बैतूल। पेट के इंतजाम के लिए दिन-रात मेहनत की थी, किसी ने कर्ज लिया था, तो किसी ने रात भर जागकर खेतों को सींचा था. किसानों को उम्मीद थी कि पिछले चार साल का सूखा खत्म होगा और इस बार खुशियों की फसल तैयार होगी, लेकिन अफसोस जिस बारिश से अन्नदाता को मुनाफे की आस जगी थी, उस पर बारिश ने ऐसा कहर ढाया कि सबकुछ पानी-पानी हो गया. मध्यप्रेदश में अतिवृष्टि से किसानों पर गमों का पहाड़ टूटा और उनकी मेहनत पर पूरी तरह पानी फिर गया. बैतूल का अन्नदाता मक्का और सोयाबीन की फसल नष्ट होने से कितना परेशान है सुनिए...
नहीं निकल रही लागत
बारिश के कहर के बाद थोड़ी-बहुत जो फसल बच भी गई, उसकी थ्रेसिंग के लिए किसान को कर्ज लेना पड़ रहा है. इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि फसल ठीक ही निकलेगी. हालत ये है कि एक एकड़ में लगी दस हजार की लागत की जगह किसानों के हाथ सिर्फ तीन हजार रुपए लग रहे हैं.
कमलनाथ सरकार लगाएगी मरहम?
फसल खराब होने से बैतूल के किसानों के हाल बेहाल हैं, क्योंकि बारिश के कहर के बाद सोयाबीन और मक्का सहित अन्य फसलों में अंकुरण आ गया है. हालत ये है कि इस सीजन में किसानों के हाथ खाली ही रहेंगे, क्योंकि अंकुरण वाली फसल के दाने जैसे ही सूखने लगते हैं, वह वजनी होने की जगह हल्के होने लगते हैं और उनका वजन नाममात्र का रह जाता है. किसानों को अब सरकार से उम्मीद है कि राज्य की कमलनाथ सरकार उनके जख्मों पर मरहम लगाएगी..
तीन लाख किसान सीधे प्रभावित
अकेले बैतूल जिले में 3.76 लाख हेक्टेयर की फसल लगभग पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है. किसानों के मुताबिक 1 लाख 47 हजार हेक्टेयर में मक्का की बुआई हुई थी, जबकि 1 लाख 87 हजार 300 हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल लगाई गई थी. एक अनुमान के मुताबिक बैतूल के करीब तीन लाख 11 हजार किसान इससे सीधी तरह प्रभावित हुए हैं.
मुआवजे की दरकार
अब इन किसानों को सिर्फ एक ही उम्मीद है कि सरकार से कुछ राहत मिलेगी, लेकिन मुआवजे के नाम पर केंद्र की मोदी और राज्य की कमलनाथ सरकार के बीच विरोध-प्रदर्शन की होड़ मची है. दोनों सरकारों के बीच जारी सिसायत में मध्यप्रदेश का अन्नदाता पिस रहा है, ऐसे में सरकार को चाहिए कि किसानों को सही और समय पर मुआवजा दिया जाए, जिससे उसके दर्द पर मरहम लगे और वह दूसरी फसल की बुआई भी कर सके. ईटीवी भारत मध्यप्रदेश