कुल्लू: कृषि और बागवानी के लिए मशहूर कुल्लू घाटी के लोग परंपरागत फसलों से मुंह मोड़ने लगे हैं. जिले में कभी बड़े पैमाने पर लाल चावल की खेती होती थी, लेकिन अब लाल चावल की महक गायब होने लगी है. अब किसान फिर से धान की रोपाई के आखरी में जुटे हैं, ताकि भूमि की ऊर्वरक क्षमता को बढ़ाया जा सके.
जिला कुल्लू में वर्तमान समय में चुनिंदा किसान ही बहुत कम भू-भाग पर इसकी खेती कर रहे हैं. वहीं, उत्पादन कम होने के कारण उझी घाटी में पैदा होने वाले लाल चावल के दाम भी आसमान छू रहे हैं. लाल चावल का दायरा साल दर साल घटता ही जा रहा है. गिने चुने इलाके में ही किसान इसकी खेती कर रहे हैं.
सरकार की ओर से भी परंपरागत खेती के वजूद को बचाने के लिए प्रयास नहीं हो रहे हैं. जिले में तीन दशक पूर्व लाल चावल की खेती बड़े स्तर पर होती थी. हालांकि इस चावल के रेट भी उम्दा मिलते हैं. अब सेब और सब्जियों के उत्पादन को लोग अधिक तव्वजो देने लगे हैं.
जिन क्षेत्रों में पहले लाल चावल की खेती होती थी, वहां सेब के बगीचे लहलहाने लगे हैं. बागवानी में अधिक कमाई होने से इस ओर लोगों का रुझान बढ़ा है. घाटी के किसान हेमराज ने कहा कि जिस भूमि पर लाल चावल का उत्पादन होता था, वहां अब सब्जियां व सेब का उत्पादन किया जा रहा है. कुछ साल पहले शादी-विवाह में लाल चावल की धाम परोसी जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है.
किसान हेमराज का कहना है कि धान की खेती से जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. लेकिन लोग अब सब्जियों व फलों की ओर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. जिससे घाटी में खेतों से पूर्वक क्षमता कम होती जा रही है.
इस संबंध में कृषि उप निदेशक राजपाल शर्मा ने कहा कि सेब और सब्जियों से अधिक कमाई हो रही है. ऐसे में धान की खेती का दायरा जिले में घटता जा रहा है. परंपरागत फसलों के वजूद को बचाने के लिए कृषि विभाग इसके प्रचार-प्रसार के लिए योजना के तहत किसानों को जागरूक कर रहा है.
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