शिमला: हिमाचल प्रदेश में शिक्षा विभाग के 198 बीआरसीसी (ब्लॉक रिसोर्स सेंटर कोऑर्डिनेटर) को वापस स्कूलों में जाना ही होगा. सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 13 जून को 198 बीआरसीसी शिक्षकों को वापस स्कूलों में भेजने के आदेश जारी किए थे. सरकार के इस आदेश को मायाराम शर्मा व अन्य ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. हाई कोर्ट में कुल 55 प्रार्थियों की तरफ से याचिका दाखिल की गई. मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अदालत में बताया कि प्रदेश के स्कूलों में विभिन्न वर्गों के शिक्षकों के छह हजार पद खाली हैं. ऐसे में शिक्षकों की कमी को देखते हुए सर्व शिक्षा अभियान के तहत नियुक्त बीआरसीसी को वापस स्कूलों में भेजना जरूरी है.
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद सरकार के आदेश पर मुहर लगा दी. इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने मायाराम शर्मा व अन्य की तरफ से दाखिल याचिका को भी खारिज कर दिया. याचिका में दिए गए तथ्यों के अनुसार सर्व शिक्षा अभियान के तहत 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को जरूरी शिक्षा मुहैया करवाने के उद्देश्य से प्रार्थियों को तैनात किया गया. प्रार्थियों को बीआरआरसी की नीति के अंतर्गत एक बड़ी राशि खर्च कर तैनात किया गया था. प्रार्थियों के अनुसार राज्य सरकार ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए 5 जुलाई 2023 को उन्हें फिर से स्कूलों में अध्यापन कार्य में भेजने के आदेश पारित कर दिए. सरकार के इस आदेश को प्रार्थियों ने याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.
वहीं, राज्य सरकार की ओर से अदालत को यह बताया गया था कि वर्तमान में सभी जिलों में जेबीटी के करीब 3889 पद, हैड टीचर के 597 पद, खाली पड़े हैं. साथ ही टीजीटी आर्ट्स के 691, टीजीटी नॉन मेडिकल के 689 और टीजीटी मेडिकल के 371 पद रिक्त हैं. बड़ी संख्या में खाली पदों के कारण छात्रों की शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. सरकार के तर्क के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि इस संदर्भ में बीआरसीसी को फिर से स्कूलों में भेजने को लेकर कुछ भी गैरकानूनी नहीं है. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलों से सहमति जताते हुए कोर्ट में 55 शिक्षकों की तरफ से दाखिल याचिका को खारिज कर दिया.
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