शिमला: जमीन अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ी व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की एकल पीठ ने यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने कहा कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार के नाम चढ़ी भूमि फिर से भू-मालिक को वापस नहीं की जा सकती. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की उस मांग को भी नामंजूर कर दिया, जिसमें अथॉरिटी ने कहा था कि अधिगृहित जमीन अब उनके काम की नहीं है और वे उसे फिर से भूमि मालिक के लिए छोडना चाहते हैं.
अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता. एक बार जमीन अधिगृहित हो गई तो वो वापिस नहीं होगी और उसका कानून सम्मत उचित मुआवजा भी देना होगा. अदालत ने एनएचएआई को जमीन मालिक की अधिगृहित की गई भूमि का मुआवजा चार सप्ताह में देने के आदेश जारी किए. अदालत ने इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि सरकार अधिगृहित भूमि वापिस भू-मालिक के नाम कर दे. हाईकोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण के बाद जब भूमि सरकार के नाम हो जाती है, तब उस जमीन के इस्तेमाल को लेकर भू-मालिक का कोई लेना-देना नहीं रहता. सरकार द्वारा जमीन का अधिग्रहण करने के बाद भू मालिक केवल उचित मुआवजे का हक रखता है.
सरकार भी जमीन का अधिग्रहण करने के बाद यह कहते हुए भूमि के मुआवजे से नहीं बच सकती की अधिगृहित भूमि उसे नहीं चाहिए. सरकार के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि वह अधिगृहित की गई भूमि संबंधित भू-मालिक को वापिस करे और न ही जमीन का मालिक किसी भी आधार पर अधिगृहित भूमि वापिस मांगने का हकदार है. अदालत ने कहा कि जब तक अधिग्रहण से जुड़ी प्रक्रिया को ही चुनौती न दी गई हो तब तक भू मालिक अपनी भूमि वापिस नहीं मांग सकता.
दरअसल, हाईकोर्ट के समक्ष आए मामले के अनुसार प्रार्थियों की जमीन का अधिग्रहण पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए किया गया था. ये अधिग्रहण नेशनल हाइवे अधिनियम-1956 के तहत किया गया था. नियमानुसार इसकी अधिसूचना 20 अक्टूबर 2020 को की गई, फिर 11 दिसंबर, 2020 को अधिग्रहण की घोषणा कर दी गई. इसलिए इसी दिन से अधिगृहित भूमि सरकार के नाम हो गई. जमीन का अवार्ड भी 15 मार्च 2013 को पारित हो गया.
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प्रार्थियों का आरोप था कि अवॉर्ड पारित होने के बावजूद सरकार उन्हें मुआवजा राशि जारी नहीं कर रही है. एनएचएआई का कहना था कि अधिगृहित भूमि वास्तविक सुरंग से ऊपर 60 मीटर दूर है. इसलिए प्रार्थियों की भूमि सुरंग निर्माण के लिए नहीं चाहिए और न ही यह भूमि हाइवे प्रोजेक्ट के निर्माण में इस्तेमाल की जानी है. इन परिस्थितियों में एनएचएआई ने उक्त भूमि को वापिस कर भू मालिकों द्वारा पुन: इस्तेमाल के लिए छोड़ने की अनुमति मांगी. हाईकोर्ट ने कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए एनएचएआई की मांग को अस्वीकार कर दिया. साथ ही हाईकोर्ट ने आदेश दिए कि वह प्रार्थियों की जमीन की मुआवजा राशि 4 हफ्ते के भीतर जारी करे.