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Himachal High Court: जमीन अधिग्रहण मामले में हिमाचल हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी- सरकार के व्यवहार ने झकझोरी अदालत की आत्मा

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार के व्यवहार पर फटकार लगाते हुए सख्त टिप्पणी की है. जमीन अधिग्रहण मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि सड़क बनाने के लिए प्रयोग की गई भूमि का मुआवजा जमीन मालिकों को दें या फिर उनकी जमीनें उन्हें वापस करें. (Himachal High Court) (Himachal High Court on Land Acquisition Case)

Himachal High Court
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 11, 2023, 11:18 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के व्यवहार पर सख्त टिप्पणी की है. मामला जमीन अधिग्रहण के मुआवजे से जुड़ा है. हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि या तो वह सड़क बनाने के लिए प्रयोग की गई भूमि का मुआवजा दे या फिर जमीन को उसके मालिकों को वापस करे. इस संदर्भ में राज्य सरकार की अपील को अदालत ने खारिज किया और टिप्पणी करते हुए कहा कि इस व्यवहार ने न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दिया है. हिमाचल हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि राज्य देरी के आधार पर खुद को बचा नहीं सकता.

क्या है पूरा मामला: मामले के अनुसार हिमाचल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 12 मार्च 2020 को मुआवजे के संबंध में एक फैसला दिया था. उस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल की हुई है. उसी अपील पर अब न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने फैसला दिया है कि राज्य सरकार को या तो भूमि का अधिग्रहण करने पर मुआवजा देना होगा या फिर उसे मालिकों को सौंपने का निर्देश दिया है. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि उसने सड़क निर्माण के लिए अपनी भूमि का उपयोग करने के लिए भूमि मालिकों की मौखिक सहमति ली थी, लेकिन भूमि मालिकों ने इस दावे का खंडन किया है. भूमि मालिकों ने राज्य सरकार के दावे को गलत बताया है

राज्य सरकार को कोर्ट की नसीहत: न्यायालय ने पाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों का सहारा लिए बिना राज्य सरकार ने प्रतिवादियों की जमीन लेकर जिला ऊना में रक्कड़ से बसोली सड़क का निर्माण किया था. अदालत ने कहा कि मौजूदा मामला कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से जबरन बेदखल करने का एक उदाहरण है. कोर्ट ने राज्य सरकार के रवैये को मानवाधिकारों के साथ-साथ संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन माना है. अदालत ने आगे कहा कि राज्य अपने नागरिकों के अधिकारों, जीवन और संपत्ति का संरक्षक है. यदि राज्य ऐसा काम करता है तो ये न्यायालय की न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरता है. न्यायालय ने माना कि राज्य देरी और देरी के आधार पर खुद को अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बचा सकता है.

पहले भी आया था ऐसा मामला: ऐसे ही एक मामले में पहले भी राज्य सरकार को अदालत ने फटकार लगाई थी. साल 1995 में शिमला की रोहड़ू-परसा-शेखल वाया ढारा सड़क के निर्माण के लिए स्थानीय लोगों ने स्वेच्छा से जमीन दी थी. इलाके के एक निवासी की जमीन से होते हुए उक्त सड़क का निर्माण किया गया था. मुआवजे के लिए हिमाचल हाई कोर्ट पहुंचे प्रार्थी बलवंत सिंह का आरोप था कि यह निर्माण भू-अधिग्रहण के बाद किया जाना चाहिए था, परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया.

पहले भी अदालत लगा चुकी है फटकार: वहीं, सरकार की दलील थी कि ये सड़क स्थानीय लोगों की मांग पर बनी थी. सरकार का कहना था कि जनता ने अपनी इच्छा से जमीन दी थी और लोगों की सहमति से ही सड़क निर्माण किया गया था. इतना समय बीत जाने के बाद अब जाकर प्रार्थी मुआवजे की मांग कर रहा है. कोर्ट में दलील देते हुए राज्य सरकार ने कहा कि सड़क का इस्तेमाल करने के बाद अब मुआवजे की मांग करना अनुचित है. ये दलील देते हुए सरकार ने हिमाचल हाई कोर्ट से प्रार्थी की याचिका को खारिज करने की मांग उठाई. अदालत ने राज्य सरकार की दलीलों सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस रवैये ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है. इस टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट ने सरकार की सभी दलीलों को नकार दिया था और राज्य सरकार पर दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाई थी. साथ ही प्रार्थी को मुआवजे के आदेश दिए थे.

