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हिमाचल में जबरन धर्मांतरण पर सख्त कानून, दोषी को होगी सात साल की सजा, विधानसभा में पारित हुआ बिल

धर्मांतरण के खिलाफ हिमाचल में सख्त कानून अस्तित्व में आया है. शुक्रवार को चर्चा के बाद सदन में इस विधेयक को पारित कर दिया गया. हालांकि विपक्ष ने विधेयक के कुछ बिंदुओं एतराज जताया है.

Himachal Pradesh Freedom of Religion Bill-2019 passed in Legislative Assembly
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Published : Aug 30, 2019, 10:58 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में जबरन धर्मांतरण पर अब दोषी को सात साल की सजा होगी. धर्मांतरण के खिलाफ हिमाचल में सख्त कानून अस्तित्व में आया है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा के मानसून सत्र में गुरूवार को हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता विधेयक-2019 सदन में लाया था.

शुक्रवार को चर्चा के बाद सदन में इस विधेयक को पारित कर दिया गया. हालांकि विपक्ष ने विधेयक के कुछ बिंदुओं एतराज जताया. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी का कहना था कि ये बिल सबसे पहले वीरभद्र सिंह की सरकार ने लाया था. जयराम सरकार को पहले से ही मौजूद बिल में संशोधन करना चाहिए था. इसके लिए नया बिल लाने की जरूरत नहीं थी.

वीडियो.

सीएम ने जवाब में कहा कि वीरभद्र सिंह की सरकार के समय लाए गए बिल में केवल 8 सेक्शन थे और धर्मांतरण के खिलाफ सख्त प्रावधानों वाला नहीं था. मौजूदा समय में इसमें दस संशोधन करने पड़ रहे थे. इस प्रकार मूल बिल के आठ सेक्शन में ही यदि दस संशोधन हो जाते तो संशोधन ही बिल से अधिक होने थे. ऐसे में नए बिल की जरूरत थी. बाद में विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया.

क्या हैं बिल के प्रावधान
धर्मांतरण का दोषी पाए जाने पर सात साल की जेल होगी. ये प्रावधान महिला, एससी, एसटी वर्ग के लिए किया गया है. कारण ये है कि धर्म परिवर्तन करवाने वाले समूहों का मुख्य निशाना महिलाएं व एससी-एसटी वर्ग के लोग होते हैं. सरकार ने इस अपराध को संज्ञेय (कॉगजिनेबल) श्रेणी में रखा है. इससे अब सरकार के पास धर्म परिवर्तन करवाने में लिप्त पाई जाने वाली सामाजिक संस्थाओं, एनजीओ और अन्य संगठनों पर भी सीधी कार्रवाई का अधिकार होगा. शादी का झांसा देकर धर्म परिवर्तन करवाना, मनोवैज्ञानिक दबाव डालना, लालच देकर धर्मांतरण करवाना भी अपराध होगा.

बिल पर चर्चा के दौरान किन्नौर के विधायक जगत सिंह नेगी ने महिला और एससी एसटी को अलग से रेखांकित करने का विरोध किया. माकपा विधायक राकेश सिंघा का तर्क था कि विधायिका की शक्तियां किसी और को इस्तेमाल करने का अधिकार दिया जा रहा है. आशा कुमारी ने कहा कि इस विधेयक को नए सिरे से लाने के बजाये सरकार ने वीरभद्र्र सिंह सरकार के दौरान 2006 में बनाए कानून में संशोधन क्यों नहीं किया? साथ ही इसमें महिला को अलग से टारगेट किया गया है.

आशा कुमारी ने कहा कि सरकार ने जितने भी बिल लाए हैं, उनकी ड्राफ्टिंग कमजोर है. आशा कुमारी ने कहा कि कांग्रेस बिल के खिलाफ नहीं है. सत्ता पक्ष को ऐसी पिक्चर पेंट नहीं करनी चाहिए. विपक्ष का केवल इतना कहना है कि जब पहले से ही कानून है तो उसमें संशोधन किया जाता, नए की क्या जरूरत थी.
वहीं, सत्ताधारी दर के विधायक राकेश पठानिया ने बिल का जोरदार समर्थन किया और कहा कि सजा के कानून को और सख्त बनाया जाना चाहिए. पठानिया ने कहा कि रविवार के दिन पंजाब से लोग आते हैं और पैसे देकर धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं.

भाजपा के ही राकेश जम्वाल ने कहा कि विपक्ष के सदस्य इस बिल को गलत नजरिए से देख रहे हैं. बिल में जो प्रावधान किए गए हैं, उससे धर्मांतरण पर रोक लगेगी. उन्होंने कहा कि ईसाई समुदाय के लोग पहाड़ के भोले और सीधे लोगों को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करवाते हैं. हालांकि राकेश जम्वाल के समुदाय विशेष का नाम लेने पर कांग्रेस विधायक जगत नेगी ने आपत्ति भी जताई.

संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि वे एक विधायक की हैसियत से चर्चा में भाग ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे उदाहरण भी हैं कि लोग दूसरी पत्नी रखने के लिए भी धर्म बदल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में लाए गए कानून में भी महिला का जिक्र था. ये कोई नया विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि पुराने कानूनन में केवल 8 धाराएं थी. ये कानून इतना छोटा था कि इसे संशोधित करते तो संशोधन मूल कानून से बड़ा हो जाता. इसलिए नए सिरे से कानून की जरूरत महसूस हुई.

नेता प्रतिपक्ष मुकेश ने कहा कि वह कानून के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार का इरादा कुछ और लग रहा है. सुखविंद्र सिंह ने कहा कि हिमाचल में 98 फीसदी हिंदू हैं और जब वीरभद्र सिंह की सरकार के समय कानून बना है तो नया लाने की क्या जरूरत है.
बिल पर चर्चा के जवाब में सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि ये सही है कि सबसे पहले वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में ये कानून बना. अब नए और प्रभावी कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी. देश के 8 अन्य राज्य भी ऐसा कानून बना चुके हैं. सीएम ने कहा कि रामपुर, किन्नौर से लेकर प्रदेश के अन्य भागों में जबरन व लालच देकर धर्मांतरण करवाया जा रहा था.

उन्होंने कहा कि गरीब की कोई जात नहीं होती. गरीब लोगों को पैसे का लालच देकर बरगलाया जाता है और धर्म परिवर्तन करवाया जाता है. सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि जो आंखों के सामने हो रहा है, उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. बाद में ध्वनिमत से बिल पारित हो गया और अब अधिसूचना जारी होते ही ये प्रभावी हो जाएगा.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में जबरन धर्मांतरण पर अब दोषी को सात साल की सजा होगी. धर्मांतरण के खिलाफ हिमाचल में सख्त कानून अस्तित्व में आया है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा के मानसून सत्र में गुरूवार को हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता विधेयक-2019 सदन में लाया था.

शुक्रवार को चर्चा के बाद सदन में इस विधेयक को पारित कर दिया गया. हालांकि विपक्ष ने विधेयक के कुछ बिंदुओं एतराज जताया. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी का कहना था कि ये बिल सबसे पहले वीरभद्र सिंह की सरकार ने लाया था. जयराम सरकार को पहले से ही मौजूद बिल में संशोधन करना चाहिए था. इसके लिए नया बिल लाने की जरूरत नहीं थी.

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सीएम ने जवाब में कहा कि वीरभद्र सिंह की सरकार के समय लाए गए बिल में केवल 8 सेक्शन थे और धर्मांतरण के खिलाफ सख्त प्रावधानों वाला नहीं था. मौजूदा समय में इसमें दस संशोधन करने पड़ रहे थे. इस प्रकार मूल बिल के आठ सेक्शन में ही यदि दस संशोधन हो जाते तो संशोधन ही बिल से अधिक होने थे. ऐसे में नए बिल की जरूरत थी. बाद में विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया.

क्या हैं बिल के प्रावधान
धर्मांतरण का दोषी पाए जाने पर सात साल की जेल होगी. ये प्रावधान महिला, एससी, एसटी वर्ग के लिए किया गया है. कारण ये है कि धर्म परिवर्तन करवाने वाले समूहों का मुख्य निशाना महिलाएं व एससी-एसटी वर्ग के लोग होते हैं. सरकार ने इस अपराध को संज्ञेय (कॉगजिनेबल) श्रेणी में रखा है. इससे अब सरकार के पास धर्म परिवर्तन करवाने में लिप्त पाई जाने वाली सामाजिक संस्थाओं, एनजीओ और अन्य संगठनों पर भी सीधी कार्रवाई का अधिकार होगा. शादी का झांसा देकर धर्म परिवर्तन करवाना, मनोवैज्ञानिक दबाव डालना, लालच देकर धर्मांतरण करवाना भी अपराध होगा.

बिल पर चर्चा के दौरान किन्नौर के विधायक जगत सिंह नेगी ने महिला और एससी एसटी को अलग से रेखांकित करने का विरोध किया. माकपा विधायक राकेश सिंघा का तर्क था कि विधायिका की शक्तियां किसी और को इस्तेमाल करने का अधिकार दिया जा रहा है. आशा कुमारी ने कहा कि इस विधेयक को नए सिरे से लाने के बजाये सरकार ने वीरभद्र्र सिंह सरकार के दौरान 2006 में बनाए कानून में संशोधन क्यों नहीं किया? साथ ही इसमें महिला को अलग से टारगेट किया गया है.

