भिंड। इंसान खुद को सबसे अधिक बलवान समझता है. शायद इसी का परिचय देने के लिए वो अकसर बेजुबान जानवरों पर जुल्म ढाता है. लेकिन इंसानों के बीच भी कुछ ऐसे फरिश्ते हैं जो जानवरों के बारे में सोचते हैं. उन्हें ये पता है कि धरती जितनी हमारी है उतनी ही उन बेजुबानों की भी है. ऐसे ही कुछ लोग हैं भिंड में, जिन्होंने 10 साल पहले बेसहारा बेजुबान जानवरों के इलाज और सेवा के लिए एक छोटा-सा शेड शुरू किया था, जानवरों के प्रति उनके लगाव और सेवाभाव को देखते हुए न सिर्फ शहरवासी उनसे प्रेरित हुए बल्कि भिंड के दो कलेक्टर भी प्रभावित हुए.
दूसरों की मदद करना इंसानियत: अपनी परवाह किए बिना दूसरों की मदद करना, अपने दुखों को भूलकर दूसरे को मरहम लगाना और बेजुबानों से प्यार करना ही इंसानियत है. भिंड के बस स्टैंड पर संचालित इंसानियत युवा मंडल समिति नाम की तरह ही इसके मतलब की मिसाल पेश कर रही है. मंडल के सदस्य भिंड के बस स्टैंड के पास एक छोटा सा टेक-केअर होम (Animals Take Care Home Bhind) संचालित करते हैं. जिसमें जानवरों की देखभाल करने वाले कोई प्रोफेशनल लोग नहीं हैं. यह खुद अपनी पॉकेट मनी इकट्ठा कर इस फैसिलिटी को संचालित कर रहे हैं. ये एनिमल केअर सेंटर सुविधाओं से लैस है, यह ऐसे जानवरों और पक्षियों के लिए बनाया गया है जो बेसहारा, घायल या बीमार होते हैं.
अब तक सैकड़ों जानवरों का किया इलाज: इंसानियत युवा मंडल समिति (Insaniyat Yuva Mandal Committee Bhind) की नींव रखने वाले अनंत इंसानियत कहते हैं की इंसानों की मदद करने वाले बहुत हैं. पर बेज़ुबानों की मदद को कोई आगे नही आता है. गौवंश राजनीति का विषय बन चुकी जिस वजह से जगह जगह गौशालाएं खोली जा रही हैं लेकिन गौवंश के अलावा भी कई जानवर हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत होती है. अक्सर कुत्ते,बंदर, पक्षी हादसों में घायल हो जाते हैं लेकिन उनके लिए कोई आगे नही आता है. किसी को तो पहल करनी होगी इसी सोच ने इस समूह को जन्म दिया. उन्होंने बताया कि करीब 10 साल पहले उन्हें घायल अवस्था में एक कुत्ता मिला था. उसे घर ले आये, घरवालों के विरोध के बावजूद साथियों के साथ उसका इलाज किया, वह कुछ महीनों में पूरी तरह स्वस्थ हो गया.
कलेक्टर हुए प्रभावित, सेंटर बनाने के लिए जगह दी: इस छोटे से केयर सेंटर में धीरे-धीरे जानवरों की संख्या बढ़ने लगी, जिससे आसपास के लोग परेशान होने लगे. तब एक जगह किराये पर लेकर एक छोटी सी फैसिलिटी बनाई जहां घायल जानवरों को इलाज देने लगे. लेकिन वह जगह भी कम पड़ने लगी, बड़ी जगह की तलाश में समूह के सदस्य लोगों से मिले, लेकिन निराशा हाथ लगी. आखिर चार साल पहले उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी (IAS Ilaiya Raja T) से मुलाकात की और अपने नेक काम के बारे में बताया. उन्होंने इस काम की तारीफ की, शुरूआत में थोड़ी मदद भी की, साथ ही समूह का रजिस्ट्रेशन भी कराया. जो कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय स्तर पर भी रजिस्टर हो गया. वहीं वर्तमान कलेक्टर सतीश कुमार एस (IAS Satish Kumar S Bhind Collector) भी इस काम से प्रभावित हुए. उन्होंने देखा की जगह कम पड़ रही है तो बस स्टैंड के पास वैटनरी विभाग की खाली पड़ी जमीन समूह को दे दी. आज यहां एक छोटा-सा लेकिन अच्छा अस्पतालनुमा एनिमल टेक केयर सेंटर बनकर संचालित हो रहा है.
