धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा शनिवार को 84 साल के हो गए. धर्मशाला के मैक्लोडगंज में बौद्ध मंदिर निर्वासित तिब्बत सरकार ने उनका जन्मदिन बढ़ी धूमधाम से मनाया.
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के अमुदो क्षेत्र के तकतसर में एक किसान परिवार में हुआ था. उनका नाम लहामो धोनुढुप था. दलाई लामा जब 2 साल के थे तब उन्हें 14वें धर्मगुरु दलाई लामा के रूप में पहचान लिया गया था.
पांच साल की उम्र होने पर दलाई लामा को अधिकारिक तौर पर तिब्बती धर्मगुरु की गद्दी पर विराजमान कर दिया गया था. 24 साल के होने पर उन्हें बौद्व धर्म की सबसे उच्च स्तरीय डिग्री हासिल हो गई थी. साल1950 में जब दलाई लामा 16 वर्ष के थे तो मंत्रिमंडल की सत्यनिष्ठ अपील के बाद उन्होंने तिब्बत के अस्थाई नेतृत्व की जिम्मेदारी ली थी.
दलाई लामा ने संयुक्त राष्ट्र, पश्चिमी देशों और अन्य पड़ोसी देशों से सहायता मांगते हुए तिब्बत और चीन के बीच एक सामंजस्य पूर्ण समझौते के लिए प्रयास करने का संकल्प लिया. दलाई लामा साल 1954 -55 में बीजिंग दौर पर गए थे.
वहां वो अध्यक्ष माओ जडोंग और अन्य चीनी नेताओं से मिले. हालांकि चीन ने 17 सूत्रीय समझौते पर करार करने से इनकार कर दिया था, जिस पर तिब्बत ने अवरोध के तहत हस्ताक्षर किया था. इसके साथ ही चीन और तिब्बत के लोगों का आपसी विवाद जारी रहा. साल1959 में जब वे 24 साल के थे तो उन्हें भारत में आकर रहना पड़ा और निर्वासन को अपनाना पड़ा.
निर्वासित सरकार के लोगों की माने तो आज भी तिब्बत की संस्कृति और पहचान बरकार है और इसका सबसे बड़ा श्रेय दलाई लामा को जाता है. आज निर्वसान में एक पूर्ण विकसित लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हो चुकी है. दलाई लामा को साल 1989 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है. इसके अलावा दुनिया भर में उनको 150 पुरस्कार मिल चुके हैं.