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Anuppur child labor छात्रों से लगवाई जा रही झाड़ू, चूल्हे पर पक रहा खाना, इस बदहाली का कौन जिम्मेदार

आजकल सरकारी स्कूली छात्रावासों की हालत लगभग एक जैसी हो चुकी है. हर जगह से बच्चों से काम करवाने की खबरें आ रही हैं. अनूपपुर में एक स्कूल में छात्र रसोइया बनकर खाना बना रहे हैं. दूसरी ओर मास्टर जी और चपरासी पूरा आनंद ले रहे हैं. आदिवासी छात्र झाड़ू और साफ सफायी का अन्य काम भी कर रहे हैं. नौनिहालों के हाथ में पेन कॉपी की जगह चिमटा और झाड़ू देखकर भी मास्टर जी और अधिकारियों का दिल नहीं पसीज रहा है. anuppur child labor student

anuppur child labor student
अनूपपुर छात्रों से लगवाई जा रही झाड़ू
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Published : Sep 25, 2022, 9:31 PM IST

अनूपपूर। 21वीं सदी की कुछ ऐसी तस्वीर दिखाने जा रहे है जो आपको सोचने में मजबूर कर देगी जिसमें एक आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास में आदिवासी अधीक्षक द्वारा अपने ही आदिवासी बच्चों का शोषण करते नजर आ रहे है. मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले से शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता एक मामला सामने आया है. जहां स्कूल में पढ़ने वाले नौनिहाल बच्चे, चपरासी और रसोइया बने नजर आ रहे हैं. एक तरफ जहां केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की शिवराज सरकार शिक्षा व्यवस्था के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं. वहीं लापरवाह छात्रावास अधीक्षक सरकार के प्रयासों को जमकर पलीता लगा रहे हैं, आइए आपको बताते हैं कि आखिर पूरा मामला क्या है. (anuppur student cleaning rooms)

आज भी चूल्हे पर पकता है भोजनः केंद्र और राज्य सरकारों ने उज्जवला योजना के तहत छोटे-छोटे गांव तक में गैस के चूल्हे तथा सिलेंडर पहुंचा दिए हैं. इसके बाद भी यहां अनूपपुर के इस स्कूल में लकड़ी का इस्तेमाल कर चूल्हे पर खाना बनाया जा रहा है. अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर गैस और सिलेंडर के पैसे कौन डकार गया? बात हो रही है जिले के पुष्पराजगढ़ मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित आदिवासी बालक छात्रावास कोयलारी ग्राम की जहाँ कक्षा 6 से 8 तक के बच्चे छात्रावास में रह कर स्कूल में पढ़ाई करने जाते है. मीडिया टीम जब इस छात्रावास का जायजा लेने पहुँचती है. रसोई घर की तरफ आगे बढ़े तो वहाँ से भी हैरान करने वाली तस्वीरे सामने आने लगी. जिसे देख उन मासूम बच्चो की माँ बाप का दिल भी पसीज जायेगा. शायद इन तस्वीरों को देख कोई भी मां बाप अपने आखों में आंसू आने से रोक नहीं सकेंगे. उन गरीब आदिवासी किसानों, मजदूरों के मासूम बच्चे रसोई घर में चूल्हे पर रोटी सेकते नजर आ रहे हैं. तीनों बच्चो ने बराबरी से अपना काम बाट रखा था. किसी ने हाथों पर चिमटा पकड़ा हुआ था तो कोई तबे पर रोटी डॉल रहा था कोई रोटी की सेकाई कर रहा था ये सारी तस्वीरें कैमरे में कैद हो गई. (anuppur food cooked on chulha by children)

MP में शिक्षा के मंदिर की शर्मनाक तस्वीर, मिड डे मील खाने के बाद बर्तन धोने को मजबूर बच्चे