ये भी पढ़ें: Himachal High Court: अडानी ग्रुप को पैसा लौटाने के मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने रिजर्व रखा फैसला, जानिए क्या है पूरा मामला

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के व्यवहार पर सख्त टिप्पणी की है. मामला जमीन अधिग्रहण के मुआवजे से जुड़ा है. हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि या तो वह सड़क बनाने के लिए प्रयोग की गई भूमि का मुआवजा दे या फिर जमीन को उसके मालिकों को वापस करे. इस संदर्भ में राज्य सरकार की अपील को अदालत ने खारिज किया और टिप्पणी करते हुए कहा कि इस व्यवहार ने न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दिया है. हिमाचल हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि राज्य देरी के आधार पर खुद को बचा नहीं सकता.

क्या है पूरा मामला: मामले के अनुसार हिमाचल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 12 मार्च 2020 को मुआवजे के संबंध में एक फैसला दिया था. उस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल की हुई है. उसी अपील पर अब न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने फैसला दिया है कि राज्य सरकार को या तो भूमि का अधिग्रहण करने पर मुआवजा देना होगा या फिर उसे मालिकों को सौंपने का निर्देश दिया है. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि उसने सड़क निर्माण के लिए अपनी भूमि का उपयोग करने के लिए भूमि मालिकों की मौखिक सहमति ली थी, लेकिन भूमि मालिकों ने इस दावे का खंडन किया है. भूमि मालिकों ने राज्य सरकार के दावे को गलत बताया है

राज्य सरकार को कोर्ट की नसीहत: न्यायालय ने पाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों का सहारा लिए बिना राज्य सरकार ने प्रतिवादियों की जमीन लेकर जिला ऊना में रक्कड़ से बसोली सड़क का निर्माण किया था. अदालत ने कहा कि मौजूदा मामला कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से जबरन बेदखल करने का एक उदाहरण है. कोर्ट ने राज्य सरकार के रवैये को मानवाधिकारों के साथ-साथ संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन माना है. अदालत ने आगे कहा कि राज्य अपने नागरिकों के अधिकारों, जीवन और संपत्ति का संरक्षक है. यदि राज्य ऐसा काम करता है तो ये न्यायालय की न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरता है. न्यायालय ने माना कि राज्य देरी और देरी के आधार पर खुद को अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बचा सकता है.

पहले भी आया था ऐसा मामला: ऐसे ही एक मामले में पहले भी राज्य सरकार को अदालत ने फटकार लगाई थी. साल 1995 में शिमला की रोहड़ू-परसा-शेखल वाया ढारा सड़क के निर्माण के लिए स्थानीय लोगों ने स्वेच्छा से जमीन दी थी. इलाके के एक निवासी की जमीन से होते हुए उक्त सड़क का निर्माण किया गया था. मुआवजे के लिए हिमाचल हाई कोर्ट पहुंचे प्रार्थी बलवंत सिंह का आरोप था कि यह निर्माण भू-अधिग्रहण के बाद किया जाना चाहिए था, परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया.

पहले भी अदालत लगा चुकी है फटकार: वहीं, सरकार की दलील थी कि ये सड़क स्थानीय लोगों की मांग पर बनी थी. सरकार का कहना था कि जनता ने अपनी इच्छा से जमीन दी थी और लोगों की सहमति से ही सड़क निर्माण किया गया था. इतना समय बीत जाने के बाद अब जाकर प्रार्थी मुआवजे की मांग कर रहा है. कोर्ट में दलील देते हुए राज्य सरकार ने कहा कि सड़क का इस्तेमाल करने के बाद अब मुआवजे की मांग करना अनुचित है. ये दलील देते हुए सरकार ने हिमाचल हाई कोर्ट से प्रार्थी की याचिका को खारिज करने की मांग उठाई. अदालत ने राज्य सरकार की दलीलों सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस रवैये ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है. इस टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट ने सरकार की सभी दलीलों को नकार दिया था और राज्य सरकार पर दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाई थी. साथ ही प्रार्थी को मुआवजे के आदेश दिए थे.

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