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Himachal Stake in BBMB: आपदा में संजीवनी साबित होगी ₹4250 करोड़ की रकम, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हिमाचल के हक पर कुंडली मारकर बैठे हैं पड़ोसी राज्य

हिमाचल के हक पर पड़ोसी राज्य करीब ढाई दशक से कुंडली मारकर बैठे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पंजाब और हरियाणा हिमाचल को उसका हक नहीं दे रहे हैं. बीबीएमबी परियोजनाओं में हिमाचल को ₹4250 करोड़ का बकाया दोनों राज्यों को देना बाकी है. पढ़िए पूरी खबर... (Himachal stake in BBMB) (BBMB Project) (BBMB case in Supreme Court)

Himachal Stake in BBMB
हिमाचल
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 6, 2023, 1:08 PM IST

शिमला: आर्थिक संकट से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश पर मानसून सीजन में भारी बारिश आफत बनकर टूटी है. हजारों करोड़ रुपए के नुकसान के साथ ही हिमाचल के विकास की गाड़ी पटरी से उतर गई है. खजाना खाली है और सरकार को पैसे की जरूरत है. हिमाचल सरकार के लिए इस समय बीबीएमबी परियोजनाओं में अपने हक के ₹4250 करोड़ रुपए संजीवनी साबित होंगे. करीब ढाई दशक से पड़ोसी राज्य हिमाचल के हक पर कुंडली मारकर बैठे हैं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हरियाणा व पंजाब हिमाचल का हक नहीं दे रहे हैं. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई होनी है.

सुप्रीम कोर्ट पर हिमाचल सरकार की नजर: आज 6 सितंबर व शुक्रवार 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई संभावित है. ऐसे में हिमाचल सरकार की नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है. हिमाचल सरकार के उर्जा सचिव राजीव शर्मा के अनुसार हिमाचल प्रदेश की बीबीएमबी परियोजनाओं के तहत भाखड़ा पावर प्रोजेक्ट में एक जनवरी 1966 से अक्टूबर 2011 तक की हिस्सेदारी की रकम बकाया है. इसके अलावा ब्यास-सतलुज लिंक प्रोजेक्ट (बीएसएल) में 1977 से अक्टूबर 2011 की समय अवधि की हिस्सेदारी बकाया है. इसी तरह पौंग डैम में वर्ष 1978 से अक्टूबर 2011 तक की हिस्सेदारी के एवज में पंजाब व हरियाणा को बकाया हिस्सेदारी का भुगतान करना है. ये तीन परियोजनाएं हैं और इनसे हिमाचल को बकाया के एवज में 13,066 मिलियन यूनिट बिजली मिलनी है.

1998 में हिमाचल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया: हिमाचल सरकार ने अपने हक के लिए वर्ष 1998 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसके बाद से 25 साल बीत गए, लेकिन हिमाचल को हक नहीं मिला है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में सितंबर महीने की दो तारीख को अपने आदेश में हरियाणा और पंजाब को संबंधित एक्ट यानी पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 के तहत हिस्सेदारी देने के लिए कहा था. फिर दोनों पड़ोसी राज्यों ने अक्टूबर 2011 से हिस्सेदारी देना शुरू किया, लेकिन पहले के बकाया पर ये दोनों राज्य चुप्पी साधे रहते हैं, भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड यानी बीबीएमबी के तीन मुख्य प्रोजेक्ट हैं. इनमें भाखड़ा प्रोजेक्ट 1325 मेगावाट, पौंग बांध प्रोजेक्ट 396 मेगावाट व ब्यास सतलुज लिंक यानी बीएसएल प्रोजेक्ट सुंदरनगर 990 मेगावाट का है.

तीन परियोजनाओं में हिमाचल कर रहा हिस्सेदारी की मांग: वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत प्रदेश सरकार भाखड़ा बांध प्रोजेक्ट में 2724 करोड़ रुपए, बीएसएल डैहर सुंदरनगर प्रोजेक्ट में 1034.54 करोड़ और पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये मियाद दस की बजाय बीस साल करने को कहा. अभी भी ये मसला सुलझा नहीं है. इसी तरह चंडीगढ़ की कुछ जमीन पर भी हिमाचल का दावा है. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने इस मामले को फिर से छेड़ा है. पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत चंडीगढ़ पर हिमाचल का सात फीसदी से अधिक का दावा है. इसमें जमीन से लेकर पानी के एवज में मिलने वाला लाभ शामिल है. अभी हिमाचल को सिर्फ पीजीआई में प्रशासनिक अधिकारी तैनात करने का हक है. हिमाचल से एक आईएएस व एक एचपीएएस अधिकारी चंडीगढ़ पीजीआई में प्रशासनिक हक के रूप में नियुक्त होता है.

