शिमला: विज्ञान, पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी परिषद के क्लाइमेट चेंज सेंटर की ओर से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार ग्लेशियर पिघलने से सतलुज बेसिन पर बनी झीलों के साथ चिनाब पर बनी झीलों में 15 फीसदी और रावी बेसिन पर बनी झीलों में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
ग्लेशियरों के पिघलने से तिब्बत (चीन नियंत्रण) क्षेत्र में बनी झीलें प्रदेश में बहने वाली नदियों में उफान ला सकती हैं जिससे हिमाचल सहित पड़ोसी राज्यों में भारी नुकसान हो सकता है. इन झीलों के टूटने से सतलुज, चिनाब और रावी नदियों में भारी बाढ़ आ सकती है.
हिमालय रीजन में सतलुज, चिनाब व रावी बेसिन पर बनी झील के आकार में वृद्धि होने से उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में संकट मंडराने लगा है. सैटेलाइट तस्वीरों से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार इन तीनों प्रमुख नदियों के बेसिन पर ग्लेशियरों के पिघलने से झीलों की संख्या व इनके आकार में तेजी से वृद्धि हो रही है.
रिपोर्ट के बारे में प्रदेश सरकार को भी सूचित कर दिया गया है, ताकि इन नदियों के प्रभाव क्षेत्र में सरकार उचित प्रबंध कर सके. साथ ही जुलाई से सितंबर महीने के बीच जरूरी एहतियात बरतने की अपील भी की गई है.
साल 2005 में तिब्बत के साथ बनी पारछू झील भी प्रदेश में भारी तबाही मचा चुकी है. उस दौरान जानी नुकसान के अलावा 800 करोड़ से अधिक की क्षति आंकी गई थी. ऐसे में नई बन रही झीलें निकट भविष्य में भारी तबाही मचा सकती हैं.
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