ETV Bharat / state

आड़ू की खेती में कारगर साबित हुई समर प्रूनिंग, पैदावार में भी इजाफा, फल का साइज भी बढ़ा, जानें उन्नत तकनीक

Horticulture and Forestry College Neri: जिला हमीरपुर में स्थित औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने एक ऐसी तकनीक को विकसित किया है जिससे आड़ू की पैदावार में इजाफा हुआ है और बागवान भी ये सीखने के लिए यहां पहुंच रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

Horticulture and Forestry College Neri
आड़ू.
author img

By

Published : May 2, 2023, 5:58 PM IST

आड़ू की खेती में कारगर साबित हुई समर प्रूनिंग

हमीरपुर: आड़ू की खेती में समर प्रूनिंग तकनीक के क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं. औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने आड़ू की खेती के लिए समर प्रूनिंग की तकनीक को विकसित किया है. इस तकनीक की बारीकी को समझने के लिए देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों से भी बागवान महाविद्यालय में पहुंच रहे हैं. साल 2016 से इस तकनीक को विकसित करने का कार्य महाविद्यालय के फल विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ और शोधार्थियों ने शुरू किया था. इस शोध के अब सार्थक नतीजे सामने आये हैं.

इस तकनीक को अपनाकर आड़ू की पैदावार में इजाफा हुआ है, जबकि पौधों की नियंत्रित ग्रोथ के लिए भी यह बेहद कारगर साबित हुई है. महाविद्यालय के गार्डन में ही एक आड़ू के बगीचे में उच्च घनत्व में पौधे तैयार किए गए हैं. इन पौधों की पिछले 6 साल से साल में दो दफा प्रूनिंग की जा रही है. आमतौर पर बागबान आड़ू के पेड़ों की साल में एक दफा ही सर्दियों के दौरान प्रूनिंग अथवा कांट छंटाई करते हैं. साल में आड़ू के पौधे की सिर्फ सर्दियों में प्रूनिंग करने पर बागवानों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. एक तरफ पौधे अनियंत्रित रूप से बढ़ जाते थे और फलों का आकार भी कम होता था और पैदावार पर भी विपरीत असर देखने को मिलता था. इस समर प्रूनिंग अथवा डबल प्रूनिंग तकनीक को अपनाकर अब किसानों को छोटे क्षेत्र में अधिक पैदावार प्राप्त हो रही है.

Horticulture And Forestry College Neri
औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी.

तुड़ाई के एक महीने बाद पेड़ की 60% टहनियों की कांट छांट जरूरी: इस तकनीक के मुताबिक मई महीने में फसल लेने के बाद किसान अथवा बागवान समर प्रूनिंग को अमल में ला सकते हैं. इस तकनीक को अपनाने से पौधे के अतिरिक्त विरोध नहीं होती है और जो पोषक तत्व बर्बाद हो जाते हैं उसमें भी रोक लगती है. पेड़ में मौजूद इन पोषक तत्वों के वजह से अगले साल फल का साइज भी बेहतर होता है और पैदावार ने भी खासी बढ़ोतरी होती है. इस तकनीक को अपनाकर हिमाचल के साथ ही देश भर में बागवान लाभ उठा रहे हैं.

उच्च घनत्व खेती तकनीक काफी बेहतर इस्तेमाल, आमदन में भी बढ़ोतरी: आमतौर पर आडू के पौधों को 5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है लेकिन उच्च घनत्व खेती तकनीक को अपना कर बागबान ढाई मीटर की दूरी पर पौधों को लगा सकते हैं इस तकनीक में डबल प्रूनिंग अथवा समर प्रूनिंग अनिवार्य है दरअसल कम चौड़ाई में जब पौधे लगाए जाते हैं तो इनकी कांट छांट बेहद ही जरूरी होती है समर प्रूनिंग की उन्नत तकनीक को अपनाकर किसान बेहतर पैदावार पा सकते हैं.

Horticulture And Forestry College Neri
पेड़ पर लगे आड़ू.

एक हेक्टेयर में 400 पौधे तैयार किए जा सकते हैं: उदाहरण के तौर पर 5 मीटर की दूरी पर पौधों को लगाकर एक हेक्टेयर में महज 400 पौधे ही तैयार किए जा सकते हैं जबकि उच्च घनत्व खेती तकनीक को अपनाकर 800 पौधे लगाए जा सकते हैं इन पौधों पर समर प्रूनिंग तकनीक लगातार लागू कर 2 से 3 साल के पौधे से पैदावार ली जा सकती है. 6 साल के एक पौधे से 30 से 35 किलो पैदावार इस तकनीक को अपनाकर ली जा सकती है जोकि पारंपरिक तकनीक से महज 20 से 25 किलो ही प्राप्त हो पाती थी. फल की पैदावार में बढ़ोतरी के साथ ही फल की क्वालिटी कलर और साइज में भी क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलते हैं. इस बेहतर साइज के फल को बाजार में 80 से ₹100 किलो में बेचा जा रहा है.

