सोलन: इस बार भाई बहन के प्यार का प्रतीक पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन कुछ खास होने वाला है या यूं कहें कि इस बार की राखी कुछ स्पेशल रहने वाली है, क्योंकि इस बार रक्षाबंधन पर्व पर प्रकृति को भी उपहार मिलेगा. कहीं हवा के बीच मधुर संगीत सुनाने वाली चीड़ की पत्तियां भाई की कलाई पर सजेंगी तो कहीं पूजा में इस्तेमाल होने वाली कुशा घास से बनी राखियां भाई की कलाई पर सजने वाली है. इन राखियों का बंधन पर्यावरण रक्षण के लिए भी प्रेरित करेगा. कुशा घास की बनी राखियां भी कई संदेश देंगी. प्रदेश की महिलाओं ने इस दिशा में प्रयास किया है. अगर हम इनकी बनाई राखियां खरीदें तो यह रक्षाबंधन स्वावलंबन और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी किसी त्योहार से कम नहीं होगा.
आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल रही महिलाएं: सोलन में भी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने आत्मनिर्भर बनने की राह पर चलकर इको फ्रेंडली राखियां बनाई है,इन राखियों को महिलाओं द्वारा चीड़ की पत्तियों जिसे लोग आज वेस्ट मानते है उससे बनाया जा रहा है वहीं यह त्यौहार और पवित्र बने इसके लिए कुशा घास और मौली के धागों का इस्तेमाल महिलाओं द्वारा किया जा रहा है. राखियां सस्ती होने और आकर्षक होने के साथ साथ लोगों को यह पसन्द भी आ रही है,और लोग इसे खरीद भी रहे है.
जंगलों से इकट्ठा करके चीड़ की पत्तियां और कुशा घास लाती है महिलाएं: स्वंय सहायता समूह की महिलाएं पिछले 2-3 वर्षों से लगातार इको फ्रेंडली राखियां बना रही है,जंगलों से चीड़ की पत्तियां इकट्ठी करके महिलाएं इससे कई उत्पाद बना रही है चाहे वो घरों में सजावट के लिए हो या फिर रोजाना इस्तेमाल की,लेकिन इस बार इनके उत्पाद के रूप में राखियां बहुत चर्चा में है. वहीं चीड़ की पत्तियों के साथ साथ महिलाएं कुशा घास जिसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है उसकी राखियां भी बनाई जा रही हैं.
बाजार में आने वाली राखियों को मिल रही इको फ्रेंडली राखियों से टक्कर: महिलाओं द्वारा जहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक संदेश इको फ्रेंडली राखी के माध्यम से दिया जा रहा है,वहीं यह राखियां बाजार में आने वाली राखियों को भी हर स्तर पर टक्कर दे रही है चाहे वो पैकिंग की बात हो,डिसाइन की बात हो या फिर दाम की,लोग इन राखियों को लेने के साथ साथ इसके बारे में जानकारी भी हासिल कर रहे है.
स्वंय सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाई गई राखी आकर्षक: बाजार में आने वाली राखियां आकर्षक तो है,लेकिन कई बार इन राखियों में लगी डोरियों से हाथों में खारिश और रंग उतरने का डर बना रहता है, लेकिन जो राखियां महिलाओं द्वारा बनाई जा रही है वो पुरी तरह से सेफ है क्योंकि इसमें मौली के धागों का इस्तेमाल हो रहा है,मौली को हिन्दू धर्म मे पवित्र माना जाता है.
पर्यावरण की रक्षा का संदेश,कुशा घास और चीड़ की पत्तियां देगी प्रकृति को नया स्वरूप: स्वंय सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि वे राखियां तो बना रही है लेकिन इससे पर्यावरण की रक्षा को लेकर भी संदेश दिया जा रहा है,इसमे जो राखियां है वो चीड़ की पत्तियों और कुशा घास की है साथ ही इसमे मौली के धागों का प्रयोग किया जा रहा है,इससे पर्यावरण को भी कोई खतरा नहीं होगा,क्योंकि रक्षाबंधन के त्यौहार के बाद अक्सर देखा जाता है कि राखियां इधर उधर गिरी होती है ऐसे में इससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा.
राखी में डाला गया है बीज, पौधारोपण को भी मिलेगा फायदा: स्वंय सहायता समूह की महिलाएं बताती हैं कि रक्षाबंधन को लेकर वे पिछले 2-3 वर्षों से इको फ्रेंडली राखियां बना रहे जहां यह राखियां भाइयों की कलाई पर सजेगी वहीं या आपदा से निपटने के लिए भी कारगर साबित होगी,क्योंकि इन राखियों के बीच महिलाओं द्वारा नींबू,तुलसी और अन्य सब्जियों के बीज रखे जा रहें है ताकि अगर राखी टूट कर इधर उधर गिर जाए या फिर राखी को उतार दिया जाए, तो इसमे रखे बीज जमीन पर गिरकर पौधे का रूप ले ले. महिलाओं का मानना है कि उनसे अगर 100 महिलाएं भी राखी लेती है तो उन्हें खुशी होगी कि वे 100 पौधे लगाने में कामयाब हो गई है.
सालाना महिलाएं कमा रही 80 हज़ार से एक लाख रुपए: यह तो रही राखी के बनने और इसके फायदे की बात लेकिन इससे महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिल रहा है, महिलाओं अभी तक राखियां बनाकर 3-4 सालों में सालाना 80 हज़ार से 1 लाख रुपए तक कमा चुकी है. सरकार भी हिमाचल प्रदेश में प्रयास कर रही है कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिले,लेकिन अगर हर दुकान में स्वंय सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाई जा रही यह पर्यावरण की रक्षा करती राखियां पहुंचती है तो महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिलेगा वहीं महिलाएं आर्थिक रूप से भी मजबूत होगी.
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