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High Speed ​​Inshore Vessel: नौ साल की देरी से मिला पोत, जानें क्या कहती है CAG रिपोर्ट

भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard) को 2008-09 में मिलने वाली पांच हाईस्पीड इनशोर पेट्रोल वेसेल (High Speed ​​Inshore Vessel) नौ साल की देरी से 2018 में मिली. माना जा रहा है कि भारतीय तटरक्षक बल में ये जहाज बेहद वजनी हैं और इनकी स्पीड भी काफी कम है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Apr 11, 2022, 4:53 PM IST

नई दिल्ली: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) ने पिछले हफ्ते संसद के पटल पर एक रिपोर्ट रखी. जिसमें कहा गया कि भारतीय तटरक्षक बल को मिलने वाली हाईस्पीड इनशोर वेसेल (High Speed ​​Inshore Vessel) नौ साल की देरी से मिली, जिसकी वजह से हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (Hindustan Shipyard Limited) को 200 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ.

मार्च 2006 में आईसीजी और विशाखापत्तनम मुख्यालय वाले एचएसएल के बीच 231.29 करोड़ रुपये की कुल लागत से पांच इनशोर पेट्रोल वेसल (IPV) के निर्माण के लिए अनुबंध किया गया था. 275 टन वजनी और 34 समुद्री मील की गति के अनिवार्य मानक की जगह सभी पांच जहाजों का वजन क्रमशः 330, 330.3, 328.6, 330.6 और 329.1 टन था. जिनकी गति भी क्रमशः 31.6, 33.01, 33.5, 32.5, और 34.1 समुद्री मील थी. यह अनुबंध की शर्तों का खुला उल्लंघन है.

कैग की रिपोर्ट: इसके निहितार्थ को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय लेखा परीक्षक की रिपोर्ट कहती है कि वजन में वृद्धि और आईपीवी की गति में कमी से उच्च गति वाले गश्ती वाहनों के रूप में उनकी उपयोगिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. आईपीवी एक उच्च गति और वजन के प्रति संवेदनशील पोत है, जिसके लिए हल्की आउटफिटिंग सामग्री और सिस्टम इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है. इस मध्यम श्रेणी के पोत का उपयोग खोज व बचाव, कानून प्रवर्तन, समुद्री गश्ती मिशनों के लिए किया जाता है. साथ ही समुद्री सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और भारत की तटीय रक्षा को बढ़ाने के लिए भी यह उपयोगी है.

निगरानी नहीं की गई: रिपोर्ट में कहा गया है कि एचएसएल ने आईपीवी के निर्माण में जाने वाली सामग्रियों के वजन की निगरानी नहीं की. वजन के आकलन के बिना सामग्री की खरीद प्रक्रिया शुरू की गई. कैग ने निष्कर्ष निकाला कि परियोजना के कार्यान्वयन और निष्पादन में देरी के कारण एचएसएल को 200.43 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. परियोजना के समय और लागत से बचने के लिए परियोजना को उचित योजना और एचएसएल की पूरी क्षमता का उपयोग किए बिना निष्पादित किया गया.

यह भी पढ़ें- तटरक्षक बल क्यों नहीं करते ड्रोन का उपयोग, संसदीय समिति ने आश्चर्य व्यक्त किया

रक्षा मंत्रालय का जवाब: सीएजी ने रक्षा मंत्रालय के जवाब को भी अयोग्य पाया क्योंकि एचएसएल को खराब अनुबंध प्रबंधन के कारण नुकसान हुआ था. ICG दुनिया के सबसे बड़े तट रक्षक संगठनों में से एक है, जो भारतीय प्रायद्वीप के 4.6 मिलियन वर्ग किमी के तटीय जल में खोज और बचाव कार्य संचालित करता है. आईसीजी की वर्तमान ताकत में 73 जहाजों, 67 इंटरसेप्टर नौकाओं और 18 होवरक्राफ्ट सहित 158 सतह प्लेटफॉर्म शामिल है. जबकि इसकी विमानन शाखा में 70 विमान हैं. जिसमें 39 फिक्स्ड विंग डोर्नियर, 19 चेतक हेलीकॉप्टर और 12 उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर शामिल हैं. 2025 तक संगठन का लक्ष्य 190 जहाजों और 80 विमानों तक अपनी ताकत बढ़ाना है.