आशा कुमारी ने कहा कि सरकार ने जितने भी बिल लाए हैं, उनकी ड्राफ्टिंग कमजोर है. आशा कुमारी ने कहा कि कांग्रेस बिल के खिलाफ नहीं है. सत्ता पक्ष को ऐसी पिक्चर पेंट नहीं करनी चाहिए. विपक्ष का केवल इतना कहना है कि जब पहले से ही कानून है तो उसमें संशोधन किया जाता, नए की क्या जरूरत थी.
वहीं, सत्ताधारी दर के विधायक राकेश पठानिया ने बिल का जोरदार समर्थन किया और कहा कि सजा के कानून को और सख्त बनाया जाना चाहिए. पठानिया ने कहा कि रविवार के दिन पंजाब से लोग आते हैं और पैसे देकर धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं.

भाजपा के ही राकेश जम्वाल ने कहा कि विपक्ष के सदस्य इस बिल को गलत नजरिए से देख रहे हैं. बिल में जो प्रावधान किए गए हैं, उससे धर्मांतरण पर रोक लगेगी. उन्होंने कहा कि ईसाई समुदाय के लोग पहाड़ के भोले और सीधे लोगों को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करवाते हैं. हालांकि राकेश जम्वाल के समुदाय विशेष का नाम लेने पर कांग्रेस विधायक जगत नेगी ने आपत्ति भी जताई.

संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि वे एक विधायक की हैसियत से चर्चा में भाग ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे उदाहरण भी हैं कि लोग दूसरी पत्नी रखने के लिए भी धर्म बदल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में लाए गए कानून में भी महिला का जिक्र था. ये कोई नया विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि पुराने कानूनन में केवल 8 धाराएं थी. ये कानून इतना छोटा था कि इसे संशोधित करते तो संशोधन मूल कानून से बड़ा हो जाता. इसलिए नए सिरे से कानून की जरूरत महसूस हुई.

नेता प्रतिपक्ष मुकेश ने कहा कि वह कानून के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार का इरादा कुछ और लग रहा है. सुखविंद्र सिंह ने कहा कि हिमाचल में 98 फीसदी हिंदू हैं और जब वीरभद्र सिंह की सरकार के समय कानून बना है तो नया लाने की क्या जरूरत है.
बिल पर चर्चा के जवाब में सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि ये सही है कि सबसे पहले वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में ये कानून बना. अब नए और प्रभावी कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी. देश के 8 अन्य राज्य भी ऐसा कानून बना चुके हैं. सीएम ने कहा कि रामपुर, किन्नौर से लेकर प्रदेश के अन्य भागों में जबरन व लालच देकर धर्मांतरण करवाया जा रहा था.

उन्होंने कहा कि गरीब की कोई जात नहीं होती. गरीब लोगों को पैसे का लालच देकर बरगलाया जाता है और धर्म परिवर्तन करवाया जाता है. सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि जो आंखों के सामने हो रहा है, उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. बाद में ध्वनिमत से बिल पारित हो गया और अब अधिसूचना जारी होते ही ये प्रभावी हो जाएगा.

