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आजादी के बाद भी 'गुलाम' था हिंदुस्तान का भोपाल, उस 'सरदार' की सख्ती के आगे जब नवाब ने मानी थी हार

15 अगस्त को देशभर में आजादी की सालगिरह मनाई जाएगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल 15 अगस्त 1947 को आजाद नहीं हुई थी. भोपाल का आजादी के 2 साल बाद 1 जून 1949 को विलय किया गया था. तब भोपाल की लाल कोठी पर पहली बार तिरंगा फहराया गया था. देखिए 15 अगस्त पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

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कहानी भारत में भोपाल के विलय की
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Published : Aug 15, 2020, 12:01 AM IST

भोपाल। देश भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल आजादी मिलने के दो साल बाद तक भारत का हिस्सा नहीं बन पाई थी. भोपाल को सही मायने में आजादी 2 साल बाद मिली थी. भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की हट के चलते भोपाल में एक जून 1 जून 1949 को तिरंगा फहराया गया था.

कहानी भारत में भोपाल के विलय की

भोपाल को स्वतंत्र रियासत बनाए रखना चाहते थे नवाब

1947 में जब देश आजाद हुआ तब भोपाल के नबाव हमीमदुल्लाह भोपाल को एक स्वतंत्र रियासत बनाए रखना चाहते थे. वे जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्हा दोनों के मित्र थे. अपनी इसी मित्रता के दम पर नवाब भारत के बीचों-बीच बसे शहर भोपाल को स्वतंत्र रियासत बनाए रखना चाहते थे. जब 1947 में देश आजाद हुआ तो नवाब ने भोपाल को भारत मे मिलाने से इनकार कर दिया. लेकिन उन्हीं की रियासत में प्रधानमंत्री रहे चतुरनारायण मालवीय नवाब के इस फैसले के खिलाफ थे.

दो साल बाद भोपाल में पहराया गया था तिरंगा
दो साल बाद भोपाल में फहराया गया था तिरंगा

पाकिस्तान जाना चाहते थे नवाब

भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान पाकिस्तान जाना चाहते थे. मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देने का वादा किया था. लिहाजा नवाब ने अपनी बेटी आबिदा सुल्तान को भोपाल रियासत का शासक बनाने के लिए कहा. लेकिन आबिदा ने इससे इनकार कर दिया. जिसके चलते नवाब पाकिस्तान नहीं जा पाए.

आजादी के लिए चलाया गया आंदोलन

नवाब के प्रधानमंत्री रहे चतुरनारायण मालवीय विलीनीकरण के पक्ष में थे. लिहाजा उन्होंने और पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने मिलकर भोपाल की आजादी के लिए आंदोलन चलाया. 1948 में पूरे भोपाल में जमकर प्रदर्शन हुआ. नवाब ने चतुरनारायण मालवीय के मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर सभी अधिकार अपने पक्ष में ले लिए और शंकरदयाल शर्मा को जेल भेज दिया गया. जिससे आंदोलन और भड़क उठा.

सरदार पटेल ने भेजा नवाब को संदेश

इधर भोपाल में प्रदर्शन चल रहा था. तो उधर तब के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी बड़ी रियासतों का भारत में विलीनीकरण करवा चुके थे. अब बारी भोपाल की थी. सरदार पटेल ने सख्त रवैया अपनाते हुए भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान को संदेश भिजवाया कि अब भोपाल स्वंतत्र नहीं रह सकता उसे भारत में मिलाना ही होगा.

सरदार की सख्ती के आगे झुके नवाब हमीदुल्लाह

आखिरकार जब नवाब हमीदुल्लाह खान ने देखा कि सरदार सख्ती रवैया अपना रहे हैं. जबकि पाकिस्तान भी उनकी कोई खास मदद नहीं कर पा रहा. इस तरह 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने भोपाल के भारत में विलय के पेपरों पर हस्ताक्षर कर दिए और तब केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए एनबी बैनर्जी ने भोपाल के चीफ कमिश्नर का कार्यभार संभालते हुए 1 जून 1949 को भोपाल में पहली बार तिरंगा फहराया गया और इस तरह भोपाल आजाद हुआ. आगे चलकर 1 नंबवर 1956 में जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ तो भोपाल को प्रदेश की राजधानी बनाया गया.