बच्चों और टीचरों की संख्या में है अंतरः स्कूली छात्रावास में बच्चों की संख्या को लेकर भी मतभेद है. जहां मास्टरों के अनुसार इस छात्रावास में 30 बच्चे हैं. वहीं बच्चों से पूछने पर पता चला कि उनकी संख्या 22 है. यह भी जांच का विषय बन गया है कि बच्चों और मास्टर जी में से कौन झूंठ बोल रहा है. यह संदेह पैदा कर रहा कि कहीं आठ बच्चों के नाम खाया तो नहीं जा रहा है. इस छात्रावास के अधीक्षक का कहना है कि यहाँ कुल 30 बच्चे है, 1 का ऑनलाइन नहीं हो पाया है. इन तमाम तस्वीरे के सामने आने के बाद अधिकारी ऐसे अध्यापकों पर कार्यवाही करते है या नहीं यह देखने वाली बात होगी. (anuppur difference number of children and teachers)

अनूपपूर। 21वीं सदी की कुछ ऐसी तस्वीर दिखाने जा रहे है जो आपको सोचने में मजबूर कर देगी जिसमें एक आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास में आदिवासी अधीक्षक द्वारा अपने ही आदिवासी बच्चों का शोषण करते नजर आ रहे है. मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले से शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता एक मामला सामने आया है. जहां स्कूल में पढ़ने वाले नौनिहाल बच्चे, चपरासी और रसोइया बने नजर आ रहे हैं. एक तरफ जहां केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की शिवराज सरकार शिक्षा व्यवस्था के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं. वहीं लापरवाह छात्रावास अधीक्षक सरकार के प्रयासों को जमकर पलीता लगा रहे हैं, आइए आपको बताते हैं कि आखिर पूरा मामला क्या है. (anuppur student cleaning rooms)

आज भी चूल्हे पर पकता है भोजनः केंद्र और राज्य सरकारों ने उज्जवला योजना के तहत छोटे-छोटे गांव तक में गैस के चूल्हे तथा सिलेंडर पहुंचा दिए हैं. इसके बाद भी यहां अनूपपुर के इस स्कूल में लकड़ी का इस्तेमाल कर चूल्हे पर खाना बनाया जा रहा है. अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर गैस और सिलेंडर के पैसे कौन डकार गया? बात हो रही है जिले के पुष्पराजगढ़ मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित आदिवासी बालक छात्रावास कोयलारी ग्राम की जहाँ कक्षा 6 से 8 तक के बच्चे छात्रावास में रह कर स्कूल में पढ़ाई करने जाते है. मीडिया टीम जब इस छात्रावास का जायजा लेने पहुँचती है. रसोई घर की तरफ आगे बढ़े तो वहाँ से भी हैरान करने वाली तस्वीरे सामने आने लगी. जिसे देख उन मासूम बच्चो की माँ बाप का दिल भी पसीज जायेगा. शायद इन तस्वीरों को देख कोई भी मां बाप अपने आखों में आंसू आने से रोक नहीं सकेंगे. उन गरीब आदिवासी किसानों, मजदूरों के मासूम बच्चे रसोई घर में चूल्हे पर रोटी सेकते नजर आ रहे हैं. तीनों बच्चो ने बराबरी से अपना काम बाट रखा था. किसी ने हाथों पर चिमटा पकड़ा हुआ था तो कोई तबे पर रोटी डॉल रहा था कोई रोटी की सेकाई कर रहा था ये सारी तस्वीरें कैमरे में कैद हो गई. (anuppur food cooked on chulha by children)

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बच्चों और टीचरों की संख्या में है अंतरः स्कूली छात्रावास में बच्चों की संख्या को लेकर भी मतभेद है. जहां मास्टरों के अनुसार इस छात्रावास में 30 बच्चे हैं. वहीं बच्चों से पूछने पर पता चला कि उनकी संख्या 22 है. यह भी जांच का विषय बन गया है कि बच्चों और मास्टर जी में से कौन झूंठ बोल रहा है. यह संदेह पैदा कर रहा कि कहीं आठ बच्चों के नाम खाया तो नहीं जा रहा है. इस छात्रावास के अधीक्षक का कहना है कि यहाँ कुल 30 बच्चे है, 1 का ऑनलाइन नहीं हो पाया है. इन तमाम तस्वीरे के सामने आने के बाद अधिकारी ऐसे अध्यापकों पर कार्यवाही करते है या नहीं यह देखने वाली बात होगी. (anuppur difference number of children and teachers)

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