15 जून तक होता है प्रूनिंग के काम: औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के डीन सोमदत्त शर्मा ने कहा कि आड़ू की खेती महाविद्यालय परिसर में 2016 में शुरू की गई थी. आमतौर पर इस फल के पेड़ की प्रूनिंग सर्दियों में बागबान करते हैं. देशभर में इसकी खेती को लेकर यही तकनीक अब तक अपनाई जा रही थी, लेकिन महाविद्यालय परिसर में साल 2016 से शुरू किए गए प्रयोग के मुताबिक साल में दो दफा प्रूनिंग के इस कार्य को शुरू किया गया. उन्होंने कहा कि फल विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों और विशेषज्ञों के द्वारा यह कार्य कई साल तक किया गया. 15 जून तक इस प्रूनिंग के कार्य को पूरा कर लिया जाता है. उन्होंने कहा कि इस तकनीक को अपनाकर पैदावार में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं और फल का साइज भी बेहतर हुआ है इतना ही नहीं अगले साल जब पौधा जल्दी तैयार होगा और फल की पैदावार भी बेहतर होगी.

Horticulture And Forestry College Neri
आड़ू के पेड़.

बागवानों ने सीखी ये तकनीक: प्रोफेसर सोमदत्त शर्मा का कहना है कि देशभर में इस तकनीक को अब अपनाया जा रहा है संस्थान में देश के कई राज्यों के किसानों और बागवानों ने पहुंचकर इस तकनीक की बारीकी को सीखा है. उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों के अलावा बांग्लादेश से भी एक बागवान उच्च घनत्व की इस खेती को सीखने के लिए महाविद्यालय में पहुंचा था. लगभग 7 दिन तक बागवान को खेती की यह बारीकियां सिखाई गई थी. अबोहर सराहन पुर में इसकी खेती अधिक की जाती है और यहां पर भी अब बागवान इस तकनीक को अपना रहे हैं.

Horticulture And Forestry College Neri
फल विशेषज्ञ अजय बनयाल आड़ू को दिखाते हुए.

औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के फल विज्ञान विभाग के फल विशेषज्ञ अजय बनयाल का कहना है कि मई महीने में आड़ू की तुड़ाई पूरी हो जाती है. इसके बाद अगले साल जनवरी अथवा फरवरी महीने में फ्लावरिंग की सेटिंग होती है. लगभग 8 महीने के अंतराल में आमतौर पर सर्दियों में ही इन पेड़ों की प्रूनिंग की जाती थी. प्रूनिंग इस अवधारणा को बदलते हुए समर प्रूनिंग की तकनीक को संस्थान में विकसित किया गया.

Read Also- हिमाचल में बारिश और ओलावृष्टि का मटर की फसल पर असर, ग्रेडिंग के हिसाब से मिल रहे दाम

आड़ू की खेती में कारगर साबित हुई समर प्रूनिंग

हमीरपुर: आड़ू की खेती में समर प्रूनिंग तकनीक के क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं. औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने आड़ू की खेती के लिए समर प्रूनिंग की तकनीक को विकसित किया है. इस तकनीक की बारीकी को समझने के लिए देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों से भी बागवान महाविद्यालय में पहुंच रहे हैं. साल 2016 से इस तकनीक को विकसित करने का कार्य महाविद्यालय के फल विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ और शोधार्थियों ने शुरू किया था. इस शोध के अब सार्थक नतीजे सामने आये हैं.

इस तकनीक को अपनाकर आड़ू की पैदावार में इजाफा हुआ है, जबकि पौधों की नियंत्रित ग्रोथ के लिए भी यह बेहद कारगर साबित हुई है. महाविद्यालय के गार्डन में ही एक आड़ू के बगीचे में उच्च घनत्व में पौधे तैयार किए गए हैं. इन पौधों की पिछले 6 साल से साल में दो दफा प्रूनिंग की जा रही है. आमतौर पर बागबान आड़ू के पेड़ों की साल में एक दफा ही सर्दियों के दौरान प्रूनिंग अथवा कांट छंटाई करते हैं. साल में आड़ू के पौधे की सिर्फ सर्दियों में प्रूनिंग करने पर बागवानों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. एक तरफ पौधे अनियंत्रित रूप से बढ़ जाते थे और फलों का आकार भी कम होता था और पैदावार पर भी विपरीत असर देखने को मिलता था. इस समर प्रूनिंग अथवा डबल प्रूनिंग तकनीक को अपनाकर अब किसानों को छोटे क्षेत्र में अधिक पैदावार प्राप्त हो रही है.

Horticulture And Forestry College Neri
औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी.

