शिमला: हिमाचल की वादियां इस साल सियासी तपिश झेल रही हैं. 5 साल बाद एक बार फिर जनता की बारी है, छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की जनता राजनीति में बहुत रुचि लेती है. आरंभ से ही हिमाचल प्रदेश में दो दलों के बीच चुनावी मुकाबला होता आया है. बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा सत्ता में आते रहे हैं. वर्ष 2017 के चुनाव ने हिमाचल की राजनीति (political party in himachal) को बदल दिया था. कई महारथी चुनाव हार गए और हिमाचल में पहली बार मंडी जिला के हिस्से में सरदारी आई. जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने. हिमाचल विधानसभा के चुनाव में कई दिलचस्प बातें देखने को मिली थीं. उनमें से प्रमुख घटनाओं को फ्लैश बैक के रूप में देखते हैं.
मतदान के टूटे रिकॉर्ड- हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के लिए 10 नवंबर 2017 को हुए मतदान (Himachal Assembly Elections 2017) में अब तक के सारे रिकॉर्ड टूट गए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव मेंं 75.57 प्रतिशत मतदान हुआ था. उस समय जिला सिरमौर केवल नाम का ही नहीं, बल्कि मतदान का भी सिरमौर साबित हुआ था. सिरमौर जिले में सबसे ज्यादा 81.05 फीसदी मतदान हुआ. सबसे साक्षर जिलों में शुमार हमीरपुर जिले में सबसे कम 70.19 फीसदी मतदान हुआ था. निर्वाचन विभाग के अनुसार 2017 का मतदान प्रतिशत हिमाचल के चुनाव में अब तक के मतदान प्रतिशत में सबसे अधिक था. 68 में से सिर्फ 9 विधानसभा सीटों पर 70 फीसदी से कम मतदान हुआ था. जबकि 10 सीटें ऐसी थी जहां 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ. जिला सोलन की दून विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा 88.95% वोटिंग हुई जबकि शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम 63.76% मतदान हुआ था. 2017 से पहले 2003 में रिकॉर्ड मतदान (74.51%) हुआ था.
नतीजों में खिला कमल- हिमाचल की कुल 68 सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 18 दिसंबर 2017 को मतगणना हुई और सत्ता का वही पैटर्न देखने को मिला जो पिछले करीब 4 दशक से बरकरार था. 68 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 44 सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस को 21, माकपा को एक और निर्दलीय उम्मीदवारों को दो सीटों पर जीत मिली. ये कुल मतों का 48.8 फीसदी था. चुनाव में भाजपा ने कांगड़ा और मंडी जिला में शानदार प्रदर्शन किया. मंडी में 10 में से नौ सीटों और कांगड़ा की कुल 15 सीटों में से 11 सीटों पर कमल खिला.
भाजपा को किन्नौर, भरमौर व लाहौल-स्पीति के तौर पर तीन जनजातीय विधानसभा सीटों में दो पर जीत हासिल हुई थी. यही नहीं, किन्नौर विधानसभा की सीट भी भाजपा बेहद मामूली अंतर से हारी. हिमाचल में जिला मुख्यालयों से जुड़ी 12 में से 8 सीटों पर पार्टी की जीत हुई थी. भाजपा की तीन महिला प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थी. बाद में पच्छाद सीट पर उपचुनाव में रीना कश्यप के रूप में चार महिला विधायक हो गई थीं. वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा ने पांच महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था. उनमें से तीन ने जीत हासिल की. इंदु गोस्वामी पालमपुर से और शशिबाला रोहड़ू से चुनाव हार गई थीं.
बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार की हार: हिमाचल प्रदेश की राजनीति में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव ने नए युग की शुरुआत की थी. बरसों तक विधानसभा व सचिवालय में धाक जमाए नेता पराजित हो गए थे. जिन महारथियों को जनता ने घर में बैठने पर मजबूर किया था, उनमें सबसे चौंकाने वाला नाम भाजपा के सीएम फेस प्रेम कुमार धूमल थे. उन्हें सुजानपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के राजेंद्र राणा ने हराया था. इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती और बीजेपी के वरिष्ठ नेता गुलाब सिंह ठाकुर भी चुनाव हार गए थे. कांग्रेस खेमे में भी बड़े-बड़े चेहरे सियासी रण में ढेर हो गए थे. जिनमें परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली, वन मंत्री रहे ठाकुर सिंह भरमौरी, आबकारी मंत्री रहे प्रकाश चौधरी, शहरी विकास मंत्री रहे सुधीर शर्मा और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गंगूराम मुसाफिर शामिल थे. इसके अलावा कुल्लू से महेश्वर सिंह जैसे दिग्गज चुनाव हार गए. ज्वाली से पूर्व सांसद चंद्र कुमार हारे. वहीं दूसरी तरफ छह बार के सीएम वीरभद्र सिंह वर्ष 2017 में भी चुनाव जीते. उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह की युवा विधायक के रूप में पहली पारी शुरू हुई थी.
जयराम ठाकुर के सिर सजा ताज- मुख्यमंत्री का चेहरा रहे प्रेम कुमार धूमल की हार ने बीजेपी की बंपर जीत में निराशा घोल दी थी. चुनाव के बाद नए मुख्यमंत्री को लेकर शिमला से लेकर दिल्ली तक कई दौर का मंथन हुआ. केंद्र से लेकर राज्य के कई नेताओं के नाम रेस में आगे और पीछे होते रहे लेकिन आखिरकार बीजेपी आलाकमान ने सिराज से 5 बार के विधायक जयराम ठाकुर को सूबे की कमान सौंप दी. 27 दिसंबर 2017 को जयराम ठाकुर ने हिमाचल के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. शपथ ग्रहण समारोह को ऐतिहासिक बनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह सहित कई राज्यों के सीएम आए थे.
वर्ष 1985 के बाद से नहीं हुआ है मिशन रिपीट: हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 में हर कोई अपनी जीत का दावा कर रहा है. बीजेपी सरकार रिपीट करने का दावा कर रही है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी का, दरअसल हिमाचल में साल 1985 के बाद से कोई भी सरकार रिपीट नहीं हो पाई है. सत्ता बीजेपी और कांग्रेस के बीच ट्रांसफर होती रही है. दरअसल बीजेपी इस साल हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर जोश में है. खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सालों बाद सरकार रिपीट करने का कारनामा बीजेपी ने ही कर दिखाया है. दरअसल हिमाचल प्रदेश में वर्ष 1985 से अब तक लगातार भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता सुख भोगती आ रही हैं, लेकिन मतदान के आंकड़े बताते हैं कि भारी वोटिंग के बाद प्रदेश में सत्ता बदलती ही है. हिमाचल में वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा को सत्ता मिली. फिर वर्ष 2003 के चुनाव में 1998 के 71.23 फीसदी के मुकाबले 74.51 प्रतिशत मतदान हुआ और भाजपा की हार हुई. इसके बाद भाजपा सत्ता में आई. फिर 2012 में मतदाताओं ने 2007 में सत्तारूढ़ हुई भाजपा के खिलाफ जनादेश दिया तो मतदान 2007 के 71.61 प्रतिशत के मुकाबले 73.51 प्रतिशत हुआ. वर्ष 2017 में प्रदेश में 74.61 प्रतिशत मतदान हुआ और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी. इस बार आम आदमी पार्टी ने भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. ऐसे में मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.
आंकड़ों की जुबानी, 2017 की कहानी- इन चुनावों में कुल कुल 50,25,941 मतदाता थे. जिनमें 25,31,321 पुरुष मतदाता और 24,57,032 महिला वोटर्स थे. थर्ड जेंडर के भी 14 वोट थे. 2017 के चुनावों में 37,50,426 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. इन चुनावों में वोट डालने वाली महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक थी. कुल 18,13,147 पुरुष और 19,14,578 महिला मतदाताओं ने वोट डाला था. थर्ड जेंडर के केवल 2 वोट पड़े. 34,232 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया जबकि 12085 वोट रिजेक्ट भी हुए थे. उस चुनाव में 37,574 सर्विस मतदाता थे. चुनावी ड्यूटी और सर्विस मतदाताओं के 70,449 वोट पड़े थे.
