ऊना: कारगिल विजय दिवस के 20 साल पूरे हो गए. 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने करगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारतीय भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. इसी की याद में '26 जुलाई' हर वर्ष करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
करगिल का नाम सामने आते ही भारतीय जवानों के अनुकरणीय साहस से आज भी जोश आता है. जिला ऊना से संबंध रखने वाले कैप्टन अमोल कालिया ने कारगिल युद्ध में जिस प्रकार से बहादुरी दिखाई, उसे सेना के इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखा गया है.
मूलत: चिंतपूर्णी से संबंध रखने वाले कैप्टन अमोल कालिया का जन्म 26 फरवरी 1974 को शिक्षक सतपाल कालिया व ऊषा कालिया के घर हुआ. अमोल कालिया के बड़े भाई का नाम अमन कालिया है, जो कि वर्तमान में भारतीय वायु सेना में विंग कमांडर के पद पर सेवाएं दे रहे हैं.
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अमोल कालिया की प्रारंभिक शिक्षा नंगल (पंजाब) में हुई. पिता सतपाल कालिया का सपना साकार करने के लिए अमोल कालिया ने 1991 में एनडीए की परीक्षा पास की. वहीं 1995 आईएमई कमीशन पास करने के उपरांत भारतीय सेना में कमीशन मिला. युवा सेकेंड लेफ्टिनेंट अमोल कालिया ने 1996 में खेमकरण सेक्टर से करियर की शुरूआत की.
शुरूआती दौर में ही कालिया भीषण दुर्घटना का शिकार हुए. उन्हें 14 घंटे बाद उसे होश आया था. स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानने वाले कैप्टन अमोल कालिया सदैव सैनिकों की वीरता की बातें करते थे. दुश्मन को सबक सिखाना उनका पैशन था.
अमोल कालिया पहाड़ी युद्ध के विशेषज्ञ भी माने जाते थे. उनकी अधिकतर सेवाएं सियाचिन ग्लेशियर, कारगिल, द्रास व लेह जैसे कठिन क्षेत्रों में रही. सन् 1999 में कालिया कारगिल में तैनात थे. जून 1999 के पहले सप्ताह को विशेष निर्देश के तहत कैप्टन अमोल कालिया व उनके 13 साथियों को बटालिक सेक्टर 16,000 फुट ऊंची बर्फ से ढकी चौकी संख्या 5203 पर दुश्मन से आजाद करवा तिरंगा लहराने की जिम्मेवारी सौंपी गई.
9 जून 1999 को कैप्टन कालिया ने अपने 13 जवानों सहित दुश्मन के 25 सैनिकों व मुजाहिदीनों के साथ करीब 7 घंटे भीषण संघर्ष किया. दो जवानों के शहीद होने के बाद कैप्टन अमोल कालिया ने मोर्चा संभाला. दुश्मन की ओर से आई गोली ने उन्हें घायल कर दिया. जख्मी हालत भी गन उठाकर कै. कालिया ने दुश्मन पर गोलियां बरसा दी.
कालिया ने चार दुश्मनों को अपनी गोली का निशाना बनाया. वहीं उनके साथियों ने भी सभी दुश्मनों को मार गिराकर खुद शहीदी प्राप्त की. कैप्टन अमोल कालिया ने शहीदी पाने से पहले तिरंगा लहराया. कैप्टन अमोल कालिया का पार्थिव शरीर 21 जून को नंगल लाया गया. जहां से हजारों नम आंखों के बीच करीब 70 किलोमीटर का सफर तय कर चिंतपूर्णी तक ले जाया गया.
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चिंतपूर्णी में उनके पैतृक गांव में कालिया का अंतिम संस्कार सैनिक सम्मान के साथ किया गया. भारत के राष्ट्रपति ने अमोल कालिया को मरणोपरांत वीर चक्र से अलंकृत कर सारे राष्ट्र की तरफ से अमोल के जज्बे को सलाम किया. शहीद कैप्टन अमोल कालिया के पिता को आज भी अपने बेटे पर नाज है, लेकिन कहीं न कहीं सरकारों से वीर सपूतों को भूलने का मलाल भी शहीद के पिता के दिल में है.
वहीं, शहीद कैप्टन अमोल कालिया के पिता ने बताया कि अमोल में शुरू से ही देश सेवा का जज्बा था. उन्होंने बताया कि आधी रात को भी अगर किसी को उसकी जरूरत पड़ती थी तो वो हमेशा तैयार रहता था. सतपाल कालिया की माने तो उनकी इच्छा थी कि उनके बेटे देश सेवा में लगे, जिसे दोनों बेटों ने पूरा भी किया.
उन्होंने कहा कि छोटी सी उम्र में देश के लिए शहादत देकर उनके बेटे ने उनका नाम ऊंचा किया है. उन्होंने बताया कि मुझे आज भी अमोल कालिया से अंतिम भेंट याद है. अमोल मुझे दिल्ली से जन्म दिन की बधाई देने के लिए आया था और 9 जून को मिले पत्र में अमोल ने वादा किया था कि जून माह के अंत में आकर शादी की तिथि तय करूगां लेकिन जून का वो अंत आज तक न आया. उन्होंने कहा आज भी अपने बेटे की शहीदी पर नाज है.