सुविधाओं से लैस है टेक केअर होम: इस नई फैसिलिटी को संचालित करने के लिए प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला. अनंत इंसानियत ने बताया कि, नगर वालिका ने इसमें शेड, किचन, तार फेंसिंग और बाउंड्री वॉल बनवाकर दी. वहीं यहां जानवरों के इलाज के लिए लगने वाले इक्विपमेंट, टेबल्स, एनिमल बेड्स, व्हील वॉकर्स, पिंजड़े, और जरूरत के लिए एक एम्बुलेंस भी खुद इंसानियत युवा मंडल समिति के सदस्यों ने आपस मे चंदा कर खरीद लिए. अनंत के मुताबिक यहां करीब आधा सैकड़ा जानवरों को इलाज दिया जा रहा है, जिनमें कुत्ते, बंदर, बिल्ली समेत कुछ पक्षी भी हैं. इनके कहने की जिम्मेदारी भी सभी मिलकर उठाते हैं. 400 रोटियां इन जानवरों को हर रोज खिलाई जाती हैं, जिसे सदस्य अपने घर से बनाकर लाते हैं. आने वाले दिनों में किचन की भी शुरुआत हो जाएगी और जानवरों का भोजन सेंटर पर ही बनेगा.
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एक पहल ने खड़ा कर दिया कारवां: अनंत ने बताया कि समूह के सभी सदस्यों ने मिलकर शुरुआत में जानवरों का घर पर इलाज शुरू किया. देखते ही देखते और भी कई लोग इस कार्य से प्रभावित और प्रेरित हुए. आलम यह है कि आज 240 से ज्यादा सदस्य हर रोज सेवा के लिए समय देते हैं. कोई रिक्शा चलता है तो कोई शिक्षक है. लेकिन यह सभी अपनी शिफ्ट के अनुसार आते हैं और सेवा करते हैं. समूह की एक सदस्य शिल्पा इंसानियत कहती हैं वे पिछले 5 साल से इस समूह से जुड़ी हैं यहीं जानवरों को ट्रीटमेंट देना सीखा है. उन्हें जानवरों से बेहद लगाव है इस वजह से वे यह सेवा कर रही हैं. कुछ ऐसे ही विचार एक और सदस्य मोहित इंसानियत के भी हैं वे शुरू से ही इस समूह का हिस्सा हैं. उनका कहना है कि छात्र होने के बावजूद इस सेवा कार्य के लिए समय निकलते हैं.
जाति-धर्म से ऊपर है 'इंसानियत': समिति के सदस्यों की एक सबसे खास बात यह है सभी सदस्य अपने नाम के साथ माता-पिता का सरनेम नही लगाते बल्कि 'इंसानियत' लिखते हैं. इसके पीछे सभी सदस्यों का मानना है कि इंसानियत किसी जाति, धर्म, रंग रूप से नहीं होती. यदि वे अपने परिवार के सरनेम लगते तो कहीं न कहीं जाती का ऊंच नीच आड़े आता, क्योंकि हमारा समाज आज भी पुरानी सोच में डूबा हुआ है. शुरू में लोग इसका विरोध करते थे, लेकिन आज उनकी पहचान ही इंसानियत है. वे न सिर्फ लिखने के लिए बल्कि ऑनपेपर भी अपना सरनेम इंसानियत करवाने के लिए प्रयास कर रहे हैं जो अभी प्रोसेस में हैं.
मेनका गांधी भी हुई प्रभावित: इंसानियत युवा मंडल समिति का कार्य वाकई सराहनीय है, उनकी इस पहल कि तारीफ खुद एनिमल राइट एक्टिविस्ट और लोकसभा सांसद मेनका गांधी (Animal rights activist Maneka Gandhi Lok Sabha MP) भी कर चुकी हैं. उन्होंने समूह के सदस्यों से दिल्ली में मुलाकात की थी और जब उन्हें पता चला कि भिंड कलेक्टर ने इस कार्य के लिए जगह दी है तो तुरंत कलेक्टर को फोन कर उनके निर्णय की तारीफ की.
अपने पैरों पर खड़े हैं कई बेजुबान: जानवरों की सेवा करना अब इस इंसानियत समूह के सभी सदस्यों के जीवन का हिस्सा बन चुका है. कहीं भी किसी घायल जानवर की जानकारी मिलती है तो इंसानियत युवा मंडल समिति की एम्बुलेंस पहुंचती है और फैसिलिटी में लाकर उसे इलाज और प्यार दोनों दिया जाता है. जिसका नतीजा है कि अब तक कई बेजुबान जानवर दोबारा अपने पैरों पर खड़े हैं और इंसानियत समूह के हर सदस्य को अपना प्यार देते हैं. (Insaniyat Yuva Mandal Committee Bhind) (Animals Take Care Home Bhind)