तुड़ाई के एक महीने बाद पेड़ की 60% टहनियों की कांट छांट जरूरी: इस तकनीक के मुताबिक मई महीने में फसल लेने के बाद किसान अथवा बागवान समर प्रूनिंग को अमल में ला सकते हैं. इस तकनीक को अपनाने से पौधे के अतिरिक्त विरोध नहीं होती है और जो पोषक तत्व बर्बाद हो जाते हैं उसमें भी रोक लगती है. पेड़ में मौजूद इन पोषक तत्वों के वजह से अगले साल फल का साइज भी बेहतर होता है और पैदावार ने भी खासी बढ़ोतरी होती है. इस तकनीक को अपनाकर हिमाचल के साथ ही देश भर में बागवान लाभ उठा रहे हैं.

उच्च घनत्व खेती तकनीक काफी बेहतर इस्तेमाल, आमदन में भी बढ़ोतरी: आमतौर पर आडू के पौधों को 5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है लेकिन उच्च घनत्व खेती तकनीक को अपना कर बागबान ढाई मीटर की दूरी पर पौधों को लगा सकते हैं इस तकनीक में डबल प्रूनिंग अथवा समर प्रूनिंग अनिवार्य है दरअसल कम चौड़ाई में जब पौधे लगाए जाते हैं तो इनकी कांट छांट बेहद ही जरूरी होती है समर प्रूनिंग की उन्नत तकनीक को अपनाकर किसान बेहतर पैदावार पा सकते हैं.

Horticulture And Forestry College Neri
पेड़ पर लगे आड़ू.

एक हेक्टेयर में 400 पौधे तैयार किए जा सकते हैं: उदाहरण के तौर पर 5 मीटर की दूरी पर पौधों को लगाकर एक हेक्टेयर में महज 400 पौधे ही तैयार किए जा सकते हैं जबकि उच्च घनत्व खेती तकनीक को अपनाकर 800 पौधे लगाए जा सकते हैं इन पौधों पर समर प्रूनिंग तकनीक लगातार लागू कर 2 से 3 साल के पौधे से पैदावार ली जा सकती है. 6 साल के एक पौधे से 30 से 35 किलो पैदावार इस तकनीक को अपनाकर ली जा सकती है जोकि पारंपरिक तकनीक से महज 20 से 25 किलो ही प्राप्त हो पाती थी. फल की पैदावार में बढ़ोतरी के साथ ही फल की क्वालिटी कलर और साइज में भी क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलते हैं. इस बेहतर साइज के फल को बाजार में 80 से ₹100 किलो में बेचा जा रहा है.

15 जून तक होता है प्रूनिंग के काम: औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के डीन सोमदत्त शर्मा ने कहा कि आड़ू की खेती महाविद्यालय परिसर में 2016 में शुरू की गई थी. आमतौर पर इस फल के पेड़ की प्रूनिंग सर्दियों में बागबान करते हैं. देशभर में इसकी खेती को लेकर यही तकनीक अब तक अपनाई जा रही थी, लेकिन महाविद्यालय परिसर में साल 2016 से शुरू किए गए प्रयोग के मुताबिक साल में दो दफा प्रूनिंग के इस कार्य को शुरू किया गया. उन्होंने कहा कि फल विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों और विशेषज्ञों के द्वारा यह कार्य कई साल तक किया गया. 15 जून तक इस प्रूनिंग के कार्य को पूरा कर लिया जाता है. उन्होंने कहा कि इस तकनीक को अपनाकर पैदावार में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं और फल का साइज भी बेहतर हुआ है इतना ही नहीं अगले साल जब पौधा जल्दी तैयार होगा और फल की पैदावार भी बेहतर होगी.

Horticulture And Forestry College Neri
आड़ू के पेड़.

बागवानों ने सीखी ये तकनीक: प्रोफेसर सोमदत्त शर्मा का कहना है कि देशभर में इस तकनीक को अब अपनाया जा रहा है संस्थान में देश के कई राज्यों के किसानों और बागवानों ने पहुंचकर इस तकनीक की बारीकी को सीखा है. उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों के अलावा बांग्लादेश से भी एक बागवान उच्च घनत्व की इस खेती को सीखने के लिए महाविद्यालय में पहुंचा था. लगभग 7 दिन तक बागवान को खेती की यह बारीकियां सिखाई गई थी. अबोहर सराहन पुर में इसकी खेती अधिक की जाती है और यहां पर भी अब बागवान इस तकनीक को अपना रहे हैं.

Horticulture And Forestry College Neri
फल विशेषज्ञ अजय बनयाल आड़ू को दिखाते हुए.

औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के फल विज्ञान विभाग के फल विशेषज्ञ अजय बनयाल का कहना है कि मई महीने में आड़ू की तुड़ाई पूरी हो जाती है. इसके बाद अगले साल जनवरी अथवा फरवरी महीने में फ्लावरिंग की सेटिंग होती है. लगभग 8 महीने के अंतराल में आमतौर पर सर्दियों में ही इन पेड़ों की प्रूनिंग की जाती थी. प्रूनिंग इस अवधारणा को बदलते हुए समर प्रूनिंग की तकनीक को संस्थान में विकसित किया गया.

Read Also- हिमाचल में बारिश और ओलावृष्टि का मटर की फसल पर असर, ग्रेडिंग के हिसाब से मिल रहे दाम

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.