भिंड। मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज जल्द ही गौ संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ कैबिनेट का गठन करने जा रहे हैं, ऐसे में भिंड जिले के अंतर्गत बनी शासकीय गौशालाओं के हालात जानने ईटीवी भारत ने कांग्रेस सरकार के दौरान चितौरा पंचायत में मुख्यमंत्री गौ सेवा योजना के तहत तैयार हुई मां त्रिवेणी गौशाला का जायजा लिया.
मुख्यमंत्री गौसेवा योजना के तहत हुआ था निर्माण
पूर्व की कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सड़कों पर घूम रहे आवारा गौवंश की रक्षा और किसानों को आवारा गौवंश की वजह से होने वाली खेती के नुकसान से बचाने के लिए ग्राम पंचायतों में मुख्यमंत्री गौ सेवा योजना के तहत गौशाला निर्माण की व्यवस्था की थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में जाती दिख रही है.
गौशाला की अधिकतम क्षमता 100 गौवंश
भिंड में संचालित हो रही ज्यादातर सरकारी गौशाला में 100 गौवंश के रखने की अधिकतम क्षमता है, ऐसे में गोहद ब्लाक में कुल नौ शासकीय गौशाला प्रस्तावित हुई थी जिनकी क्षमता 100 गौवंश की है, चितौरा ग्राम पंचायत में बनी गौशाला में ईटीवी भारत ने पाया कि गौशाला में पूरे 100 गौवंश रजिस्टर हैं जिनमें 98 गाय और दो सांड रह रहे हैं जिन की देखभाल गौशाला में कार्यरत तीन कर्मचारियों द्वारा की जाती है.
खर्चे की नहीं हो रही पूर्ति
गौशाला पर पहुंचने पर चितौरा सरपंच नाथूराम जाटव से ईटीवी भारत ने गौशाला की व्यवस्थाओं के बारे में बातचीत की तो, सरपंच ने बताया कि शासन द्वारा संचालित इस गौशाला में खर्चे की पूर्ति नहीं हो पा रही है. उन्होंने बताया कि शासन की ओर से टेबलेट की पूरी रकम भी उन्हें उपलब्ध नहीं हो पा रही है, करीब 10-11 महीनों से गौशाला का संचालन हो रहा है जिसमें अब तक चार लाख से ज्यादा की रकम खर्च हो चुकी है, लेकिन भुगतान महज दो लाख 75 हजार रुपए का ही हुआ है. साथ ही गौशाला में कार्यरत मजदूर कर्मचारियों की तनख्वाह के लिए भी कोई प्रावधान नहीं है, ऐसे में इन मजदूरों का भुगतान भी गौवंश के लिए निर्धारित बजट में ही व्यवस्थित करना पड़ता है.
अवैध रूप से करनी पड़ रही बिजली की व्यवस्था
चितौरा शासकीय गौशाला का जायजा लेते हुए ईटीवी भारत ने एक चीज पर भी गौर किया कि गौशाला के आसपास कहीं भी ट्रांसफार्मर नहीं था ऐसे में बिजली व्यवस्था के लिए केवल दो बिजली के तारों के जरिए लाइट की व्यवस्था की गई थी. जब इस संबंध में सरपंच से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पशुपालन विभाग की ओर से बिजली कंपनी के पास ट्रांसफार्मर रखवाने के लिए पैसे जमा करा दिए गए हैं, लेकिन आज तक यहां ट्रांसफार्मर नहीं लगवाया गया. जिसकी वजह से उन्हें अवैध रूप से बिजली के तार डालकर गौशाला में लाइट की व्यवस्था करनी पड़ रही है.
अस्थायी पाइपलाइन के जरिए पानी की पूर्ति
वहीं जब सरपंच से मवेशियों के लिए पेयजल व्यवस्था और साफ सफाई के लिए होने वाली पानी की व्यवस्था को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने बताया कि गौशाला में निर्माण के समय पानी का बोर करा दिया गया था, जिसमें काफी अच्छा पानी भी निकला, लेकिन आज तक ट्रांसफार्मर नहीं लगने से बोरिंग शुरू नहीं हो पाई है, ऐसे में करीब 700 फीट का एक पानी का पाइप गांव की बोरिंग से यहां तक लाया गया है, जिसके जरिए पानी की आपूर्ति व्यवस्था की जा रही है.