80 फीसदी मतदान वाली सीटों में अव्वल दून: अस्सी फीसदी व इससे अधिक मतदान वाली सीटों में दून सीट अव्वल है. दून में 88.95 फीसदी मतदान हुआ. इसके अलावा बंजार में 80.37, सिराज में 83.20, बल्ह में 80.13, नैनादेवी में 82.04, नालागढ़ में 84.27, दून में 88.95, नाहन में 82.48, पांवटा साहिब में 80.83, शिलाई में 84.18 तथा जुब्बल कोटखाई में 80.24 फीसदी मतदान हुआ. वहीं, सत्तर फीसदी से कम मतदान वाली सीटों में शिमला में 63.76, कसुम्पटी में 66.97, सोलन में 66.65, हमीरपुर में 69.11, भोरंज में 65.84, सरकाघाट में 67.99,धर्मपुर में 64.22, बैजनाथ में 65.24 तथा जयसिंहपुर में 63.91 फीसदी वोटिंग हुई. इन सीटों में समूचे प्रदेश के औसत मतदान से भी कम मतदान हुआ.
पांच साल पहले ऐसा था कैबिनेट का रूप: प्रेम कुमार धूमल की हार के बाद हिमाचल प्रदेश भाजपा में जयराम ठाकुर का दौर आया. चुनाव में जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जयराम सरकार ने शपथ ली थी. तब जयराम ठाकुर की टीम में अनुभव और युवा जोश का मिश्रण देखने को मिला. नई कैबिनेट में छह भाजपा नेता पहली बार मंत्री बने थे. जयराम ठाकुर के बाद शपथ लेने वाले महेंद्र सिंह ठाकुर कैबिनेट में नंबर दो के रूप में ताकतवर मंत्री बने. उस समय किशन कपूर, अनिल शर्मा, सरवीण चौधरी व रामलाल मारकंडा ने भी शपथ ली थी और वे इससे पहले भी मंत्री रह चुके थे. छह नेता जो पहली बार मंत्री बने, उनमें गोविंद सिंह ठाकुर, डॉ. राजीव सैजल, बिक्रम सिंह ठाकुर, सुरेश भारद्वाज, विपिन सिंह परमार, वीरेंद्र कंवर का नाम शामिल था. उस दौरान डॉ. राजीव बिंदल, रमेश धवाला व नरेंद्र बरागटा को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली थी. बाद में राजीव बिंदल को विधानसभा अध्यक्ष की और हंसराज को विधासभा उपाध्यक्ष जिम्मेदारी दी गई. बाद में किशन कपूर सांसद का चुनाव लड़े और उनकी जगह विशाल नेहरिया धर्मशाला से उपचुनाव जीते.
पहली बार विधानसभा पहुंचे कई नेता: हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 2017 के चुनाव के बाद सबसे युवा विधायक विक्रमादित्य सिंह हैं. इसके अलावा पहली बार चुनाव जीतने वालों में एक दिलचस्प नाम जवाहर ठाकुर का था. वे लगातार द्रंग से कांग्रेसी महारथी कौल सिंह ठाकुर के खिलाफ चुनाव लड़ते आए थे. आखिरकार 2017 में जवाहर ठाकुर ने जीत हासिल कर ही ली. पहली बार चुनावी जीत का स्वाद चखने वालों में बंजार से सुरेंद्र शौरी, घुमारवीं से राजेंद्र गर्ग, बिलासपुर से सुभाष ठाकुर, पूर्व आईएएस अफसर झंडूता से जेआर कटवाल, जोगेंद्रनगर से प्रकाश राणा, सुंदरनगर से राकेश जम्वाल, बैजनाथ से मुल्कराज प्रेमी, पालमपुर से आशीष बुटेल, कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर, नगरोटा से अरुण कुमार कूका, भरमौर से जियालाल, चंबा से पवन नैय्यर, देहरा से होशियार सिंह, दून से परमजीत सिंह पम्मी, नालागढ़ से लखविंद्र राणा, इंदौरा से रीता धीमान व भोरंज से कमलेश कुमारी का नाम शामिल है. प्रकाश राणा व होशियार सिंह के तौर पर निर्दलीय विधायक सदन में आए तो माकपा को 1993 के बाद फिर से विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने का मौका राकेश सिंघा के तौर पर मिला.
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