हिमाचल में जबरन धर्मांतरण पर सख्त कानून, दोषी को होगी सात साल की सजा, विधानसभा में पारित हुआ बिल
शिमला। हिमाचल प्रदेश में जबरन धर्मांतरण पर अब दोषी को सात साल की सजा होगी। धर्मांतरण के खिलाफ हिमाचल में सख्त कानून अस्तित्व में आया है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा के मानसून सत्र में गुरूवार को हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता विधेयक-2019 सदन में लाया था। शुक्रवार को चर्चा के बाद सदन में इस विधेयक को पारित कर दिया गया। हालांकि विपक्ष ने विधेयक के कुछ बिंदुओं एतराज जताया। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी का कहना था कि ये बिल सबसे पहले वीरभद्र सिंह की सरकार ने लाया था। जयराम सरकार को पहले से ही मौजूद बिल में संशोधन करना चाहिए था। इसके लिए नया बिल लाने की जरूरत नहीं थी। सीएम ने जवाब में कहा कि वीरभद्र सिंह की सरकार के समय लाए गए बिल में केवल 8 सेक्शन थे और धर्मांतरण के खिलाफ सख्त प्रावधानों वाला नहीं था। मौजूदा समय में इसमें दस संशोधन करने पड़ रहे थे। इस प्रकार मूल बिल के आठ सेक्शन में ही यदि दस संशोधन हो जाते तो संशोधन ही बिल से अधिक होने थे। ऐसे में नए बिल की जरूरत थी। बाद में विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। 
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क्या हैं बिल के प्रावधान
धर्मांतरण का दोषी पाए जाने पर सात साल की जेल होगी। ये प्रावधान महिला, एससी, एसटी वर्ग के लिए किया गया है। कारण ये है कि धर्म परिवर्तन करवाने वाले समूहों का मुख्य निशाना महिलाएं व एससी-एसटी वर्ग के लोग होते हैं। सरकार ने इस अपराध को संज्ञेय (कॉगजिनेबल) श्रेणी में रखा है। इससे अब सरकार के पास धर्म परिवर्तन करवाने में लिप्त पाई जाने वाली सामाजिक संस्थाओं, एनजीओ और अन्य संगठनों पर भी सीधी कार्रवाई का अधिकार होगा। शादी का झांसा देकर धर्म परिवर्तन करवाना, मनोवैज्ञानिक दबाव डालना, लालच देकर धर्मांतरण करवाना भी अपराध होगा। 
बिल पर चर्चा के दौरान किन्नौर के विधायक जगत सिंह नेगी ने महिला और एससी एसटी को अलग से रेखांकित करने का विरोध किया। माकपा विधायक राकेश सिंघा का तर्क था कि विधायिका की शक्तियां किसी और को इस्तेमाल करने का अधिकार दिया जा रहा है। आशा कुमारी ने कहा कि इस विधेयक को नए सिरे से लाने के बजाये सरकार ने वीरभद्र्र सिंह सरकार के दौरान 2006 में बनाए कानून में संशोधन क्यों नहीं किया? साथ ही इसमें महिला को अलग से टारगेट किया गया है। आशा कुमारी ने कहा कि सरकार ने जितने भी बिल लाए हैं, उनकी ड्राफ्टिंग कमजोर है। आशा कुमारी ने कहा कि कांग्रेस बिल के खिलाफ नहीं है। सत्ता पक्ष को ऐसी पिक्चर पेंट नहीं करनी चाहिए। विपक्ष का केवल इतना कहना है कि जब पहले से ही कानून है तो उसमें संशोधन किया जाता, नए की क्या जरूरत थी। 
वहीं, सत्ताधारी दर के विधायक राकेश पठानिया ने बिल का जोरदार समर्थन किया और कहा कि सजा के कानून को और सख्त बनाया जाना चाहिए। पठानिया ने कहा कि रविवार के दिन पंजाब से लोग आते हैं और पैसे देकर धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं। भाजपा के ही राकेश जम्वाल ने कहा कि विपक्ष के सदस्य इस बिल को गलत नजरिए से देख रहे हैं। बिल में जो प्रावधान किए गए हैं, उससे धर्मांतरण पर रोक लगेगी। उन्होंने कहा कि ईसाई समुदाय के लोग पहाड़ के भोले और सीधे लोगों को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करवाते हैं। हालांकि राकेश जम्वाल के समुदाय विशेष का नाम लेने पर कांग्रेस विधायक जगत नेगी ने आपत्ति भी जताई। संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि वे एक विधायक की हैसियत से चर्चा में भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे उदाहरण भी हैं कि लोग दूसरी पत्नी रखने के लिए भी धर्म बदल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में लाए गए कानून में भी महिला का जिक्र था। ये कोई नया विषय नहीं है। उन्होंने कहा कि पुराने कानूनन में  केवल 8 धाराएं थी। ये कानून इतना छोटा था कि इसे संशोधित करते तो संशोधन मूल कानून से बड़ा हो जाता। इसलिए नए सिरे से कानून की जरूरत महसूस हुई। नेता प्रतिपक्ष मुकेश ने कहा कि वह कानून के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार का इरादा कुछ और लग रहा है। सुखविंद्र सिंह ने कहा कि हिमाचल में 98 फीसदी हिंदू हैं और जब वीरभद्र सिंह की सरकार के समय कानून बना है तो नया लाने की क्या जरूरत है।
बिल पर चर्चा के जवाब में सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि ये सही है कि सबसे पहले वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में ये कानून बना। अब नए और प्रभावी कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी। देश के 8 अन्य राज्य भी ऐसा कानून बना चुके हैं। सीएम ने कहा कि रामपुर, किन्नौर से लेकर प्रदेश के अन्य भागों में जबरन व लालच देकर धर्मांतरण करवाया जा रहा था। उन्होंने कहा कि गरीब की कोई जात नहीं होती। गरीब लोगों को पैसे का लालच देकर बरगलाया जाता है और धर्म परिवर्तन करवाया जाता है। सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि जो आंखों के सामने हो रहा है, उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। बाद में ध्वनिमत से बिल पारित हो गया और अब अधिसूचना जारी होते ही ये प्रभावी हो जाएगा।  
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