हिमाचल दशकों से नार्थ जोन काउंसिल में उठता रहता है मुद्दा: हिमाचल सरकार दशकों से इस मामले को नार्थ जोन काउंसिल में उठाती रहती है. पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सितंबर 2019 में चंडीगढ़ में आयोजित नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक में मुद्दा उठाया था कि हिमाचल को बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में पूर्णकालिक सदस्य बनाया जाए. हिमाचल में सरकार चाहे भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, बीबीएमबी परियोजनाओं में हिस्सेदारी का मामला सॉल्व नहीं हुआ है. पूर्व की जयराम सरकार ने एक समय बीबीएमबी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू न करने पर अवमानना याचिका दाखिल करने की तैयारी भी कर ली थी. पंजाब सरकार तो दशकों से अड़ियल रवैया अपनाए हुए हैं. जुलाई 2018 में हरियाणा ने हिस्सेदारी का बकाया अदा करने के लिए संकेत दिए थे, लेकिन पंजाब का रवैया कभी भी सहयोग का नहीं रहा.

हिमाचल की नदियों पर बनने वाली बिजली पर रॉयल्टी: जुलाई 2018 में शिमला में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के ऊर्जा मंत्रियों का सम्मेलन हुआ था. उस सम्मेलन में भी हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि राज्य से बहने वाली नदियों से पैदा हो रही बिजली पर रॉयल्टी मिलनी चाहिए. भाखड़ा और पौंग बांध जैसी बड़ी बिजली परियोजनाएं हिमाचल की धरती पर हैं, लेकिन राज्य को वैधानिक तरीके से तय जायज हक भी नहीं मिल रहा है. इसी तरह जनवरी 2018 में साल की पहली कैबिनेट बैठक में नई-नई सत्ता में आई जयराम सरकार ने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में एरियर के सेटलमेंट को लेकर कैबिनेट मंजूरी दी थी.

2016 में वीरभद्र सिंह ने पीएम मोदी को सौंपा था ज्ञापन: साल 2016 में तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी हिमाचल यात्रा के दौरान प्रदेश से जुड़ी 12 मांगों वाला ज्ञापन दिया था. उस समय भी बीबीएमबी परियोजनाओं में प्रबंधन बोर्ड के पूर्ण कालीन सदस्य के रूप में हिमाचल को शामिल किए जाने की मांग उठाई गई थी. अब प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार है. सुखविंदर सिंह सरकार के वाटर सेस कानून से पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा में खलबली है. ऐसे में बीबीएमबी परियोजनाओं में हिमाचल के हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं. आने वाले साल में हिमाचल को शानन प्रोजेक्ट की लड़ाई भी लड़नी है. मार्च 2024 में शानन बिजलीघर हिमाचल को मिलना है. पंजाब आसानी से उस बिजलीघर पर अपना कब्जा नहीं छोड़ेगा. क्या वो मामला भी सुप्रीम कोर्ट जाएगा या फिर केंद्र के हस्तक्षेप से मसला सुलझ जाएगा, इस पर भी सबकी निगाहें हैं.

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शिमला: आर्थिक संकट से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश पर मानसून सीजन में भारी बारिश आफत बनकर टूटी है. हजारों करोड़ रुपए के नुकसान के साथ ही हिमाचल के विकास की गाड़ी पटरी से उतर गई है. खजाना खाली है और सरकार को पैसे की जरूरत है. हिमाचल सरकार के लिए इस समय बीबीएमबी परियोजनाओं में अपने हक के ₹4250 करोड़ रुपए संजीवनी साबित होंगे. करीब ढाई दशक से पड़ोसी राज्य हिमाचल के हक पर कुंडली मारकर बैठे हैं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हरियाणा व पंजाब हिमाचल का हक नहीं दे रहे हैं. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई होनी है.

सुप्रीम कोर्ट पर हिमाचल सरकार की नजर: आज 6 सितंबर व शुक्रवार 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई संभावित है. ऐसे में हिमाचल सरकार की नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है. हिमाचल सरकार के उर्जा सचिव राजीव शर्मा के अनुसार हिमाचल प्रदेश की बीबीएमबी परियोजनाओं के तहत भाखड़ा पावर प्रोजेक्ट में एक जनवरी 1966 से अक्टूबर 2011 तक की हिस्सेदारी की रकम बकाया है. इसके अलावा ब्यास-सतलुज लिंक प्रोजेक्ट (बीएसएल) में 1977 से अक्टूबर 2011 की समय अवधि की हिस्सेदारी बकाया है. इसी तरह पौंग डैम में वर्ष 1978 से अक्टूबर 2011 तक की हिस्सेदारी के एवज में पंजाब व हरियाणा को बकाया हिस्सेदारी का भुगतान करना है. ये तीन परियोजनाएं हैं और इनसे हिमाचल को बकाया के एवज में 13,066 मिलियन यूनिट बिजली मिलनी है.