भोपाल। देश भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल आजादी मिलने के दो साल बाद तक भारत का हिस्सा नहीं बन पाई थी. भोपाल को सही मायने में आजादी 2 साल बाद मिली थी. भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की हट के चलते भोपाल में एक जून 1 जून 1949 को तिरंगा फहराया गया था.

कहानी भारत में भोपाल के विलय की

भोपाल को स्वतंत्र रियासत बनाए रखना चाहते थे नवाब

1947 में जब देश आजाद हुआ तब भोपाल के नबाव हमीमदुल्लाह भोपाल को एक स्वतंत्र रियासत बनाए रखना चाहते थे. वे जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्हा दोनों के मित्र थे. अपनी इसी मित्रता के दम पर नवाब भारत के बीचों-बीच बसे शहर भोपाल को स्वतंत्र रियासत बनाए रखना चाहते थे. जब 1947 में देश आजाद हुआ तो नवाब ने भोपाल को भारत मे मिलाने से इनकार कर दिया. लेकिन उन्हीं की रियासत में प्रधानमंत्री रहे चतुरनारायण मालवीय नवाब के इस फैसले के खिलाफ थे.

दो साल बाद भोपाल में पहराया गया था तिरंगा
दो साल बाद भोपाल में फहराया गया था तिरंगा

पाकिस्तान जाना चाहते थे नवाब

भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान पाकिस्तान जाना चाहते थे. मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देने का वादा किया था. लिहाजा नवाब ने अपनी बेटी आबिदा सुल्तान को भोपाल रियासत का शासक बनाने के लिए कहा. लेकिन आबिदा ने इससे इनकार कर दिया. जिसके चलते नवाब पाकिस्तान नहीं जा पाए.

आजादी के लिए चलाया गया आंदोलन

नवाब के प्रधानमंत्री रहे चतुरनारायण मालवीय विलीनीकरण के पक्ष में थे. लिहाजा उन्होंने और पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने मिलकर भोपाल की आजादी के लिए आंदोलन चलाया. 1948 में पूरे भोपाल में जमकर प्रदर्शन हुआ. नवाब ने चतुरनारायण मालवीय के मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर सभी अधिकार अपने पक्ष में ले लिए और शंकरदयाल शर्मा को जेल भेज दिया गया. जिससे आंदोलन और भड़क उठा.

सरदार पटेल ने भेजा नवाब को संदेश

इधर भोपाल में प्रदर्शन चल रहा था. तो उधर तब के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी बड़ी रियासतों का भारत में विलीनीकरण करवा चुके थे. अब बारी भोपाल की थी. सरदार पटेल ने सख्त रवैया अपनाते हुए भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान को संदेश भिजवाया कि अब भोपाल स्वंतत्र नहीं रह सकता उसे भारत में मिलाना ही होगा.

सरदार की सख्ती के आगे झुके नवाब हमीदुल्लाह

आखिरकार जब नवाब हमीदुल्लाह खान ने देखा कि सरदार सख्ती रवैया अपना रहे हैं. जबकि पाकिस्तान भी उनकी कोई खास मदद नहीं कर पा रहा. इस तरह 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने भोपाल के भारत में विलय के पेपरों पर हस्ताक्षर कर दिए और तब केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए एनबी बैनर्जी ने भोपाल के चीफ कमिश्नर का कार्यभार संभालते हुए 1 जून 1949 को भोपाल में पहली बार तिरंगा फहराया गया और इस तरह भोपाल आजाद हुआ. आगे चलकर 1 नंबवर 1956 में जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ तो भोपाल को प्रदेश की राजधानी बनाया गया.

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