहीदों के वंशज हैं''.

क्रांतिकारियों को मिले शहीद का दर्जा

भोपाल। न इंतज़ार करो इनका ए अज़ादारो शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु इनकी शहादत के बिना देश आज़ादी का सूरज देख पाता ये नामुमकिन था. लेकिन हैरत की बात है कि सरकारी रिकॉर्ड में ये देशभक्त आज भी शहीद का दर्जा नहीं पा सके हैं. वजह ये है कि आजादी के बाद जिन लोगों ने देश के लिए प्राण न्यौछावर किए हैं उन्हें ही सरकारी रिकार्ड में शहीद का दर्जा दिया गया है. ऐसे में इन शहीदों के परिजनों का कहना है कि देश में अब एक अलग क्रांति आई हुई है. भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत संधू कहते हैं कि भगत सिंह को भले ही सरकारों ने सरकारी रिकॉर्ड में शहीद का दर्जा नहीं दिया, लेकिन वह आज भी लोगों के दिलों में राज करते हैं और शहीद-ए-आजम कहलाते हैं.

दुनिया ने देखा तीनों का देश प्रेम: किरणजीत सिंह ने एक बार फिर वीर क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा देने की मांग की. वह भगत सिंह के आखिरी दिनों का एक किस्सा भी सुनाते हैं. वह बताते हैं कि '' भगत सिंह के जेल में रहते हुए जब उनका परिवार भगत सिंह से मिलने गया था, तब अंग्रेजों ने उनके परिवार को मिलने से रोक दिया था. ऐसे में सुखदेव, राजगुरु के घरवालों ने भी अपने बेटों से मिलने से मना कर दिया था, यही देश प्रेम दर्शाता है''.

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भोपाल में बनाया जाए भारत द्वार: वहीं, सुखदेव के पोते अनुज थापक ने भी इन तीनों को शहीद का दर्जा दिए जाने का समर्थन किया है. उनका कहना है कि ''केंद्र में इसको लेकर चर्चा भी चल रही है लेकिन आगे देखिए क्या होता है''. उनका कहना है कि ''मध्यप्रदेश सरकार शहीदों के लिए बेहतर काम कर रही है, उनके लिए जो प्रतिमा स्थापित की जा रही हैं उससे निश्चित ही लोगों को प्रेरणा मिलेगी''. वहीं, अनुज ने एक बार फिर मांग की है कि दिल्ली में बनने वाले भारत द्वार को भोपाल में बनाया जाए. क्योंकि दिल्ली काफी दूर होता है और भोपाल में अगर यह बनेगा तो निश्चित तौर पर लोग देखने आएंगे. क्योंकि भोपाल देश के मध्य में पड़ता है और ऐसे में हर राज्य का व्यक्ति यहां पर आ सकता है. वह कहते हैं कि ''इसके लिए उन्होंने सरकार से भी मांग की है और सरकार का पक्ष भी इस और नजर आ रहा है. लेकिन आगे देखिए क्या होता है''. वहीं, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की जीवनी को मध्यप्रदेश के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा का भी अनुज ने स्वागत किया. उनका कहना है कि जब भगत सिंह और अन्य शहीदों की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल होगी तो निश्चित ही उनके बारे में आने वाली पीढ़ी को पता चलेगा.

शहीदों के वंशज होने पर गर्व: वहीं राजगुरु के भाई के पोते विलास राजगुरु कहते हैं कि ''शहीदों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने जो शहादत दी है उसी का परिणाम है कि हम आज आजाद भारत में घूम रहे हैं. हमारा परिवार जहां भी जाता है तो लोग हमें वही सम्मान और सत्कार देते हैं, जिससे हमें यह गर्व होता है कि हम इन शहीदों के वंशज हैं''.

Last Updated : Mar 24, 2023, 4:51 PM IST
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