1998 में हिमाचल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया: हिमाचल सरकार ने अपने हक के लिए वर्ष 1998 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसके बाद से 25 साल बीत गए, लेकिन हिमाचल को हक नहीं मिला है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में सितंबर महीने की दो तारीख को अपने आदेश में हरियाणा और पंजाब को संबंधित एक्ट यानी पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 के तहत हिस्सेदारी देने के लिए कहा था. फिर दोनों पड़ोसी राज्यों ने अक्टूबर 2011 से हिस्सेदारी देना शुरू किया, लेकिन पहले के बकाया पर ये दोनों राज्य चुप्पी साधे रहते हैं, भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड यानी बीबीएमबी के तीन मुख्य प्रोजेक्ट हैं. इनमें भाखड़ा प्रोजेक्ट 1325 मेगावाट, पौंग बांध प्रोजेक्ट 396 मेगावाट व ब्यास सतलुज लिंक यानी बीएसएल प्रोजेक्ट सुंदरनगर 990 मेगावाट का है.

तीन परियोजनाओं में हिमाचल कर रहा हिस्सेदारी की मांग: वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत प्रदेश सरकार भाखड़ा बांध प्रोजेक्ट में 2724 करोड़ रुपए, बीएसएल डैहर सुंदरनगर प्रोजेक्ट में 1034.54 करोड़ और पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये मियाद दस की बजाय बीस साल करने को कहा. अभी भी ये मसला सुलझा नहीं है. इसी तरह चंडीगढ़ की कुछ जमीन पर भी हिमाचल का दावा है. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने इस मामले को फिर से छेड़ा है. पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत चंडीगढ़ पर हिमाचल का सात फीसदी से अधिक का दावा है. इसमें जमीन से लेकर पानी के एवज में मिलने वाला लाभ शामिल है. अभी हिमाचल को सिर्फ पीजीआई में प्रशासनिक अधिकारी तैनात करने का हक है. हिमाचल से एक आईएएस व एक एचपीएएस अधिकारी चंडीगढ़ पीजीआई में प्रशासनिक हक के रूप में नियुक्त होता है.

हिमाचल दशकों से नार्थ जोन काउंसिल में उठता रहता है मुद्दा: हिमाचल सरकार दशकों से इस मामले को नार्थ जोन काउंसिल में उठाती रहती है. पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सितंबर 2019 में चंडीगढ़ में आयोजित नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक में मुद्दा उठाया था कि हिमाचल को बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में पूर्णकालिक सदस्य बनाया जाए. हिमाचल में सरकार चाहे भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, बीबीएमबी परियोजनाओं में हिस्सेदारी का मामला सॉल्व नहीं हुआ है. पूर्व की जयराम सरकार ने एक समय बीबीएमबी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू न करने पर अवमानना याचिका दाखिल करने की तैयारी भी कर ली थी. पंजाब सरकार तो दशकों से अड़ियल रवैया अपनाए हुए हैं. जुलाई 2018 में हरियाणा ने हिस्सेदारी का बकाया अदा करने के लिए संकेत दिए थे, लेकिन पंजाब का रवैया कभी भी सहयोग का नहीं रहा.

हिमाचल की नदियों पर बनने वाली बिजली पर रॉयल्टी: जुलाई 2018 में शिमला में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के ऊर्जा मंत्रियों का सम्मेलन हुआ था. उस सम्मेलन में भी हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि राज्य से बहने वाली नदियों से पैदा हो रही बिजली पर रॉयल्टी मिलनी चाहिए. भाखड़ा और पौंग बांध जैसी बड़ी बिजली परियोजनाएं हिमाचल की धरती पर हैं, लेकिन राज्य को वैधानिक तरीके से तय जायज हक भी नहीं मिल रहा है. इसी तरह जनवरी 2018 में साल की पहली कैबिनेट बैठक में नई-नई सत्ता में आई जयराम सरकार ने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में एरियर के सेटलमेंट को लेकर कैबिनेट मंजूरी दी थी.

2016 में वीरभद्र सिंह ने पीएम मोदी को सौंपा था ज्ञापन: साल 2016 में तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी हिमाचल यात्रा के दौरान प्रदेश से जुड़ी 12 मांगों वाला ज्ञापन दिया था. उस समय भी बीबीएमबी परियोजनाओं में प्रबंधन बोर्ड के पूर्ण कालीन सदस्य के रूप में हिमाचल को शामिल किए जाने की मांग उठाई गई थी. अब प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार है. सुखविंदर सिंह सरकार के वाटर सेस कानून से पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा में खलबली है. ऐसे में बीबीएमबी परियोजनाओं में हिमाचल के हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं. आने वाले साल में हिमाचल को शानन प्रोजेक्ट की लड़ाई भी लड़नी है. मार्च 2024 में शानन बिजलीघर हिमाचल को मिलना है. पंजाब आसानी से उस बिजलीघर पर अपना कब्जा नहीं छोड़ेगा. क्या वो मामला भी सुप्रीम कोर्ट जाएगा या फिर केंद्र के हस्तक्षेप से मसला सुलझ जाएगा, इस पर भी सबकी निगाहें हैं.

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