अधिकारी नहीं करते सुनवाई
सरपंच ने बताया कि गौशाला में हो रही सभी समस्याओं को लेकर कई बार वेटरनरी विभाग और जनपद सीईओ को शिकायत की है लेकिन आज तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हुई है यहां तक की मुख्य मार्ग से गौशाला आने के लिए भी सड़क निर्माण किया प्रतिवेदन कई बार दिया जा चुका है, लेकिन अब तक इसका निर्माण नहीं हुआ है पिछले 10 महीने से समस्याओं के निवारण के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कोई अधिकारी सुनवाई करने को तैयार नहीं है.
सरकारी गौशाला, प्रायवेट डॉक्टर पर इलाज
सरकारी गौशाला में रहने वाले मवेशियों के लिए समय-समय पर वेटरनरी डॉक्टर की टीम रेगुलर चेकअप के लिए जाती हैं जहां मवेशियों का वैक्सीनेशन, और उनके इलाज के लिए दवाइयां दी जाती है, लेकिन चितौरा गौशाला में सरपंच द्वारा बताया गया कि सिर्फ पिछले 11 माह में दो से तीन बार ही सरकारी डॉक्टर चेकअप के लिए आए हैं. ज्यादातर जब भी गौवंश को कोई समस्या होती है तो सरपंच को प्राइवेट डॉक्टर के जरिए ही उनका इलाज करवाना पड़ता है.
जनपद सीईओ बोले- चारे के लिए 20 रुपये का बजट कम
गौशाला में हो रही परेशानियों को लेकर जब हमने गोहद जनपद सीईओ नवल किशोर पाठक से बात की, तो उन्होंने बताया कि वेटरनरी विभाग की ओर से बिजली की समस्या के लिए कई बार बिजली कंपनी को सूचित किया जा चुका है. ट्रांसफार्मर रखने के लिए तय फीस भी जमा करा दी गई है, लेकिन बिजली विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. वहीं चारे के लिए 20 रुपए बजट पर जनपद सीईओ ने कहा कि शासन की व्यवस्थाएं हैं, यह निर्धारित लेकिन उन्हें लगता है कि बजट में चारे के लिए 15 रुपए का भूसा और पांच रुपए का दाना गौवंश का पेट भरने के लिए कम है. इसे कम से कम इसका बजट 50 रुपए होना चाहिए था. वहीं उन्होंने सुझाव देते हुए यह बात भी रखी के इन गौवंश की देखभाल के लिए स्थाई कर्मचारियों का होना भी जरूरी है, ऐसे में शासन को कम से कम 2 कर्मचारियों की गौशाला में ड्यूटी लगानी चाहिए.
रेगुलर पहुंचती है टीम
वहीं चितौरा गौशाला के प्रभारी पशु चिकित्सक डॉ आनंद त्रिपाठी भी मानते हैं कि हर गौवंश की चारे की अपनी जरूरत होती है, और उनके पेट भर चारे की व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि दुधारू गौवंश को अधिक मात्रा में चारे की जरूरत होती है, शासन ने फिलहाल 20 रुपए का बजट प्रति गौवंश तय किया है, इसके अलावा गौशाला में हरे चारे की व्यवस्था भी की जानी चाहिए. जहां हरे चारे की व्यवस्था नहीं होती है, वहां अन्य विकल्पों के जरिए व्यवस्थाएं बनाई जाती हैं. जब डॉक्टर आनंद त्रिपाठी से पूछा गया कि पिछले 11 महीनों में सिर्फ तीन बार ही पशु चिकित्सकों की टीम रेगुलर चेकअप के लिए गौशाला पहुंची है, तो उन्होंने इस बात से इनकार करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है गौवंश की देखभाल के लिए पशु चिकित्सा विभाग की ओर से समितियां गठित की गई है, जो समय समय पर उन गौवंश का चेकअप करती है, और वैक्सीनेशन के लिए भी उनकी टीम हर महीने एक बार जरूर पहुंचती है, क्योंकि हर बार सरपंच मौके पर नहीं मिलते इसलिए शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं होगा. वहीं डॉक्टर त्रिपाठी मानते हैं कि चितौरा गौशाला में रहने वाले गौवंश की स्थिति अन्य जगहों की अपेक्षा काफी अच्छी है.
प्रदेश सरकार भले ही गौ कैबिनेट का गठन करने जा रही हो, लेकिन जब तक गौवंश की देखभाल और गौशालाओं की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक सरकार के सभी दावे विफल नजर आएंगे, ऐसे में जहां चितौरा जैसी गौशालाओं में गौवंश की हालत कुछ हद तक ठीक है, लेकिन व्यवस्थाएं दुरुस्त करने पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.