नई दिल्ली: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) ने पिछले हफ्ते संसद के पटल पर एक रिपोर्ट रखी. जिसमें कहा गया कि भारतीय तटरक्षक बल को मिलने वाली हाईस्पीड इनशोर वेसेल (High Speed ​​Inshore Vessel) नौ साल की देरी से मिली, जिसकी वजह से हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (Hindustan Shipyard Limited) को 200 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ.

मार्च 2006 में आईसीजी और विशाखापत्तनम मुख्यालय वाले एचएसएल के बीच 231.29 करोड़ रुपये की कुल लागत से पांच इनशोर पेट्रोल वेसल (IPV) के निर्माण के लिए अनुबंध किया गया था. 275 टन वजनी और 34 समुद्री मील की गति के अनिवार्य मानक की जगह सभी पांच जहाजों का वजन क्रमशः 330, 330.3, 328.6, 330.6 और 329.1 टन था. जिनकी गति भी क्रमशः 31.6, 33.01, 33.5, 32.5, और 34.1 समुद्री मील थी. यह अनुबंध की शर्तों का खुला उल्लंघन है.

कैग की रिपोर्ट: इसके निहितार्थ को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय लेखा परीक्षक की रिपोर्ट कहती है कि वजन में वृद्धि और आईपीवी की गति में कमी से उच्च गति वाले गश्ती वाहनों के रूप में उनकी उपयोगिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. आईपीवी एक उच्च गति और वजन के प्रति संवेदनशील पोत है, जिसके लिए हल्की आउटफिटिंग सामग्री और सिस्टम इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है. इस मध्यम श्रेणी के पोत का उपयोग खोज व बचाव, कानून प्रवर्तन, समुद्री गश्ती मिशनों के लिए किया जाता है. साथ ही समुद्री सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और भारत की तटीय रक्षा को बढ़ाने के लिए भी यह उपयोगी है.

निगरानी नहीं की गई: रिपोर्ट में कहा गया है कि एचएसएल ने आईपीवी के निर्माण में जाने वाली सामग्रियों के वजन की निगरानी नहीं की. वजन के आकलन के बिना सामग्री की खरीद प्रक्रिया शुरू की गई. कैग ने निष्कर्ष निकाला कि परियोजना के कार्यान्वयन और निष्पादन में देरी के कारण एचएसएल को 200.43 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. परियोजना के समय और लागत से बचने के लिए परियोजना को उचित योजना और एचएसएल की पूरी क्षमता का उपयोग किए बिना निष्पादित किया गया.

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रक्षा मंत्रालय का जवाब: सीएजी ने रक्षा मंत्रालय के जवाब को भी अयोग्य पाया क्योंकि एचएसएल को खराब अनुबंध प्रबंधन के कारण नुकसान हुआ था. ICG दुनिया के सबसे बड़े तट रक्षक संगठनों में से एक है, जो भारतीय प्रायद्वीप के 4.6 मिलियन वर्ग किमी के तटीय जल में खोज और बचाव कार्य संचालित करता है. आईसीजी की वर्तमान ताकत में 73 जहाजों, 67 इंटरसेप्टर नौकाओं और 18 होवरक्राफ्ट सहित 158 सतह प्लेटफॉर्म शामिल है. जबकि इसकी विमानन शाखा में 70 विमान हैं. जिसमें 39 फिक्स्ड विंग डोर्नियर, 19 चेतक हेलीकॉप्टर और 12 उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर शामिल हैं. 2025 तक संगठन का लक्ष्य 190 जहाजों और 80 विमानों तक अपनी ताकत बढ़ाना है.

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